दक्षिणी राजस्थान में भाजपा कर रही है जनजाति वोटरों को लुभाने का प्रयास

गोपेंद्र नाथ भट्ट

नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में आने वाले विधानसभा चुनावों में जनजाति वोटरों को लुभाने काहरसंभव प्रयास कर रही है। राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से मेवाड़ और वागड़ इलाकों में उदयपुरसंभाग के उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, बांसवाडा और डूंगरपुर जिलों में विधानसभा की कुल 27 सीटें हैं,जो प्रदेश में किसी भी दल की सरकार बनाने या बिगाड़ने में सक्षम कही जाती हैं।

दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में विधानसभा की इन 27 सीटों में से 15 सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारजीत कर आते है। हालांकि भाजपा का गत विधान सभा चुनाव में इस संभाग में खराब प्रदर्शन नही रहा था और27 सीटों में से 14 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे जबकि कांग्रेस के दस,बीटीपी के दो और एकनिर्दलीय विधायक को विजय मिली थी।विजयी उम्मीदवारों में भाजपा के सात, कांग्रेस के पाँच, बीटीपी के दोऔर एक निर्दलीय आदिवासी विधायक शामिल था लेकिनआदिवासियों की नई पार्टी भारतीय ट्राइबल पार्टी(बीटीपी) के अभ्युदय और उप चुनावों में राजसमन्द को छोड़ सभी में बीजेपी को कांग्रेस से मिली पराजय तथाअपनी ही पार्टी के पुराने नेताओं रणधीर सिंह भींडर और हनुमान बेनीवाल की पार्टियों से हो रहे नुकसान सेभाजपा के सारे समीकरण बिगड़ कर रह गए है । बीटीपी के कारण कांग्रेस के समीकरण भी हिल गए है।भाजपा के गढ़ माने जाने वाले उदयपुर शहर सीट से दो दशकों से जीत कर आ रहे गुलाब चंद कटारिया अबअसम के राज्यपाल बन कर सक्रिय राजनीति से बाहर हो गए है। इधर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उदयपुरसंभाग के लगातार दौरे कर कांग्रेस के पक्ष में ज़ोरदार वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे है । ऐसे में भाजपा भीअपने पुराने गढ़ को बचाने के लिए इन दिनों कड़ी मेहनत कर रही हैं । हाल ही हुई केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाहकी उदयपुर यात्रा को इसी कड़ी का हिस्सा बताया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात से सटे इस आदिवासी बहुल इलाके में भाजपा की पकड़ को कमजोर नहीं होनेदेना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने राजस्थान विधानसभा चुनावी रणभेरी की शुरुआत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाहसे करवा आदिवासी इलाकों पर विशेष फोकस किया है। संभाग की सभी चार लोकसभा सीटोंउदयपुर,राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और बांसवाड़ा-डूंगरपुर पर अभी भाजपा के सांसद है जिनमें वर्तमान प्रदेशभाजपा अध्यक्ष सी पी जोशी भी शामिल है। इसके अलावा संभाग में भाजपा के वर्तमान 14 विधायको में से 13 विधायकों (एक सीट उदयपुर गुलाब चंद कटारिया के राज्यपाल बनने से रिक्त है) को आसन्न विधान सभाचुनाव के लिए पार्टी ने चुनावी तैयारियों में झोंक दिया है। इसी तरह कांग्रेस के दस विधायक भी कमर कस करचुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं।

इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने उदयपुर दौरें में एक स्थानीय निजी होटल होवार्ड जॉनसन मेंआयोजित भारतीय जनता पार्टी के जनजातीय विशिष्ट जन संवाद कार्यक्रम में भाग लेकर आदिवासी वोटों काभाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया है।

शाह ने इस मौके पर राजस्थान और गुजरात की सीमा पर बांसवाड़ा जिले में स्थित वागड़ के जलियांवाला बागमानगढ़ धाम का प्रसंग भी उठाया जहां पर अंग्रेज़ी हुकूमत ने आदिवासियों के गोविन्द गुरु के सानिध्य में ऊँचीपहाड़ी पर जमा करीब 1500 लोगों विशेष कर आदिवासी भाइयों को गोलियों से भून दिया था। इसहत्याकाण्ड में जलियांवाला बाग से भी अधिक लोगों का बलिदान हुआ था। गुजरात विधानसभा चुनाव से पहलेप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मानगढ़ धाम का दौरा कर एक कार्यक्रम में भाग लिया था जिसमें गुजरात,मध्यप्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए थे। तब भी मीडिया में यह खबरें प्रकाशित हुई थी कि भाजपाराजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के सीमावर्ती भागों में बड़ी संख्या में बसे आदिवासियों के वोटरों को लुभानेका प्रयास कर रही है।राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने प्रधानमंत्री से मानगढ को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देनेकी माँग भी की है। हाल ही प्रधानमंत्री मोदी के विधान सभा चुनाव से पहलें मध्य प्रदेश के शहडोल मेंआदिवासियों के मध्य जाने की देश भर में चर्चा भी हो रही है।

प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा के कई नेता विशेष कर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्रीवसुंधरा राजे सिंधिया दक्षिणी राजस्थान के शक्ति पीठ त्रिपुरा सुन्दरी और मध्य प्रदेश के दतियाँ की पीताम्बरादेवी सहित आदिवासियों के कुम्भ और प्रयागराज माने जाने वाले सोम,माही और जाखम नदियों के पवित्र संगमपर स्थित बेणेश्वर धाम जाकर जनजातियों के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेते रहें है और इस धाम के गुरु तथामहान भविष्यवेत्ता मावजी महाराज के गद्दीनशीन शिष्य महन्त से भी मिलते हैं। बेणेश्वर धाम पर प्रति वर्ष माधपूर्णिमा को एक बड़ा लक्खी मेला भरता है जिसमें राजस्थान,गुजरात,मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आदि प्रदेशों केलाखों आदिवासी भाग लेते हैं।वे यहाँ स्नान, मुण्डन,तर्पण और अपने दिवंगत प्रियजनों की अस्थियों काविसर्जन करने आते हैं।भाजपा की तरह कांग्रेस भी इस मामले में पीछें नही है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नेपिछलें कुछ वर्षों में अपने सभी बड़े राष्ट्रीय नेताओं को यहाँ आमन्त्रित कर आदिवासी वोटों को भुनाने का प्रयासकिया है।

दक्षिणी राजस्थान में आदिवासी मतदाताओं की बड़ी संख्या को देखते हुए भाजपा ने अपने राष्ट्रीय महामंत्री एवंराजस्थान प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह, केंद्रीय मंत्रियों गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल,प्रदेश अध्यक्षसीपी जोशी, विधानसभा में विपक्ष के नेता राजेंद्र सिंह राठौड़, संगठन महामंत्री चंद्रशेखर, सांसद डॉ किरोड़ीलाल मीणा ,अर्जुन लाल मीणा, कनक मल कटारा ,जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुन्नीलालगरासिया,,प्रदेश महामंत्री सुशील कटारा, संभाग प्रभारी हेमराज मीणा सहित जनजातीय क्षेत्र के अन्य कईनेताओं को आदिवासी मतदाताओं को लुभाने की जिम्मेदारी सुपुर्द की है।

भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गरीब आदिवासी परिवार की द्रोपदी मुर्मू को देश की पहली आदिवासीमहिला राष्ट्रपति बनाने, दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा अलग से जनजाति मंत्रालय बनाजनजाति कल्याण का काम करने ,दिवंगत भैरोंसिंह शेखावत द्वारा आदिवासियों का आरक्षण बढ़ाने तथा मोदीसरकार द्वारा भगवान बिरसा मुंडा को महिमा मंडित करने एवं जनजाति समाज के कई वरिष्ठ राजनेताओं कोमंत्री और राज्यपाल पद तक पहुँचाने और आदिवासी कल्याण का बजट कई गुणा बढ़ाने आदि का हवालादेकर आदिवासियों को लुभा रही है।

इस तरह भाजपा प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के गृह प्रदेश गुजरात से सटे दक्षिणीराजस्थान के आदिवासी बाहुल्य वाले मेवाड़-वागड़ के आदिवासी वोटरों को गुजरात की तरह भाजपा के पक्ष मेंमोड़ने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है।

राजस्थान में इस वर्ष के कुछ महीनों के पश्चात नवम्बर-दिसंबर में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं जिसमेंअनुसूचित जाति और जनजाति वोटरों के वोटों का अहम महत्व है। राज्य में अनुसूचित जाति वर्ग से 34 विधायक और 4 सांसद तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग से 33 विधायक और 3 सांसद हैं। दक्षिणी राजस्थान मेंआदिवासी विधायकों की 15 सीटें हैं। आदिवासी वोटरों में बीटीपी के वोटों का विभाजन किसी भी पार्टी कोहराने में सक्षम है।पिछलीं बार ऐसा कर बीटीपी अपने दो विधायकों को जिताने में कामयाब रही थी। इसलिएइस बार भी दक्षिणी राजस्थान में विधान सभा चुनाव का मुक़बला दिलचस्प रहने वाला है।

देखना होंगा कि इस बार आदिवासियों के वोट किसकी झोली में पड़ेंगे?