जरुरी है कठोर राष्ट्रद्रोह कानून और समान नागरिक संहिता

सीता राम शर्मा ” चेतन “

देश में राजद्रोह कानून के लिए न्यायालय और राजनीतिक दलों से लेकर जनता तक में बहस का दौर जारी है । कोई इसको निरस्त करने की मांग कर रहा है और उसके लिए अपने तर्क गढ़ रहा है तो दूसरी तरफ कोई यथास्थिति बनाए रखने की तो कोई इसका समर्थन करते हुए इसे ज्यादा कठोर, प्रासंगिक और ज्यादा प्रभावी बनाने के तर्क दे रहा है । इस विषय पर कोई भी चर्चा करने के लिए सबसे पहले पूरी गंभीरता से इस बात पर चिंतन और तर्कसंगत विमर्श होना चाहिए कि आखिर राजद्रोह कानून जिसका नाम वास्तव में राष्ट्रद्रोह कानून होना चाहिए, उसको निरस्त करने की मांग करने वाले लोग कौन हैं या हो सकते हैं ? स्वाभाविक है कि जिसके चिंतन और कार्य में राष्ट्र के प्रति प्रेम, कर्तव्यनिष्ठता और समर्पण का भाव होगा और जो वर्तमान तथा भविष्य की राष्ट्रीय और वैश्विक परिस्थितियों, चुनौतियों की समझ रखेगा वह तो राष्ट्रद्रोह कानून को समाप्त करने की बात बिल्कुल भी नहीं सोचेगा, ना ही कभी ऐसा चाहेगा और करवाने का प्रयास करेगा । इसलिए देश के जिम्मेवार न्यायिक और प्रशासनिक तंत्र के साथ खुफिया तंत्र को सबसे पहले तो उन्हें और उनके संपर्क क्षेत्र में आने वाले हर एक व्यक्ति पर पूरी चौकसी रखनी चाहिए जिन्हें यह कानून रास नहीं आता । जिन्हें इस कानून से किसी भी तरह की परेशानी या भय है । राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति व्यवस्था बनाए रखने के जिम्मेवार हर तंत्र को उनकी हर नई पुरानी गतिविधियों की जन्मकुंडली खंगालनी चाहिए और यह काम कम से कम अगले दस-बीस वर्षों तक प्रमुखता के साथ प्रशासनिक संदेह सूची में बनाए रखकर इनकी विशेष निगरानी करते रहनी चाहिए । विषयगत विमर्श के दूसरे चरण में हर तटस्थ और संभावित संदेही और इस कानून के निरस्तीकरण के मांगकर्ताओं के इस तर्क पर भी विशेष विचार करने और ध्यान देने की जरूरत है कि वर्तमान या भविष्य में उन्हें आशंका है कि सरकार, प्रशासन या इससे जुड़े कुछ लोग उनके या अन्य किसी भी सामान्य नागरिक के विरुद्ध इस कानून का दुरुपयोग कर सकते हैं, जो तर्क बिल्कुल गलत और आधारहीन है । ऐसे तर्कों पर यदि गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए तो एकमात्र और सीधा निष्कर्ष यही निकलेगा कि ऐसा संभावित दुरुपयोग तो किसी भी कानून के मामले में संभव है तो क्या देश के सारे कानूनों को ही निरस्त कर दिया जाए । यहां एक बार फिर यह बात पूरे विश्वास से लिखी कही और समझी जा सकती है कि ऐसे तर्क दाता और मांग कर्ता पर कानून को दीर्घकालीन चौकसी बनाए रखने की जरूरत है क्योंकि यहां इस बात की शत-प्रतिशत संभावना है कि ऐसे व्यक्ति की या फिर उनसे नजदीकी से जुड़े किसी रिश्तेदार, भागीदार या साथी संगत की गतिविधि या तो संदेहास्पद है या फिर होने की प्रबल संभावना है क्योंकि किसी भी साधारण और निर्दोष व्यक्ति को भला राष्ट्रद्रोह जैसे अत्यंत गंभीर और जरुरी कानून से भय क्यों होगा ? यह भय तो भीतरघाती मानसिकता और कार्यशैली वाले व्यक्ति में ही संभव है । राष्ट्रद्रोह कानून को अपने या अपनों के विरुद्ध गलत उपयोग करने के भय से भयभीत लोगों से यह भी पूछा जाना चाहिए कि वर्तमान समय में आए दिन जिस तरह धन दौलत या फिर अनचाहे संबधों के कारण पारिवारिक अपराध और हिंसा के समाचार आ रहे हैं, क्या उन्हें देखते हुए कोई माता-पिता अपनी नवजात संतान को सिर्फ इस संदेह के आधार पर कहीं भी लावारिस छोड़कर जाने का कानूनी अधिकार मांग सकते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों और घटित घटनाक्रमों के अनुसार उनकी वह संतान भविष्य में उनकी ही हत्या भी कर सकती है ? या फिर कोई संतान अपने माता-पिता का और पति या पत्नी अपनी पत्नी या पति का जब चाहे ऐसे ही संदेह के आधार पर उनका त्याग कर सकते हैं ? क्या यह संभव है या फिर होना चाहिए ? जवाब बहुत स्पष्ट और सपाट है बिल्कुल नहीं ।

गौरतलब है कि वर्तमान समय में विश्व के लगभग हर देश की तरह भारत में भी कई आपराधिक, उग्रवादी, अलगाववादी, तस्करी, देशद्रोही गिरोह और संगठन सक्रिय हैं और तेजी से सिकुड़ती दुनिया में बेतहाशा बढ़ते व्यक्तिगत लोभ, लालच, स्वार्थ और अपराध की मानसिकता वाले लोगों में अपने मानवीय और राष्ट्रीय कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति लापरवाही और अपराध की प्रवृति का विस्तार हुआ है, हो रहा है और हो सकता है । निरंतर ऐसी विषम होती परिस्थितियों में किसी भी देश के सामने उसकी राष्ट्रीय अस्मिता को सबसे ज्यादा खतरा उसके खुद के लोगों से बढ़ा है और उस पर अंकुश लगाने का सबसे बेहतर तरीका उनका अत्यंत सख्त राष्ट्रद्रोह कानून ही हो सकता है । यह विश्व के कई देशों में है । अतः इस कानून पर ज्यादा विचार और विमर्श सिर्फ और सिर्फ इस बात पर ही होना चाहिए कि एक राष्ट्र के रुप में राष्ट्रद्रोह कानून को हम कैसे ज्यादा उपयोगी और प्रभावी बना सकते हैं ? जिसका एकमात्र उत्तर यही है – इसे ज्यादा कठोर और त्वरित न्याय दिलाने वाली व्यवस्था का कानून बनाकर । यही होना भी चाहिए । हां, इस कानून के दुरुपयोग का जिन्हें ज्यादा भय है, वे इस कानून में त्वरित न्याय की अधिकतम समयावधि निश्चित कराने के साथ दुरुपयोग की स्थिति में दोषी अथवा षड्यंत्रकारी के विरुद्ध कठोर दंड का प्रावधान जोड़ने की मांग कर सकते हैं, ताकि इस कानून का दुरुपयोग होने की संभावना ना के बराबर रहे ।

अब बात देश में फिलहाल सबसे ज्यादा चर्चित समान नागरिक संहिता कानून की, जिसका लागू होना देर से ही सही अब लगभग तय माना जा रहा है । इस पर बहुत ज्यादा लिखने बोलने की कोई आवश्यकता इसलिए भी नहीं रह गई है कि देश के लिए इस कानून की महत्ता और जरूरत सिर्फ इस बात से ही सिद्ध हो जाती है कि पिछले नौ वर्षीय मोदी सरकार के कार्यकाल में इस सरकार के हर अच्छे काम पर भी हो हल्ला मचाने वाले, प्रश्नचिह्न लगाने वाले और धरना-प्रदर्शन करने-कराने वाले अधिकांश विपक्षी दल भी एक-एक करके इस कानून के पक्ष में खड़े होने को विवश होते दिखाई दे रहे हैं । बावजूद इसके इस बात में भी कतई संदेह नहीं है कि ये तमाम विपक्षी दल भी इस कानून के लागू करने पर किसी ना किसी रूप से, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से देश का माहौल खराब करने की, कई जगह अशांति फैलाने की, बेवजह धरना-प्रदर्शन कराने की कोशिश अवश्य करेंगे । अतः सरकार को चाहिए कि वह इस कानून को लागू करने का काम योजनाबद्ध तरीके से करे । जनता के साथ वह चर्चा कर चुकी, अब संसद में भी करे और फिर आवश्यकतानुसार सबकी शंकाओं के समाधान का प्रयास करते हुए इसे लागू करे । ऐसा करते हुए अनुभव जनित एक अंतिम बात वह अवश्य याद रखे कि इसको लागू करने के बाद इसके विरुद्ध होने वाले धरना-प्रदर्शनों के स्थान का वह प्रारंभिक दिनों से ही ध्यान रखे । धरना-प्रदर्शन से सार्वजनिक जीवन और परिवहन को बाधित करने वाले लोगों के विरुद्ध त्वरित और सख्त कार्रवाई करे ।