‘मूत्र संस्कार ‘ पर केवल चुनावी ‘डैमेज कंट्रोल ‘ नहीं बल्कि जड़ों पर प्रहार ज़रूरी

निर्मल रानी

मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में पिछले दिनों प्रवेश शुक्ला नामक एक भारतीय जनता पार्टी नेता द्वारा दशमत नाम के एक आदिवासी युवक के मुंह पर पेशाब करने का घिनोना मामला सोशल मीडिया की सक्रियता से काफ़ी तूल पकड़ गया। बताया जाता है की शराब के नशे में धुत्त मुंह में सिगरेट लगाए हुये एक ग़रीब दलित के मुंह और सिर पर पेशाब करते हुये अपनी वीडीओ भी इसी संकीर्ण मानसिकता के जातिवादी सोच रखने वाले प्रवेश शुक्ला नामक दुष्ट ने स्वयं ही बनवाई और वॉयरल की थी ताकि लोग इसकी दबंगई और मानसिकता से परिचित हो सकें। परन्तु जब सोशल मीडिया पर पासा उलट गया और लोग इस दुष्कृत्य की घोर निंदा करने लगे तो इसी हैवान की हिम्मत देखिये कि इसने पीड़ित दशमत व उसके परिजनों से अपनी दबंगई के बल पर आनन फ़ानन में अपनी बेगुनाही से सम्बंधित एक हलफ़नामा भी तैयार करा लिया। परन्तु तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी। मामला देश विदेश तक चर्चा का विषय बन चुका था। अपने राज व राज्य की बदनामी होते देख मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सक्रिय हो चुके थे। चूंकि राज्य में इसी वर्ष विधान सभा चुनाव होने वाले हैं इसलिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फ़ौरन सम्बंधित मामले में दिलचस्पी लेते हुये आरोपी प्रवेश शुक्ला पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एन एस ए ) लगवाई। उसके बाद आरोपी के घर पर बुलडोज़र चलवा दिया। इतना ही नहीं बल्कि चौहान ने पीड़ित दशमत को सीधी से भोपाल बुलाकर मुख्यमंत्री निवास में पूरे सम्मानजनक तरीक़े से मुलाक़ात की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने दशमत के पैर धोये उसे माला व शॉल पहनाकर सम्मानित किया। उन्होंने दशमत से माफ़ी मांगते हुए कहा,”मुझे बहुत दुख हुआ वह घटना देखकर, मैं माफ़ी चाहता हूं। ये मेरी ड्यूटी है, मेरे लिए तो जनता ही भगवान जैसी है।” बाद में मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया कि ”मन दुखी है. दशमत जी आपकी पीड़ा बाँटने का यह प्रयास है, आपसे माफ़ी भी माँगता हूँ, मेरे लिए जनता ही भगवान है!” शिवराज सिंह चौहान ने दशमत के साथ भोपाल में वृक्षारोपण भी किया।

इस घटना के तूल पकड़ने की कई वजहें हैं। सर्वप्रथम तो यह कि कुछ ही समय बाद मध्य प्रदेश राज्य विधानसभा चुनावों का सामना करने जा रहा है। और मध्य प्रदेश देश का सबसे अधिक आदिवासी आबादी वाला राज्य है जहां लगभग डेढ़ करोड़ आदिवासी जनजातीय लोग रहते हैं। दूसरी बात यह कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के बाद भाजपा ज़ोर शोर से यह प्रचार करती रहती है कि आदिवासी समुदाय के किसी व्यक्ति को पहली बार राष्ट्रपति पद पर बिठाने का श्रेय भाजपा को जाता है। ऐसे में ‘सीधी पेशाब काण्ड’ के बाद यह सवाल पूछा जाने लगा था कि जब एक आदिवासी समुदाय के व्यक्ति के राष्ट्रपति रहते उसी समुदाय के व्यक्ति के मुंह पर घोर जातिवादी मानसिकता का कोई व्यक्ति पेशाब कर सकता है फिर आख़िरआदिवासी समुदाय के सम्मान का ढोल पीटना कितना सही है ?अभी कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के शहडोल में आदिवासी समुदाय में श्रद्धा का पात्र रानी दुर्गावती को लेकर यह घोषणा की थी कि रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर मनाई जाएगी। उन्होंने रानी दुर्गावती के जीवन पर एक फ़िल्म बनाने व उनके सम्मान में सिक्का और डाक टिकट जारी करने की भी घोषणा की थी। परन्तु ‘सीधी पेशाब काण्ड’ के बाद आदिवासियों को अपने साथ जोड़ने के इन सभी प्रयासों पर पानी फिरता देख शिवराज चौहान को चरण धोने से लेकर माफ़ी मांगने तक सब कुछ करना पड़ा।

परन्तु यहाँ सवाल किसी एक घटना या केवल ‘सीधी पेशाब कांड’ का नहीं है बल्कि सवाल है ऐसे दूषित संस्कारों का। सवाल है उस शिक्षा और सीख का जिसके चलते ऐसे जातिवादी मानसिकता के लोगों के ज़ेहन में ऐसी नफ़रत किसी जाति या समुदाय विशेष के प्रति भरी होती है ? कौन सा ग्रंथ,कौन सा धर्म शास्त्र,कौन सा संस्कार ऐसे लोगों को इतनी नफ़रत सिखाता है ? दूसरे धर्मों व धर्म ग्रंथों में कमियां निकालने वाले अपने ही समाज व समुदाय की विसंगतियों को आख़िर क्यों नहीं देखते ? किसने अधिकार दिया कि जाति विशेष का व्यक्ति किसी व्यक्ति के मुंह पर पेशाब कर सके ? यह वही मानसिकता है जो कभी दलितों,आदिवासियों को घोड़ी चढ़ने से रोकती है। कभी थूक चटवाती है तो कभी जूते में पानी भर कर पिलाती है। मारना पीटना,अपमानित करना उनकी बेटियों से बलात्कार करना जैसी बातें तो आम हो चुकी हैं।

भारतीय जनता पार्टी व उसके कई सहयोगी व मातृ संगठन निश्चित रूप से इसके लिये प्रयासरत दिखाई तो देते हैं कि किसी तरह हिन्दू समाज में व्याप्त असमानता की खाई को पाटा जाये। वनवासी कल्याण आश्रम नाम की एक संस्था भी संघ के संरक्षण में काम कर रही है। परन्तु इसकी सक्रियता भी शायद केवल आदिवासियों का धर्म परिवर्तन रोकने तक ही सीमित रह गयी है। इस बात पर यह नज़र नहीं रखते कि आज आदिवासी या दलित धर्म परिवर्तन क्यों करते हैं? और बाबा साहब भीम राव अंबेडकर ने अपने लाखों साथियों के साथ धर्म परिवर्तन क्यों किया था ? याद कीजिए जब गुजरात दंगे के कुछ हत्यारों व बलात्कारियों को गुजरात सरकार की सिफ़ारिश पर जेल से समय पूर्व रिहा किया गया था उस समय भी गुजरात के गोधरा के बीजेपी विधायक सीके राउलजी ने दोषियों के समर्थन में एक आश्चर्यजनक बयान देते हुये कहा था कि अपराधी ‘संस्कारी ब्राह्मण’ थे।उन्होंने कहा था कि रेप केस के कुछ दोषी ‘ब्राह्मण’ हैं जिनके अच्छे ‘संस्कार’ हैं। यानी जाति के आधार पर संस्कार व चरित्र के प्रमाणपत्र बांटना ही दरअसल मनुवादी शिक्षा व संस्कार की देन है।

यही व्यवस्था भीमा कोरेगांव की 1 जनवरी 2018 के जश्न की मूल वजह बनी । वर्ण व्यवस्था से बाहर माने गए कथित ‘अस्पृश्यों’ के साथ जो व्यवहार प्राचीन भारत में होता था, वही व्यवहार पेशवा शासकों द्वारा महारों(दलितों ) के साथ किया जाता था। नगर में प्रवेश करते वक़्त महारों को अपनी कमर में एक झाड़ू बाँध कर चलना होता था ताकि उनके ‘प्रदूषित और अपवित्र’ पैरों के निशान उनके पीछे कमर पर लटकी व घिसटती हुई झाड़ू से साथ साथ मिटते जाएँ। यही नहीं बल्कि उन्हें अपने गले में एक बर्तन भी लटकाना होता था ताकि वो उसमें थूक सकें और उनका थूक ज़मीन पर न गिरे जिससे कोई सवर्ण ‘प्रदूषित और अपवित्र’ न हो जाए। वो सवर्णों के कुएँ या तालाब से पानी लाने के बारे में तो कल्पना भी नहीं कर सकते थे। स्वयं को श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि श्रेष्ठतम समझने का यही संस्कार अन्य समुदाय के लोगों से नफ़रत करने उन्हें कमतर व नीच समझने की प्रेरणा देता है। अन्यथा जिस देश का राष्ट्रपति आदिवासी हो उसी देश में आदिवासी के मुंह में पेशाब करना, फिर पेशाब करते हुये इस कुकृत्य की वीडियो बनाना फिर उसे वायरल करना फिर पीड़ित परिवार से हलफ़नामा लेना यहाँ तक कि पुलिस हिरासत में आने के बाद भी सीना तान के चलने का अर्थ है कि स्वयंभू श्रेष्ठता के संस्कारों की जड़ें बहुत गहरी हैं। अतः ”मूत्र संस्कार ‘ पर केवल चुनावी ‘डैमेज कंट्रोल ‘ काफ़ी नहीं बल्कि इस सोच,विचारधारा और संस्कारों की जड़ों पर प्रहार भी नितांत ज़रूरी है।