रमेश सर्राफ धमोरा
भारत की राजनीति में चन्द्रशेखर अकेले ऐसे नेता थे जो पूर्व में कभी किसी सरकार में मंत्री रहे बिना ही सीधे प्रधानमंत्री बने थे। उन्हे अपने जमाने में युवा तुर्क के रूप में जाना जाता था। कांग्रेस में रहते हुये चन्द्रशेखर ने रामधन व मोहन धरिया के साथ मिलकर कांग्रेस में एक जोड़ी बनाई थी जो उस वक्त अपनी बेबाक राय को लेकर खासी प्रसिद्ध हुयी थी।
चन्द्रशेखर का जन्म 1 जुलाई 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित इब्राहिमपटी गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। वो 1977 से 1988 तक जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे थे। चन्द्रशेखर अपने छात्र जीवन से ही राजनीति की ओर आकर्षित थे और क्रांतिकारी जोश एवं गर्म स्वभाव वाले वाले आदर्शवादी के रूप में जाने जाते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में अपनी मास्टर डिग्री करने के बाद वे समाजवादी आंदोलन में शामिल हो गए। उन्हें आचार्य नरेंद्र देव के साथ बहुत निकट से जुड़े होने का सौभाग्य प्राप्त था। वे बलिया में जिला प्रजा समाजवादी पार्टी के सचिव चुने गए एक साल के भीतर वे उत्तर प्रदेश में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के संयुक्त सचिव बने। 1955-56 में वे उत्तर प्रदेश में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के महासचिव बने।
1962 में वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए। वे जनवरी 1965 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1967 में उन्हें कांग्रेस संसदीय दल का महासचिव चुना गया। संसद के सदस्य के रूप में उन्होंने दलितों के हित के लिए कार्य करना शुरू किया एवं समाज में तेजी से बदलाव लाने के लिए नीतियां निर्धारित करने पर जोर दिया। इस संदर्भ में जब उन्होंने समाज में उच्च वर्गों के गलत तरीके से बढ़ रहे एकाधिकार के खिलाफ अपनी आवाज उठाई तो सत्ता पर आसीन लोगों के साथ उनके मतभेद हुए।
वे एक ऐसे युवा तुर्क नेता के रूप में सामने आए जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थ के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वे 1969 में दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ के संस्थापक एवं संपादक थे। चन्द्रशेखर हमेशा व्यक्तिगत राजनीति के खिलाफ रहे एवं वैचारिक तथा सामाजिक परिवर्तन की राजनीति का समर्थन किया। यही सोच उन्हें 1973-75 के अशांत एवं अव्यवस्थित दिनों के दौरान जयप्रकाश नारायण एवं उनके आदर्शवादी जीवन के और अधिक करीब ले गई। इस वजह से वे जल्द ही कांग्रेस पार्टी के भीतर असंतोष का कारण बन गए।
25 जून 1975 को आपातकाल घोषित किये जाने के समय आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया जबकि उस समय वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्य समिति व केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य थे। चन्द्रशेखर सत्तारूढ़ पार्टी के उन सदस्यों में से थे जिन्हें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।
आपातकाल के दौरान जेल में बिताये समय में उन्होंने हिंदी में एक डायरी लिखी थी जो बाद में ‘मेरी जेल डायरी’ के नाम से प्रकाशित हुई। ‘सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता’ उनके लेखन का एक प्रसिद्ध संकलन है। चन्द्रशेखर ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट में महात्मा गांधी की समाधि तक लगभग 4260 किलोमीटर की दूरी की पदयात्रा की थी। उनके इस पदयात्रा का एकमात्र लक्ष्य था लोगों से मिलना एवं उनकी महत्वपूर्ण समस्याओं को समझना।
उन्होंने सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा सहित देश के विभिन्न भागों में लगभग पंद्रह भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना की थी। ताकि वे देश के पिछड़े इलाकों में लोगों को शिक्षित करने एवं जमीनी स्तर पर कार्य कर सकें। 1984 से 1989 तक की संक्षिप्त अवधि को छोड़ कर 1962 से वे लगातार संसद के सदस्य रहे। चन्द्रशेखर का विवाह श्रीमती दूजा देवी से हुआ एवं उनके दो पुत्र पंकज सिंह और नीरज सिंह हैं।
युवा तुर्क के नाम से मशहूर रहे दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की आज पुण्यतिथि है। 8 जुलाई 2007 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उनका देहांत हो गया था। चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि वो पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे। जिन्होंने राज्य सरकार में मंत्री या केंद्र में मंत्री बने बिना ही सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
चंद्रशेखर एक प्रखर वक्ता, लोकप्रिय राजनेता, विद्वान लेखक और बेबाक समीक्षक थे। वे अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने के लिए जाने जाते थे। इस वजह से ज्यादातर लोगों की उनसे पटती नहीं थी। कॉलेज समय से ही वे सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए। सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए।
1975 में इमरजेंसी लागू हुई तो चंद्रशेखर उन कांग्रेसी नेताओं में से एक थे जिन्हें विपक्षी दल के नेताओं के साथ जेल में ठूंस दिया गया। इमरजेंसी के बाद वे वापस आए और विपक्षी दलों की बनाई गई जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। अपनी पार्टी की जब सरकार बनी तो चंद्रशेखर ने मंत्री बनने से इनकार कर दिया।
1990 में उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। जब उनकी ही पार्टी के विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बीजेपी के समर्थन वापस लेने के चलते अल्पमत में आ गई थी। उस समय चंद्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल में टूट हुई व 64 सांसदों का एक धड़ा अलग हुआ और उसने सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया। उस वक्त राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया। हालांकि प्रधानमंत्री बनने के बाद चंद्रशेखर ने कांग्रेस के मुताबिक चलने से इंकार कर दिया। चार महीने में ही राजीव गांधी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
1989 में जब जनता दल की गठबंधन सरकार बनी तो उस समय प्रधानमंत्री पद की रेस में चंद्रशेखर भी शामिल थे। लेकिन वीपी सिंह का पलड़ा भारी पड़ा। वीपी सिंह की पारी बहुत लंबी नहीं चली और 11 महीने के बाद ही उनकी सरकार गिर गई। फिर चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री के रूप में चार महीने मिले। उन चार महीनों में उन्होंने ये साबित किया कि वो प्रधानमंत्री पद के लायक हैं। चन्द्रशेखर सार्क सम्मेलन की बैठक में हिस्सा लेने मालदीव जा रहे थे। उन्हे विदेश मंत्रालय ने जो भाषण लिखकर दिया था उसे उन्होंने रास्ते में देखा लेकिन सम्मेलन में पढ़ा नहीं। उन्होंने ठेठ भाषा में अपना खुद का भाषण पढ़ा। चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने के लिए कोई सपना नहीं पाला था। लेकिन जब प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला तो उस चुनौती को पूरी तरह से स्वीकार किया।