- सियासत की चौपड़ पर बिसात बिछने लगी
डॉ. संजय कुमार श्रीवास्तव
जहां एक तरफ देश के विभिन्न हिस्सों में जनता मौसम की मार झेल रही हैं वहीं आम आदमी की पहुंच से टमाटर दूर होता जा रहा है। अब तो टमाटर की लालिमा को लोग वैसे ही देखकर प्रणाम रहे हैं जैसे सुबह के समय उगते सूरज की लालिमा देख लोग सूर्यदेव को प्रणाम करते हैं। हद तो तब हो गई जब लोगों ने सुना कि टमाटर के दाम पेट्रोल के दाम को भी पीछे छोड़ चुके हैं। उत्तराखंड के गंगोत्री धाम में टमाटर 250 रूपये किलो और उत्तरकाशी में 180 से 200 रूपये किलो बिक रहा है। बढ़ती कीमतों का खामियाजा आम उपभोक्ता भुगत रहे हैं लेकिन सियासतदानों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें तो आने वाले चुनावों की चिंता है चाहे वो विधान सभा का चुनाव हो या फिर लोक सभा का चुनाव। थोक और फुटकर सब्जियों के दाम में हुई बढ़ोतरी से जनता काफी परेशान है। देश के सभी राज्यों में इन दिनों सब्जियों के दाम काफी बढ़ गए है। सब्जियों के बढ़ते दाम को लेकर सियासत भी गरमा गई है और सियासर की चौपड़ पर बिसात बिछने लगी है।
जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदिक आ रहे हैं वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियों के दिलों की धड़कने तेज होती जा रहीे हैं लेकिन सब्जियों के दाम और खासतौर पर टमाटर के बेलगाम होते दाम आम जनता की धड़कने रोकने को तैयार हैं। सियासत की चौपड़ पर बिसात बिछने लगी है। एक तरफ जहां कांग्रेस राजस्थान सहित विभिन्न स्तरों पर अपने पार्टी में बदलाव कर रहीं हैं वहीं दूसरी तरफ भाजपा भी अपने संगठन को और मजबूती देने के लिए बदलाव करने की तैयारी में हैं। इस बार के चुनाव में एक सबसे बड़ा जो बदलाव या फिर यूं कहे कि सोशल मीडिया पर तकनीकी युद्ध आर्टिफिसियल इंटेलीजेस संभाल सकते हैं और आर्टिफिसियल इंटेलीजेस के प्रयोग से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। हो सकता है एआई का इस्तेमाल कर यह भी पता लगाया जा सके कि आने वाले दिनों में टमाटर की मंगाई की वजह से सत्ताधारी पार्टी को कितना नुकसान हो सकता है और विपक्ष को कितना फायदा हो सकता है।
एक राष्ट्रीय चैनल पर एक दूल्हे को टमाटर की माला पहने हुये दिखाया जा रहा था। दूल्हा जिस (बग्घी) रथ पर बैठा था उसे भी टमाटर से सजाया गया था। टमाटर की कीमतों में अचानक बढ़ोत्तरी से हस कोई परेशान है कुछ लोग मंहगे टमाटर पर रिल्स बना रहे हैं जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहे हैं। और अब तो टमाटर के खेंतों से चोरियां भी होने लगी हैं। अब बेचारी पुलिस लोगों की सुरक्षा करे या फिर किसानों के खेतों में लगे टमाटरों की चौकीदारी करे। लेकिन राजनीतिज्ञों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि टमाटर ने जनता को बेहाल कर दिया है।
चुनावों के मद्देनज़र पार्टियां रेवड़ियां बांट रहीं हैं लेकिन किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री खाद्य-पदार्थों की किमतों को कम करने का उपाय नहीं कर रहें हैं। विपक्ष मंहगाई के मुद्दे या फिर अन्य मुद्दों पर अपनी रोटियां सेंक रहा है लेकिन अगर देखा जाये तो खुद जहां उनका षासन है वहां वो मंहगाई को रोकने में नाकामयाब है। आजकल राजस्थान में में भी सत्ताधारी पार्टी धन का सदुपयोग कर रही है लोगों को विभिन्न योजनओं में खूब पैसे बांट रही है लेकिन जनता को चाहिए तो सिर्फ चैन से दो जून की रोटी।
एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अपने 9 साल पूरे होने पर लोगों को उपलब्धियां बताने में लगी हुई हैं वहीं विपक्ष जगह-जगह प्रर्दषन कर रहे हैं लेकिन कोई भी नेता सब्जियों के बढ़ते दाम पर बोलने को तैयार नही। टमाटर सहित तमाम सब्जियां और खाद्य सामग्री के दामों में बढ़ोतरी हुई है, ऐसे में सरकार को अपने 9 साल की उपलब्धियों में महंगाई को भी जनता के सामने रखना चाहिए।
सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए प्याज के दाम जब 100 रूपये के पार चले गये थे तब उसी प्याज की बदौलत कांग्रेस की सरकार को जनता ने धूल चटा दिया था और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी और अब जबकि टमाटर का दाम भी 150 रूपये किलो हो चुका है तो टमाटर की कीमतों को लेकर विपक्ष द्वारा सरकार पर दबाव डाला जा सकता है। विपक्ष यह दावा कर रहा है कि सरकार उचित नीतियों को अपनाकर टमाटर की महंगाई से निपटने में असमर्थ है और वे जनता की गरीबी और आम आदमी की जीवनस्तर को प्रभावित कर रही हैं। विपक्ष इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बना सकता है और सरकार को जवाबदेह ठहराने की कोशिश कर सियासी जाल में फंसा सकता है।
टमाटर की महंगाई चुनावी बिगुल के रूप में बजाया जा सकता है। टमाटर की कीमतों में तेजी से वृद्धि हो रही है। और जनता को इससे प्रभावित होना पड़ रहा है। मंहगाई एक आम राजनीतिक मुद्दा बन सकता है जो वोटरों की ध्यान और समर्थन को प्रभावित कर सकता है। इससे प्रभावित होकर लोग बजट की कटौतियों, सरकारी नीतियों और आर्थिक प्रबंधन पर आपत्ति व्यक्त कर सकते हैं। इस संदर्भ में, राजनीतिक दल और नेता इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाकर लोगों के समर्थन को प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं।
चुनावी बिगुल के तहत, विपक्ष या विभिन्न दल टमाटर की महंगाई के मुद्दे पर नजर रख सकते हैं और सरकार को इसे सुलझाने के लिए जवाबदेह बना सकते हैं। इसके अलावा, चुनावी बिगुल के तहत, यह भी देखा जा सकता है कि किस दल या नेता ने किसानों की समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दिया जायेगा और उन्हें किस तरह से हल करने की नीतियों का प्रस्ताव दिया जायेगा । टमाटर की महंगाई के मुद्दे पर प्रवक्ता, वाद-विवाद और नीतियों के बयानों को तोड़-मरोड़ कर चुनावी प्रचार में भी उपयोग किया जा सकता है। चुनावी बिगुल के माध्यम से, महंगाई जनता के मन में आर्थिक मुद्दों को उजागर करती है और उनकी जीवनस्तर पर सीधा प्रभाव डालती है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो राजनीतिक दलों के लिए जनता के साथ संपर्क स्थापित करने और उनके वोटरों के ध्यान को आकर्षित करने का माध्यम बन सकता है। अब ये देखना है टमाटर सियासत को कितना लाल करता है जनता तो बेहाल है ही।