भाजपा का अन्तर्द्वन्द्व

सुरेन्द्र चतुर्वेदी

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए सेमी फाइनल की तरह सामने आ रहे हैं। चुनाव तो तेलांगाना में भी हैं, लेकिन वहां पर भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए वो वहां अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने पर ही ध्यान लगाए हुए है। लेकिन बाकी के तीनों राज्यों में भाजपा के लिए वापसी करना ही 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले उसे मनोवैज्ञानिक जीत दिलाएगा।

इन राज्यों में 82 लोकसभा सीट हैं, जिसमें से भाजपा के पास 65 लोकसभा सीट हैं। मध्यप्रदेश में 29 में से 28, राजस्थान में 25 में से 24 (एक सीट नागौर को भाजपा ने गठबंधन में दे दिया था, बाद में वह पार्टी राजग को छोड़ गई ), छत्तीसगढ़ में 11 में से 9 और तेलंगाना की 17 में से 4 सीटों पर भाजपा के सांसद हैं। इसमें रोचक तथ्य यह है कि इन राज्यों में कांग्रेस के मात्र छह सांसद हैं। तेलंगाना में मुख्य दल तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी आर एस ) है जिसके 9 सांसद हैं। एक सांसद एआईएमआईएम के असदुदीन आवैसी हैं।

यह भाजपा को श्रेष्ठ प्रदर्शन है। भाजपा को इससे भी आगे बढ़ना है और यदि इससे आगे ना भी बढ़ पाए तो भी इस संख्या को बनाए रखने की चुनौती है । विधानसभा चुनाव में भाजपा की रणनीति ही यह तय करेगी कि भाजपा का लोकसभा में प्रदर्शन कैसा रहेगा। 2018 के चुनावों के बाद भाजपा ने तीनों ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे और रमन सिंह को राज्य की राजनीति से अलग कर राष्ट्रीय राजनीति में लाने का मन बनाया था, लेकिन तीनों ने ही राज्य से बाहर जाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, बल्कि भाजपा ने तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद शिवराज सिंह को फिर से मध्यप्रदेश की बागडोर सौंप दी।

भाजपा के सामने समस्या यह है कि इन तीनों ही राज्यों में दूसरी पंक्ति में कोई सशक्त नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आया। जितने भी प्रदेश अध्यक्ष पिछले बीस वर्षों में बनाए गए, वे प्रभावी विकल्प के रूप में उभर नहीं पाए। वे भी पार्टी और सरकार के बीच बेहतर समन्वय बिठाने की बजाय पार्टी में ही एक और नया धड़ा बनकर रह गए। स्थिति यह है कि शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे और रमन सिंह ही ऐसे नेता बचे हैं, जिनके पीछे जनाधार है। प्रदेश के मतदाताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं के बडे़ वर्ग को इनपर भरोसा है।
भाजपा का केन्द्रिय नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे को आगे रखकर चुनाव में जाना चाहता है, लेकिन राज्यों के नेताओं का मत है कि प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के साथ ही राज्य में भी किसी ना किसी नेता को आगे किया जाए जिससे मतदाताओं और कार्यकर्ताओं में पार्टी की धारा स्पष्ट हो सके कि राज्यों में भाजपा का नेतृत्व कौन करेगा।

भाजपा का एक वर्ग यह भी मानता है कि हर चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा आगे रखने का नुकसान यह भी होता है कि उस राज्य में चुनाव के परिणाम विपरीत आने की स्थिति में प्रधानमंत्री की अजेय छवि धुंधली होती है। राज्यों का नेतृत्व स्पष्ट होने से राज्यों के परिणाम की जिम्मेदारी भी उन नेताओं की ही होगी।

भाजपा को समझने और जानने वाले समीक्षक यह मानते हैं कि शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे और रमन सिंह के लिए आगामी विधानसभा चुनाव उनकी राजनीतिक पारी का आखिरी चुनाव है। यदि ये तीनों नेता आगामी चुनाव जीतते हैं तो भी आखिरी पारी है और हारते हैं तो भी । बस अंतर इतना पडे़गा कि यदि भाजपा इन तीनों राज्यों में वापसी नहीं कर पाती है, तो लोकसभा चुनाव के परिणामों पर भी इनका असर दिखेगा।

सुरेन्द्र चतुर्वेदी, जयपुर
सेंटर फार मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट