हरियाली का प्रतीक ‘हरेला’ लोकपर्व

ओम प्रकाश उनियाल

यूं तो प्रकृति को समर्पित कई लोकपर्व हैं जो कि समय-समय पर मनाए जाते हैं। इन लोकपर्वों का अपना अलग ही महत्व होता है। ऋतुचक्र के हिसाब एवं अपनी-अपनी परंपराओं के हिसाब से ये पर्व मनाए जाते हैं। लोकपर्व लोक संस्कृति, कला, सभ्यता, रहन-सहन, खान-पान, बोली-भाषा, वेशभूषा व परंपराओं के संवाहक होते हैं। लोकपर्वों के आगमन की हरेक को प्रतीक्षा रहती है। लोकपर्व नयी उमंग, नयी तरंग व नया उल्लास भर जाते हैं लोगों के मन में। प्रकृति संरक्षण व संवर्धन को समर्पित लोकपर्व ‘हरेला’ उत्तराखंड में बड़े हर्षोल्लासपूर्वक मनाया जाता है। साधारण शब्दों में ‘हरेला’ हरियाली को कहा जाता है। कुमाऊं मंडल में यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। अच्छी फसल होने, सुख-संपत्ति, धन-धान्य व पशु कल्याण की कामना ईश्वर का आशीर्वाद लेकर की जाती है। इस दिन सरकारी, गैर-सरकारी तौर पर पौधारोपण कार्यक्रमों का आयोजन जगह-जगह किया जाता है। जैसाकि, आज जलवायु-परिवर्तन केे कारण जिस प्रकार से मौसम में असमय बदलाव होता रहता है उसका मुख्य कारण धरती से हरियाली का नष्ट किया जाना ही है। धरती पर जितनी हरियाली होगी उतनी उसकी पकड़ मजबूत बनेगी। भू-कटाव, भू-धंसाव, बाढ़ जैसी आपदाओं में कमी आएगी। ऐसे लोकपर्वों के माध्यम से आमजन में प्रकृति को बचाने की जागरुकता आती है।