संवेदनशीलता से ओत- प्रोत है उपन्यास “फ़ितरत”

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

काव्य और नाटक की अपेक्षा नवीनतम होते हुए भी उपन्यास आधुनिक काल की सर्वाधिक लोकप्रिय और सशक्त साहित्य विधा है। इसमें मनोरंजन का तत्त्व तो अधिक रहता ही है, साथ-साथ जीवन को इसकी बहमुखी छवि के साथ व्यक्त करने की शक्ति और अवकाश भी रहता है। इसमें सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन को उभारने का प्रयास किया जाता है। इसमें सामान्य जीवन के द्वन्द्व ,फैलाव और गति का समावेश, अन्य साहित्यिक विधाओं की तुलना में अधिक होता है। हिंदी साहित्य के सिपाही, माता भारती के अनन्य उपासक और बहुमुखी प्रतिभा के धनी मनीषा मंजरी एक संवेदनशील उपन्यासकार है, जिनकी रचनाओं में संवेदनाओं का समावेश दिखता है। मनीषा मंजरी के क़लम से निकला उपन्यास “फ़ितरत” जो कि अभय, मीरा और लक्षित की कहानी है।

कहानी में समाज सेवा के साथ – साथ आत्महत्या जैसे समस्याओं से जूझते इंसान के मनोदशा को बड़ा ही सुंदर शब्दों में फिल्माया गया है। साथ ही वर्तमान प्रेम का पागलपन को भी दिखाया गया, जिसमें प्रेमी आत्महत्या या फिर दूसरे के जान लेने तक पड़ आ जातें हैं, जो कि समाज को कलंकित कर रहा है। इनकी उपन्यास की भाषा शैली भी सरल और सहज है जो कि पाठकों के दिलों में आसानी से जगह बना ले रही है। कहानी की धारा अनवरत प्रवाहित हो रही है, जिससे कि पाठक एक – दूसरे क़िस्सों से जुड़ता जा रहा है। यह प्रवाहित धारा उपन्यास में चार चाँद लगा रही है। उपन्यास के प्रत्येक भाग को पढ़ने के बाद पाठक की जिज्ञासा बढ़ती जाती है।

इस उपन्यास के पात्रों की बात करें तो अभय एक डॉक्टर है, जिसके अंदर मानवीय संवेदना कूट – कूट के भरा हुआ है। वह एक ऐसा इंसान है , जिसे पता है कि उसका प्रमुख मक़सद रोगियों का सटीक इलाज है। उसके लिए अस्पताल और मरीज़ ही सबकुछ है। किसी व्यक्ति के जीवन की सफलता का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि फलां का व्यक्तित्व कैसा है। उसी के आधार पर उसके सम्पूर्ण कर्मों का लेखा जोखा तैयार किया जाता है।

काजी शम्स ने कहा है- “किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उन लोगों से समझा जा सकता है जिनके साथ वो मिलता जुलता है।” अभय के सुंदर और सरल व्यक्तित्व को होस्टपिटल में मरीजों के साथ किए जा रहे उसके व्यवहारों से देखा जा सकता हैं। कैसे वह एक छोटी बच्ची के इलाज के दौरान उसे उसी की भाषा में समझा कर उस बच्ची के मन को शांत रक देता है तो वहीं सुसाइड केश आने के बाद वो अपनी जिम्मेदारियों से तबतक नहीं भागता है जबतक अगले डॉक्टर आ नहीं जाते। इस तरह से अभय अपने व्यक्तित्व के माध्यम से सभी के दिलों पर राज करने लगता है।

वर्तमान समाज में आत्महत्या एक बड़ी समस्या बन गई है और यह उपन्यास इस विषय को भी बारीकी से रेखांकित कर रहा है। लक्षित एक हँसमुख इंसान होने के बावजूद भी प्रेम में पड़ कर आत्महत्या का रास्ता अपना लेता है। हमारे देश ही नहीं, पूरी दुनिया में अकेलेपन, अवसाद और आत्‍महत्‍या के मामले बढ़ रहे हैं। बल्कि यूं कहना ठीक होगा कि आत्‍महत्‍या एक महामारी का रूप धरती जा रही है।

एक पूरा जीवन जो इस धरा पर आने में सतरंगे सपनों से लेकर नौ माह का खूबसूरत समय लेता है, अचानक अपनों को रोता-बिलखता छोड़कर चल देता है अज्ञात में सुख खोजने। लक्षित अस्पताल में ठीक होने के बावजूद भी बार – बार डॉक्टर से लड़ कर भागने की कोशिश करता है और बॉलकोनी से कूदने का भी प्रयास करता है लेकिन क्या इससे उसके जीवन की तकलीफ़े दूर ही रही थी, बिलकुल नहीं। इस उपन्यास ने दिखाया है कि आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि जीवन के हर कठिनाइयों से लड़ के जीत जाना ही जीवन की परिणति है।

जीवन में मिले जख्मों को जीवन के अंत का कारण न बनाये बल्कि उसे अपनी मजबूती बना कर जीवन में आगे बढ़ते जाना चाहिए। उपन्यास की एक पात्र अवनी शर्मा के शब्दों में -“ये दर्द हीं है, जो हमें एक नए और बेहतर स्तर पर ले कर जाती है, बस हिम्मत मत हारना और बढ़ते जाना। ये ढलती हुई शाम हीं है जो एक नया सवेरा भी लाती है, और ग़मों को जीत कर हीं खुशियां भी मुस्कुराती हैं।”

एक तरफ़ लक्षित प्रेम में दृष्टि के ले जान देने तक आ जाता है तो वहीं प्रेम का एक दूसरा रूप या यूं कहें कि पागलपन लक्षित के अंदर दिखता है जो मीरा के मना के करने के बाद इसे बस के सामने धक्का दे कर मारने का प्रयास करता है। लक्षित अपनी एक्स गर्लफ्रैंड दृष्टि को भुलाने के लिए मीरा के संवेदनशीता का फ़ायदा उठा कर उसके साथ रिश्तों में आ जाता है और जब मीरा को हकीकत का पता चलता है तो उसका साथ छोड़ने जाती है तो उसे बस के सामने धक्का दे देता है। प्रेम का अमानवीय रूप भी उपन्यास का एक हिस्सा है , जिसके माध्यम से यह उपन्यास समाज को मैसेज दे रहा है कि किसी के प्रेम में पड़ कर अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए।

पुस्तक: फितरत
लेखक: मनीषा मंजरी
प्रकाशन: सहित्यपिडिया प्रकाशन
मूल्य: 250 रुपये