सुरेंद्र चतुर्वेदी
लोकसभा चुनाव से लगभग 9 महिने पहले सारे विपक्षी दलों ने मोदी के खिलाफ ताल ठोक दी है। बंगलूरू में एकसाथ आये इन दलों ने कांग्रेस द्वारा 1999 में बनाए यू पी ए को तिरोहित कर दिया और एक नया राजनीतिक ढ़ांचा खड़ा कर दिया जिसका नाम इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इनक्लुसिव एलायेंस रखा गया है। इस अजीबो गरीब एलायेंस का नाम भारत के मतदाताओं को नहीं समझा सकते, इसलिए हर शब्द का पहला अक्षर लेकर इंडिया बना दिया। इसे किसी चतुर आदमी ने ही रचा होगा, जिससे यह साबित किया जा सके कि मोदी सरकार की लड़ाई इंडिया से है और इंडिया को जिताने के लिए मोदी को हराना ही होगा।
परन्तु चतुर राजनीतिक रणनीतिकार यह नहीं समझ पाऐ कि भारत में दो समानांतर अवधारणाएं चलती हैं। एक अवधारणा इंडिया को पोषित करती है तथा दूसरी अवधारणा भारत को परिलक्षित करती है। इंडिया यानि ऐसी सत्ता की प्राप्ति, जो अंग्रेजों के जाने के बाद अस्तित्व में आई, जिसमें सत्ता अत्यंत बलशाली है और यह सत्ता सुख भोगने के लिए अर्जित की जाती है। पश्चिमी दृष्टिकोण से ग्रस्त यह अवधारणा नागरिकों को सत्ता प्राप्ती का उपकरण मात्र मानती है। उसकी राजनीति नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए नहीं अपितु वोटों की प्राप्ति पर केन्द्रित होती है। इंडिया की राजनीति जोड़ तोड़ और अवसरवादिता पर टिकी है। इसलिए वो धर्म के आधार पर, जातियों के नाम पर नागरिकों में भेद करती है।
जबकि दूसरी अवधारणा भारत की है, जिसमें भारत के नागरिकों के प्रति समान दृष्टिकोण परिलक्षित होता है। भारत की आत्मा से साक्षात्कार करती यह अवधारणा भारत के मन को अभिव्यक्त करती है। यह भारतीय नागरिकों को वोटों की निगाह से नहीं देखकर उनके मंतव्य को अभिव्यक्त करती है। वह विदेशी नजरिये से भारत को नहीं देखती अपितु भारतीय नजरिये से पूरी दुनिया को अवगत कराती है। उसे भारत के सामर्थ्य पर विश्वास है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी भारत की राजनीतिक अभिव्यक्ति हैं।
संक्षेप में समझा जाए तो परिवारवादी राजनीतिक दलों ने अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए इंडिया का आवरण ओढ़ लिया है। यह बौद्धिक बेइमानी का अद्भुत उदाहरण है। यह सीताहरण के लिए रावण के साधु हो जाने जैसा ही है। रोचक तथ्य यह है कि मोदी सरकार के खिलाफ सभी विपक्षी दल एक साथ मिलकर चुनाव लडें, इस सोच के साथ पहल करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस राजनीतिक परिदृष्य से गायब होते दिखे और सोनिया गांधी इस कथित एलायेंस का अगुआ बनती दिखीं। कांग्रेस से सोनिया गांधी, राहुल गांधी भी इस बैठक में शामिल हुए। हालांकि कांग्रेस ये दावा करती है कि उनकी पार्टी में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं और पूरी पार्टी उन्हीं के निर्देशन में चल रही है, इसमें गांधी परिवार का कोई हस्तक्षेप नहीं है। लेकिन बंगलुरू की बैठक में तो ऐसा नहीं दिखा ! इस बैठक की बागडोर श्रीमती सोनिया गांधी ने संभाल रखी थी। ऐसा लगा कि खड़गे तो वहां औपचारिकता निभाने के लिए लाए गए हैं। गांधी परिवार के अलावा बैठक में शरद पवार, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, एम के स्टालिन, सीताराम येचुरी, भगवंत मान,अरविंद केजरीवाल, लालू यादव, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन, उद्धव ठाकरे, उमर अब्दुल्ला, मेहबूबा मुफ्ती और डी राजा जैसे नेता भी जुटे। इनमें जद यू के नीतीश कुमार, वामपंथी दलों के सीताराम येचुरी, डी राजा और आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल व भगवंत मान को छोड़ दें तो सभी नेता अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए इंडिया का सहारा ले रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि भारत की राजनीति में इंडिया शब्द का प्रयोग पहली बार हो रहा है, 1974 में कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरूआ ने भी ‘ इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ का नारा दिया था। लेकिन तब भारत के नौजवान, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति के लिए आंदोलनरत हो चुके थे। इस बैठक में उपस्थित नीतीश कुमार और लालू यादव भी उसी आंदोलन के रास्ते से राजनीति में आए। उस आंदोलन को दबाने के लिए और इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अयोग्य घोषित किए जाने की प्रतिक्रिया में 25 जून 1975 की मध्य रात्रि को भारत में आपातकाल लगा दिया गया था और सरकार विरोधी राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को इंदिरा सरकार ने गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया था। लेकिन आपातकाल हटने के बाद भारत ने इंदिरा को सत्ता से बेदखल कर दिया फिर किसी राजनीतिक दल ने इंडिया शब्द के साथ राजनीतिक खिलवाड़ नहीं किया। अब लगभग 50 वर्ष बाद फिर से अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए इन दलों ने इंडिया का सहारा लिया है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले लोकसभा चुनावों में इंडिया एकजुट होकर भारत का मुकाबला करता है, या सीटों की आपसी खींचतान में इंडिया की एकजुटता महज दिखावा बनकर रह जाएगी। कांग्रेस इस एलायेंस के माध्यम से अपनी खोई जमीन को पाने का अवसर बनाने की रणनीति पर काम कर रही है और क्षेत्रीय दल अपनी ताकत को किसी भी हालत में कांग्रेस के साथ बांटने को तैयार नहीं हैं। ऐसी स्थिति में यह एलायेंस मोदी को हराने के लिए कितना एकजुट रह पाता है यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन यह तय है कि इन विपक्षी दलों ने अपने इस एलायेंस को इंडिया बताकर मोदी के हाथ में भारत रूपी ब्रहमास्त्र दे दिया है। जिसके चलते इस बार इंडिया का मुकाबला भारत से होगा।