विवादों में घिरा I.N.D.I.A.

डॉ संजय कुमार श्रीवास्तव

यूपीए का नाम बदलकर इंडिया. रखने पर विवाद शुरू हो चुका है। दिल्ली के बाराखंभा थाने में अवनीश मिश्रा नाम के एक शख्स ने एफआईआर दर्ज करवायी है जिसमें कहा गया है कि इंडिया नाम रखना इंब्लेम एक्ट का उलंघन है इस एक्ट के तहत अपने निजी फायदे के लिए इंडिया का नाम या प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और प्रयोग अनुचित है। इससे लोगों की भावनाएं आहत हुयी हैं।

17 जुलाई को 26 दलों के नेताओं ने बेंगलुरू में दो दिनों तक चली विपक्षी दलों की बैठक में यूपीए गठबंधन का नया नाम INDIA (इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस) तय किया गया। इस मीटिंग का सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि नीतीश कुमार के संयोजक बनाने की घोषणा भी नहीं की गयी और बेंगलुरू में उनके खिलाफ पोस्टर भी चिपके मिले सो अलग । अब सवाल ये उठता है कि क्या नाम बदल लेने से चरित्र बदल जाता है। मुझे याद है बचपन में हम लोग एक टूथपेस्ट का प्रयोग करते थे जिसका नाम हुआ करता था बिनाका। बीबीसी पर अमिन सयानी द्वारा बिनाकागीत माला भी प्रस्तुत किया जाता था। कुछ सालों बाद कम्पनी ने बिनाका का नाम सिबाका रख दिया और विज्ञापन दिये गये बिनाका अब नये नाम सिबाका के साथ। कंपनी का अनुमान गलत निकला, जैसे ही बिनका का नाम बदल कर सिबाका रखा गया वो उत्पाद बाजार से ही गायब हो गया। कहने का तातपर्य ये है कि अब जबकि लोगो की मानसिकता बन चुकी है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री हो या बंगाल, बिहार के मुख्यमंत्री हों या फिर कांग्रेस सही अन्य छोटी-बड़ी पार्टी हो, सभी लोग भ्रष्टाचार में लिप्त है ऐसी दषा में नाम बदलने से चरित्र नहीं बदल जाता और न ही लोगों की सोच को बदल सकते हैं। आज का वोटर समझदार हो चुका है मूर्ख बनाना आसान नहीं है।

विपक्षी दलों के सभी 26 राजनीतिक पार्टियों द्वारा यूपीए का नाम बदलने के पीछे की मानसिकता को समझना जरूरी है। सभी राजनीतिक दलों को मालूम है कि अगर यूपीए का नाम लेकर वोटरों के बीच जायेंगे तो इन सभी को कोई घास नहीं डालेगा क्योंकि इन सभी काले चिट्ठे जनता के बीच प्रचारित और प्रसारित हैं क्यों आज की डिजिटल मीडिया के माध्यम से लोगों तक सूचनाएं पलभर में पहुंच रही है। कोई भी समाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है।

पटना के पहली बैठक से ही पार्टी का ना नाम बदलने की कोशिश में थे. आखिरकार] इन्होंने एक नया नाम अपने गठबंधन का रख लिया। ये अलग बात है कि अभी इस नाम पर बवाल मचना बाकी है। या यूँ कहे धमाके की गूंज सुनाई देने लगा है। बाराखंभा थाने में दर्ज हुयी एफआईआर इसका नवीन उदाहरण है। अभी तो कोर्ट कचहरी के चक्कर लगने बाकी है साथ ही इलेक्शन कमीशन अभी नाम बदलने की सहमती देगा या नहीं ये अलग बात है। भारत की जनता ने 2014 में जिन जिन कामों के लिए नरेंद्र मोदी जी को चुना था] उन्होंने तो बखूबी अपना काम किया। मंहगाई और बेरोजगारी का रोना ये सभी 26 दलों के नेता रो रहे हैं। क्या कांग्रेस बता सकती है जनसंख्या बढ़ने के साथ ही बेरोजगारी और रोजगार के बीच अनुपात क्यूं बढ़ता चला गया।

इसके बाद इन 26 दलों के बीच जो भी कुछ तय होगा क्या वो सभी को मान्य होगा। सबसे पहले तो किस दल का प्रधानमंत्री बनेगा ये ही तय नहीं हो पायेगा। इसका कारण ये है कि सभी दलों के प्रमुख नेता प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं सबसे बड़ी बात कुछ दिनों पहले ही बनी नयी राष्ट्रीय पार्टी आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल भी प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं। दिल्ली में आये बाढ़ की तबाही लोग भूले नहीं है जब दिल्ली नहीं संभल रही है तो क्या देश को सम्भालने की उम्मीद क्या ही किया जा सकता है। दूसरी तरफ नीतीश कुमार भी प्रधान मंत्री बनने का प्रयास करेंगे क्यूंकि उन्होंने अपने प्रधानमंत्री बनने की काबिलीयत की घोषणा पहले की कर चुके हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री भी प्रधान मंत्री की दौड़ में हैं। अब प्रश्न उठता है जहां इतने सारे लोग प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं क्या राहुल गांधी को समझौता करना होगा। या फिर सोनिया गांधी जो कितने वर्षो से अपने बेटे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का प्रयास कर रही है उस बात को भूल पायेंगी कि वो सबसे बड़ी और सबसे पुरानी पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री पद से वंचित रखा जाये।

इन सभी दलों में से कोई भी ऐसा दल नहीं जिसपर पर किसी न किसी रूप में कोई भ्रष्टाचार का आरोप न लगा हो। नाम और वेशभूषा बदल कर भारत की जनता ठगना चाह रहे हैं लेकिन ये सभी दल कितना सफल होंगे ये तो आने वाला चुनाव ही बतायेगा। हर एक दल भ्रष्टाचार और परिवारवाद में आकंठ डूबा है और उसी को बचाने की पूरी कवायद की जा रही है। हालांकि, इनके बैठक का हाल यही जान लीजिए कि जो नीतीश जी खुद को पीएम पद का उम्मीदवार मान रहे थे] उन्हीं के नाम के विरोध में पोस्टर बेंगलुरू में चौतरफा चिपकवा दिए गये। अब ये नहीं कहा जा सकता कि ये पोस्टर किसने चस्पा किया ।

इंडिया (पार्टी का नाम) विवादों में घिरता नज़र आ रहा है। इसका इस तरह से भी समझ सकते हैं कि अगर इस पार्टी से कोई पार्टीं टूट कर किसी अन्य पार्टी में चला जाता है क्या ये कहा जायेगा कि इंडिया में फूट पड़ गया है जिसके परिणाम स्वरूप इंडिया अब टूट चुका है। या फिर हो सकता है कि ये कहा जायेगा कि इंडिया की एक पार्टी के सदस्य दलबदलू हो गये हैं। इस तरह हम देख सकते है कि इस तरह निजी स्वार्थ के लिए हम अपने देष के नाम को ही बदनाम करेंगे और इसका प्रभाव वैष्विक स्तर पर पड़ना तय है। आज हम पूरे विष्व में सर उठा कर बात करते हैं परन्तु कल यदि इस पार्टी का कोई नेता प्रधानमंत्री बनता है और इस पार्टी के अन्दरूनी लड़ाई में आगे क्या होगा आप स्वयं समझ सकते हैं।

कांग्रेस भारत की राजनीति में खुद को सभी का मठाधीश समझती है। गठबंधन में जो भी दल षामिल हो रहे हैं। उसमें कांग्रेस की मर्जी के बिना कुछ नहीं हो सकता। अब जबकि इन पार्टियों के पास कुछ बचा नहीं है, इसलिए अब देश के नाम की आड़ में छिपना चाह रहे हैं। इतना तो तय है कि जो भी पीएम पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करेगा, कांग्रेस उसका यही हाल करेगा। क्या नीतीश कुमार को ये नहीं सोचना चाहिए कि बिहार की बेइज्जती हो रहीे है। और सबसे बड़ी बात इस तरह के महागठबंधन बनाने का लक्ष्य सिर्फ एक व्यक्ति विशेष को हटाने के लिए और दूसरी तरफ कोई एक व्यक्ति अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए महागठबंधन में षामिल हो रहा है। आखिर भारत की जनता को ये लोग कब जक ठगते रहेंगे। जागो वोटर जागो, कहीं ऐसा न हो कि हम अपने स्वार्थ को पूरा करने के चक्कर में हम हाथ मलते न रह जायें कहीं ऐसा न हो कि पोस्टर फाड़कर एक ऐसा प्रधानमंत्री निकल जाये जो इंडिया बनी पार्टी सचमुच में भारत का नाम डुबो दे जैसे अभी दिल्ली] हिमाचल और पंजाब डूब रही है। पूरे भारत को पता है कि यह ठगबंधन है जो पूरे भारत की जनता को ठगने पूरे जोश के साथ 2024 के चुनावी मैदान में उतरने की कोशिश कर रहा है।