ना इधर ना उधर- जरुरत पड़ी तो किंगमेकर होंगे इधर

गोविन्द ठाकुर

2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर, देश के 64 दलों ने अपने को दो गुटों में विभाजित कर लिया है। एनडिए और इंडिया। एनडिए में 38 दल बीजेपी के नेतृत्व में है, तो इंडिया कांग्रेस की अगुआई में 26 दल हैं। लेकिन देश के कुछ प्रमुख दल हैं जो अपने को ना तो इधर रखा है और ना ही उधर, वो फिलहाल तटस्थ हैं। पिछले चुनाव में भी वे लगभग अलग ही थे। इस लेख में हम उन दलों की राजनीति और उनकी ऱणनीति को लेकर बात करते हैं।

बसपा- सबसे पहले हम बहुजन समाज पार्टी को लेकर ही बात करते हैं। पार्टी सुप्रीमो मयावती ने घोषणा कर दिया है कि वह अगामी लोकसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी। पिछले 2014 के चुनाव में बसपा अकेले लड़ी थी और एक भी सांसद चुनकर लोकसभा नहीं पहुच पाया था। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ मिलकर बड़ा दाव लगाया था, मगर अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली थी । बसपा का 10 सांसद और सपा का मात्र 5 सांसद लोकसभा पहुंच पाये थे। मगर यह गठबंधन अधिक दिन तक नहीं चल पाया मायावती ने यह कहते हुए गठबंधन तोड़ दिया कि उसे सपा के वोट नहीं मिले.। जबकि सपा के मात्र 5 सांसद ही जीत पाये थे। जबकि बसपा के 10 जीते थे । कायदे यह आरोप सपा का बनता था मगर मायावती ने ही आरोप मढ दिया था। अब इसमें राजनीति क्या है, कि बसपा अकेले चुनाव लड़ने की बात कह रही है। विरोधी दल जो आरोप लगते हैं कि उसपर केन्द्र का दवाब है कि किसी गठबंधन का हिस्सा ना बने। वरना केन्द्रीय ऐजेंसी की शिकार हो सकती है। दुसरा वह अपनी संगठन को मजबूत करने के लिए सभी सीटों से उम्मीदवार उतारेंगी फिर बाद में जिसकी सरकार बनती दिखेगी उसका समर्थन कर देंगे।

बीजेडी- नवीन पटनायक शुरु से ही कांग्रेस विरोधी खेमे के साथ रहे हैं, क्योंकि उड़ीसा में कांग्रेस ही बीजेडी के खास विरोधी दल रहा है। फिर पीएम मोदी से दोस्ती और सभी तरह की सुबिधा के लिए केन्द्र से टकराने की क्या जरुरत है। तभी तो आज तक किसी भी तरह की केन्द्रीय ऐजेंसी की कार्यवायी उड़ीसा सरकार के खिलाफ नहीं हुई। हो सकता है कि ऐसी कोई गलत नज़र नहीं आयी हो। ये बात भी देखने को मिलती रही है, कि जब भी मोदी सरकार को किसी भी तरह की जरुरत बीजेडी की हुई । नवीन पटनायक ने खुलकर सरकार की मदद की है । चाहे मुददा जो भी रहा हो। अगर जरुरत पड़ी तो, आगे भी बीजेडी बीजेपी को साथ दे सकती है। तभी तो नीतीश कुमार को नवीन पटनायक के वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा था।

बीआरएस- चंद्रशेखर राव कांग्रेस छोड़कर ही तेलंगाना में पार्टी ,फिर सरकार बनाई थी और आज भी बीआरएस का मुकाबला कांग्रेस से ही होता है। मगर कुछ समय से बीजेपी ने राज्य में तेजी से पैर पसार दिया है। जो राव को परेशान कर रहा है। फिर भी वह कांग्रेस के साथ नहीं, बल्कि तीसरे गुट बनाने की कवायद में रहे हैं। मगर ऐसा नहीं होने पर वे अलग ही रह रहे हैं। मौका मिला तो वे फिर से बीजेपी को ही हेल्प करेंगे, नहीं तो शर्तों के साथ इंडिया गठबंधन को।

वाईएसआर- आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रैडी की भी लगभग चंद्रशेखर राव की तरह ही राजनीति है। 2010 में जगन को जब कांग्रेस ने सीएम नहीं बनाया तो वह कांग्रेस छोड़कर वाएसऐर कांग्रेस पार्टी बना ली। कांग्रेस के खिलाफ जगन हमेशा बीजेपी को ही साथ देते आ रहे हैं। कारण एक ही है जगन के पास वहीं वोट है जो कांग्रेस की रही है। बीजेपी का आंध्र प्रदेश में कोई जनाधार नहीं तो तो बीजेपी से खतरा नहीं है। आगे जरुरत पड़ी तो जगन भी बीजेपी को हेल्प कर सकते हैं।

इसके अलावा कई और दल हैं जो विशेष प्रभाव नहीं छोड़ते हैं जैसे असम के बदरुददीन तैयब एआईयूडी, असुउद्दीन ओवैसी,। इन्हें इंडिया गठबंधन में इसले जगह नहीं दी गई है कि इनके आने से हिन्दू वोटों को बीजेपी आसानी से गोलबंद कर लेगी।

हां, अगर इंडिया गठबंधन चुनाव परिणाम में सत्ता के करीब होगा तो उपर के सारे दल इनको सरकार बनाने में समर्थन दे सकते हैं, और अगर बीजेपी एनडीए सरकार बनाती दिखी तो ये सारे बीजेपी की ओर हो सकते हैं। ये सारा खेल जिसे 200 से उपर सीट आ रहा हो और सरकार बनाने में बाहरी ताकतों की जरुरत होगी तब की है।