पिंकी सिंघल
“अरे सुरभि क्या हुआ कल से तुम मुंह फुला कर क्यों बैठी हो,कुछ तो बताओ। देखो, इतने सुंदर चेहरे पर उदासी बिल्कुल नहीं फबती, तुम तो हंसती खिलखिलाती हुई ही अच्छी लगती हो। सुबह से शाम तक तुम्हारी बक बक सुनकर ही दिल को चैन आता है या यूं कहो कि तुम्हारी आवाज जिस दिन ना सुनूं, उस दिन मेरा दिन ही अच्छा नहीं जाता” ,सोमेश ने सुरभि को प्रेमपूर्वक छेड़ते हुए कहा।
सोमेश की इस बात के जवाब में सुरभि मुंह बनाने लगी।”जाओ सोमेश,ज्यादा बातें न बनाओ, मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी,एक तो इतना बड़ा कॉन्ट्रैक्ट तुमने यूं ही हाथों से जाने दिया,इतना बड़ा नुकसान हुआ है हमें, क्या तुम्हें इस बात का अंदाजा नहीं। वैसे तो दुनिया भर में एक सफल व्यापारी होने का तमगा लिए फिरते हो, पर इतना सुनहरा अवसर तुमने जानबूझकर गंवा दिया। जाओ मुझे तुमसे कोई बात ही नहीं करनी ,कहते हुए सुरभि ने सोमेश का हाथ दूसरी तरफ झटक दिया।
सोमेश ने सुरभि को प्यार से समझाया,”देखो सुरभि, तुम्हारी बात बिलकुल ठीक है। मैं मानता हूं कि यह कॉन्ट्रैक्ट ना लेने से हमारा बहुत बड़ा नुकसान हुआ है ,परंतु क्या यह सच नहीं है कि हमारे इस नुकसान के सामने पर्यावरण को होने वाला नुकसान बहुत बड़ा होता जिसकी भरपाई हमारे साथ साथ हमारी आगे आने वाली पीढ़ियों तक को भी करनी पड़ती।यदि मैं यह कॉन्ट्रैक्ट ले लेता तो एक बार फिर न जाने ना कितने ही पेड़ कटते और खेती योग्य भूमि को उद्योग में तब्दील करने के लिए एक बार फिर धरती माता का शोषण होता,एक बार फिर प्रकृति चीत्कार उठती।पर्यावरण और प्रकृति का वह करूणा भरा रूदन स्वर मैं नहीं सुन पाता और मेरे मन में सदा सदा के लिए एक टीस और पश्चाताप रह जाता कि मैं अपने पर्यावरण को प्रदूषित होने से नहीं बचा पाया ,अपितु मैंने तो जानबूझकर प्रकृति को प्रदूषित करने में अपना योगदान दिया है।”
प्रकृति के प्रति सोमेश का अगाध प्रेम और चिंता देखकर सुरभि की आंखों में आंसू आ गए।अब उसे अपने पति पर अति गर्व महसूस हो रहा था।सोमेश की पीठ थपथपाते हुए सुरभि ने जो कहा वह नितांत सराहनीय है।सुरभि के शब्द थे ,
“उमेश, आज मुझे तुम पर बहुत ज्यादा गर्व महसूस हो रहा है।आज के आधुनिक युग में जहां पैसा कमाने की दौड़ में हर इंसान अंधा हो चला है और अपने इस अंधेपन में उसे यह भी नजर नहीं आता कि तरक्की और प्रगति हासिल करने की होड़ में वह अपने ही पर्यावरण को दूषित कर रहा है ,अपनी ही प्रकृति की सुंदरता को खराब कर रहा है,वहां तुम हर संभव प्रयास कर रहे हो कि पर्यावरण और प्रकृति संरक्षित रहे इसे थोड़ा सा भी नुकसान ना पहुंचे।”
“आज के समय में जहां लोग इंसानों तक के बारे में नहीं सोचते,वहां तुमने प्रकृति के बारे में सोचा और इतना अच्छा सोचा, यह देख कर आज मैं फूली नहीं समा रही हूं।अब मैं तुमसे बिल्कुल नाराज नहीं हूं,अपितु मैं स्वयं भी प्रण लेती हूं कि आज के बाद मैं प्रकृति के संरक्षण और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करूंगी।मैं न तो स्वयं ऐसा कोई कार्य करूंगी जिससे प्रदूषण फैले और न ही किसी अन्य को ही ऐसा कोई कार्य करने दूंगी।”