सुरेन्द्र चतुर्वेदी
लो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज विपक्ष के सीने पर सीधा प्रहार कर दिया। कह दिया कि ’ मेरे तीसरे कार्यकाल में भारत विश्व की पहली तीन आर्थिक महाशक्ति में से एक होगा।’ उनकी यह घोषणा उन सभी विपक्षी नेताओं और दलों के लिए सीधी चुनौती है, जो अपने गठबंधन का नाम ठीक से नहीं बोल पाने के कारण उसे ’इंडिया -इंडिया’ कहकर पुकार रहे हैं।
दरअसल, यह लड़ाई राजनीतिक ना होकर व्यक्तिगत होती जा रही है। इस कथित गठजोड में जितने भी दल जुड़ रहे हैं, वो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए एकजुट हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी चाहे जितना मुस्लिम वर्ग को साथ में लाने के लिए सरकारी प्रयास कर लें लेकिन मुस्लिम मतदाता भी जानता है कि जितनी उच्छंखलता वह इस कथित गठबंधन के राज में कर सकता है, उतने ही अनुशासन में उन्हें भाजपा के शासन में रहना होगा। इसीलिए मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा वर्ग इस कथित ’इंडिया’ का ही समर्थन कर रहा है। मुस्लिम मतदाताओं के इसी दबाव को समझते हुए अब इस गठजोड़ में मुस्लिम लीग का भी प्रवेश हो गया है। याद है ना यह वही मुस्लिम लीग है जो भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस कथित गठबंधन के नेताओं के आत्मविश्वास को चुनौती देते दिख रहे हैं। उधर इस कथित ’इंडिया’ की ओर से एक भी नेता या दल ने प्रधानमंत्री मोदी की चुनौती का जवाब देने की हिम्मत नहीं दिखाई है। इस गठबंधन का प्रमुख दल कांग्रेस तो खुद उच्चतम न्यायालय के राहुल गांधी पर आने वाले निर्णय के इंतजार में बैठी है। सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद की दावेदार होंगी नहीं और प्रियंका गांधी पर सोनिया और राहुल सहमत नहीं हैं, इसलिए कांग्रेस असमंजस की स्थिति में है। बाकि बचे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पहले ही इस गठबंधन से अलग थलग किया जा चुका है। इसके चलते वो कितने दिन ’भारत’ से दूर रह पाते हैं, यह देखना बड़ा ही रौचक होगा, क्योंकि लालू प्रसाद यादव तो खुद ही अपने पुत्र तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य को बनाने के लिए नीतीश कुमार की राजनीतिक बलि देने को तैयार बैठे हैं।
लगभग ऐसा ही हाल बंगाल में ममता बनर्जी, महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे का है। यह सभी नेता अपने राजनीतिक जीवन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस बिखरते गठबंधन में एक राजनेता जरूर अपनी उच्छंखलता को प्रदर्शित कर रहा है वो हैं आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ! केवल एक लोकसभा सदस्य वाली आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल को इस कथित ’इंडिया’ में कोई गंभीरता से भी लेता होगा, यह उनके नेताओं के बुद्धि सामर्थ्य पर उठा यक्ष प्रश्न है।
आंकडों पर निगाह डालें तो 2019 के चुनाव में 37.43 प्रतिशत मत प्राप्त कर भाजपा ने 303 सीटों पर कब्जा जमाया था, जबकि एन डी ए को कुल 45 प्रतिशत वोट मिले थे और उसके 354 सांसद जीते थे। उधर यू पी ए जो अब चोला बदलकर कथित रूप से ‘इंडिया’ हो गया है को कुल 26 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसमें कांग्रेस का हिस्सा 19.51 प्रतिशत था। इन चुनावों में कांग्रेस के 52 और यू पी ए को 91 सांसद चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे। 26 प्रतिशत से 45 प्रतिशत तक की यात्रा ये गठबंधन कैसे पूरी करेगा? इस मूल प्रश्न का जवाब किसी भी रणनीतिकार के पास नहीं है।
यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस कथित ‘इंडिया’ के पास कोई भी चमत्कारिक नेतृत्व नहीं है। जबकी एन डी ए के पास मोदी जैसा ना केवल चमत्कारिक अपितु श्रेष्ठ रणनीतिक कौशल वाला राजनेता है, जिसने 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी 2014 से ही शुरू कर दी थी। बीते नौ सालों में मोदी ने भाजपा का राज्यों में विस्तार बड़ी तेजी के साथ किया है। दक्षिणी भारत जहां भाजपा एक कमजोर दल के रूप में मानी जाती थी, वहां कर्नाटक से बाहर भी अन्य राज्यों में उसका प्रभाव क्षेत्र बढ़ा है।
इसके उलट इस कथित ‘इंडिया’ गठबंधन की हालत यह है कि कांग्रेस को पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, झारखण्ड और दिल्ली जैसे राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए भी अपने गठबंधन के सहयोगियों के सामने मिन्नतें करनी पडेंगी। यदि इन राज्यों की लोकसभा सीटों की बात करें तो उनकी संख्या 283 होती है। तो प्रश्न यह उठता है कि जिस कथित ‘इंडिया’ के मुख्य घटक दल के पास इन सीटों पर चुनाव लड़ाने तक की क्षमता ना हो, वहां वे मोदी को हरा पाने में कितना सफल हो पाएंगें ?
इसीलिए मोदी की गर्जना से कथित ‘इंडिया’ गठबंधन का दिल बैठ गया है। इस गठबंधन को यह समझना चाहिए कि आज भारत की राजनीति जिस निर्णायक मोड पर आ पहुंची है, वहां चुनावी जुमले और अवसरवादी गठजोड़ को भले ही इंडिया कह दिया जाए, लेकिन यह चुनाव भारत की अस्मिता की ओर जा रहा है, जिसे भारत ही जीतेगा।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी, जयपुर
सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट