दीपक कुमार त्यागी
गाजियाबाद जनपद के कुछ क्षेत्र की जनता को इस बार यमुना नदी व हिंडन नदी में अचानक से आयी बाढ़ के चलते वर्ष 1978 में आयी बाढ़ वाले बेहद दुष्कर हालातों से रूबरू होना पड़ रहा है। हालांकि इस बार बाढ़ के प्रकोप के चलते देश में जगह-जगह लोगों को जान-माल की भारी क्षति उठानी पड़ रही है। ऐसी स्थिति में आम जनमानस के दिमाग में एक प्रश्न बार-बार कौंध रहा है कि यमुना नदी में बाढ तो पुश्ता कटने की वजह से आ गयी थी, लेकिन गाजियाबाद के जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर की दूरी पर बह रही हिंडन नदी में बाढ़ के हालात प्राकृतिक रूप से कम बने हैं, यहां बाढ़ के हालात मानव जनित अधिक हैं, हालांकि अच्छी बात यह है कि हिंडन का जलस्तर तेजी से घटने के चलते जगह-जगह जमा हुआ बाढ़ का जल तेजी से कम होने लगा है। लेकिन अब आम जनमानस के अनुसार हिंडन में बाढ़ की ऐसी स्थिति में विचारणीय तथ्य यह हैं कि आखिरकार हिंडन नदी का कौन-कौन गुनाहगार है, आखिर वह कौन-कौन लोग हैं जो इस बाढ़ की आपदा को बुलाने के लिए जिम्मेदार है।
*”हिंडन के गुनहगारों का उत्तर ढूंढने पर हर तरफ से केवल एक ही आवाज़ आती है कि, हिंडन नदी का सबसे बड़ा गुनहगार वह चंद अफसर है, जिन लोगों पर हिंडन नदी की समय रहते हुए धरातल पर गाद, कचरा व जल कुम्भी आदि निकलवा कर के धरातल पर साफ-सफाई करवाने का जिम्मा था। हिंडन में बाढ़ के लिए वह सभी भू-माफिया व उनके सहयोगी लोग गुनाहगार है, जिनके काले-कारनामों से नदी के प्राकृतिक जल बहाव वाले क्षेत्र में भी अवैध रूप से प्लाटिंग करके बड़े पैमाने पर लोगों को निरंतर बेखौफ होकर के बसाने का कार्य किया जा रहा है। वहीं गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के प्रवर्तन विभाग के वह चंद लोग जिम्मेदार हैं, जिन पर हिंडन नदी के आसपास के क्षेत्र में अवैध प्लाटिंग करने पर रोक लगाने का जिम्मा था, जीडीए का यह विभाग ना जाने क्यों चुपचाप आंख मूंदकर के हिंडन नदी में चल रहे अवैध प्लाटिंग के खेल को देखने का कार्य कर रहा था। क्षेत्रीय जनता का यह आरोप है कि समय-समय पर गाजियाबाद में तैनात रहे कुछ बेहद जिम्मेदार अफसरशाहों व भू-माफियाओं के गठजोड़ ने हिंडन नदी की भूमि को जिस तरह से अवैध प्लाटिंग के माध्यम से बेचकर के जमकर कमाई करने का कार्य किया है, वह अक्षम्य अपराध है, जिसके चलते ही हिंडन नदी के क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात बन गये हैं। आज के हालात में विचारणीय तथ्य यह है कि कैसे सरकारी अमले के रहते हुए हिंडन नदी के डूब क्षेत्र में भू-माफियाओं ने किस प्रकार से बेखौफ होकर के हिंडन नदी की भूमि पर ही लोगों को अवैध प्लाटिंग करके बड़े पैमाने पर बसाने का खेल कर दिया, लोगों का आरोप है कि इसमें करोड़ों-अरबों रुपए का खेल सरकारी जमीनों पर प्लाटिंग करवाने व उस पर अवैध रूप से भवन निर्माण करवाने के नाम पर हुआ है। जिसके चलते ही आज मानव के कुकृत्यों के द्वारा लगभग मृतप्राय कर दी गयी हिंडन नदी में बाढ़ आई है। वैसे आज के हालात में देखा जाये तो हिंडन के गुनहगारों की लिस्ट इतनी लंबी हो गयी है कि अब दोषियों को सजा देना किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं यह केवल ईश्वर के वश की ही बात है।”*
धरातल पर आलम यह है कि देश की राजधानी दिल्ली व जनपद मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर से होकर गुजरने वाली पोराणिक व ऐतिहासिक महत्व वाली हिंडन नदी मृतप्राय होने के कगार पर पहुंच गयी और हमारा सिस्टम तमाशबीन बनकर बैठा हुआ केवल तमाशा देखता रहा है। सिस्टम व आम जनमानस की उपेक्षा का शिकार होने के ही चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जनपदों से होकर गुजरने वाली हिंडन नदी एक गंदे नाले में तब्दील होकर रह गयी थी। हालांकि देखा जाये तो मुख्य रूप से हिंडन नदी वर्षा पर निर्भर रहने वाली एक बड़ी बरसाती नदी है, जो कि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद में शाकुंभरी देवी रेंज के ऊपरी हिस्से शिवालिक रेंज से निकलती है। वैसे हिंडन नदी से जुड़े कुछ आंकड़ों की बात करें तो इस नदी का अनुमानित जलग्रहण क्षेत्र 7,083 वर्ग किलोमीटर (2,735 वर्ग मील) है और यह यमुना नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जो कि उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जनपद में पहुंचकर यमुना नदी में मिल जाती है।
हिंडन नदी में जीवन की बात करें तो बाढ़ से पहले तक हिंडन नदी में प्रदूषण के चलते जलीय जीव लगभग खत्म हो चुकें थे। हमारे सिस्टम की जबरदस्त लापरवाही के चलते अब यह नदी शहरों की अवैध प्लाटिंग, गंदा पानी व औद्योगिक कचरों के भार को ढोती हुए एक बड़े गंदे नाले के रूप में नज़र आने लगी थी, लेकिन हिंडन नदी में आयी बाढ़ ने एकबार लोगों को फिर से उसके महत्वपूर्ण नदी होने का अहसास अवश्य करवा दिया है।
हालांकि मृतप्राय हो चुकी हिंडन नदी को पूरी तरह से प्रदूषणमुक्त करके पुनर्जीवित करने को लेकर के समय-समय पर सिस्टम के द्वारा लंबे-चौड़े दावे किये जाते रहे हैं। लेकिन अगर हम लोगों को बाढ़ से पहले के हालात याद हो तो धरातल पर स्थिति ‘ढ़ाक के तीन पात’ से ज्यादा कुछ नहीं थी। हिंडन नदी के स्वच्छता अभियान व अतिक्रमण मुक्त करने के नाम पर सिस्टम ‘थोथा चना बाजे घना’ की नीति पर काम कर रहा था।
केवल हम लोगों को खुली आंखों से सपना दिखाया जाता है कि हिंडन नदी को साफ करके उसके दोनों किनारे की तरफ भूमि को कब्ज़ा मुक्त करवाकर, उस पर वृक्षारोपण करके भविष्य में भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त रखने व जल प्रवाह को गति प्रदान करने का कार्य किया जायेगा, लेकिन अफसोस यह खूबसूरत सपना ना जाने क्यों धरातल पर लंबा समय बीत जाने के बाद मूर्त रूप ले नहीं पा रहा है। कुछ समय पहले तो सिस्टम ने सपना दिखाया था कि हिंडन नदी के दोनों किनारों पर सौंदर्यीकरण करके लभभग 37 किलोमीटर लंबा एक बहुत ही सुंदर व शानदार रिवर फ्रंट बनाया जायेगा, जिसका हिंडन प्रेमियों को अभी तक भी बेसब्री से इंतजार है।
लेकिन आज हम लोगों व सिस्टम के सामने सबसे अहम विचारणीय तथ्य यह है कि कैसे समय रहते हिंडन नदी की बाढ़ से त्रस्त लोगों व जीव जंतुओं को राहत दी जाये, हालांकि इसके लिए गाजियाबाद का जिला प्रशासन जिलाधिकारी आरके सिंह के नेतृत्व में दिन-रात एक करके लगा हुआ है, वहीं क्षेत्रीय सांसद व केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल डॉक्टर वी.के. सिंह स्वयं लगातार क्षेत्र में घूम कर बचाव व राहत कार्य चलवा रहे हैं। लेकिन लोगों के जहन में सबसे बड़ा यह सवाल है कि बाढ़ खत्म होने के बाद सिस्टम क्या हिंडन नदी के गुनहगारों को ढूंढ करके उनके खिलाफ धरातल पर कोई ठोस कार्रवाई कर पायेगा। क्या हिंडन नदी में तेजी से हो रहे अवैध प्लाटिंग के कारनामों पर सिस्टम रोक लगा पायेगा। क्या हिंडन नदी के कैचमेंट एरिया में अवैध खनन व बसावट पर पूरी तरह प्रतिबंध लग पायेगा, क्या भविष्य में हिंडन नदी चैनेलाइजेशन और सिल्ट, कचरे व जल कुम्भी आदि की सफाई का कार्य भी समय से किया जाए। क्या हम लोग भी तेजी से बढ़ती आबादी के जीवन के लिए बेहद जरूरी स्वच्छ जल के स्रोतों की रक्षा करने की अहमियत समय रहते समझ पायेंगे।