गोपेंद्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली।देश में भौगोलिक भू भाग की दृष्टि से देश के सबसे बड़े प्रान्त राजस्थान में इस वर्ष के अन्त में होने वाला विधान सभा चुनाव तीन महीनों पहलें ही बहुत ही नाटकीय मोड़ पर आ कर खड़ा हों गया है। एक समय था जब देश के प्रधान मंत्री राज्यों के विधान सभा चुनावों में झांकते तक नही थे और बहुमत में आने वाला दल अपना मुख्यमंत्री भी स्वयं ही चुनता था लेकिन कालान्तर में राजनीतिक हालात इतने बदले कि हर पार्टी का दिल्ली में बैठा हाई कमान प्रदेश की राजनीति पर बहुत ही हावी होने लगा। यहाँ तक कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अथवा हाई कमान और प्रधानमंत्रियों का हस्तक्षेप इतना अधिक बढ़ गया है कि आज उनकी इजाज़त के बिना प्रदेशों में पन्ना तक नही हिल सकता ।
वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी द्वारा देश में आपातकाल लागू करने से पूर्व और पश्चात देश में राजनीति की दिशा और दशा ही बदल गई लेकिन यह भारतीय लोकतन्त्र की ही खूबी है कि जनता ने तानाशाही रवैया अख़्तियार करने वाली हर पार्टी और उसके नेताओं को समय-समय पर ज़ोरदार सबक़ सिखा कर अपनी ताक़त दिखाई है।देश में पिछले कुछ वर्षों के घटनाक्रम इसके गवाह है।
राजस्थान के गौरव शाली एवं वैभव पूर्ण इतिहास के अनेक पन्नों के साथ ही यदि हम प्रदेश के राजनीतिक इतिहास पर दृष्टि डाले तों पायेंगे कि इस मरु प्रदेश ने देश में कई नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं ,जैसे कि 1967 में देश के इतिहास में पहली बार किसी प्रदेश के प्रतिपक्ष के विधायकों ने अपना बहुमत दर्शाने के लिए नई दिल्ली पहुँच कर राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के समक्ष अपनी हेड काउंटिंग कराई जिसमें देश के उप राष्ट्रपति बने भैरों सिंह शेखावत भी शामिल थे,लेकिन इसके बावजूद संयुक्त विधायक मोर्चा के नेता चुने गए डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मण सिंह प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार नही बना पायें तथा कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया ने राजस्थान में देश के इतिहास का पहला दल बदल करवा पुनः राज्य सत्ता हथिया ली और प्रदेश में लगातार सत्रह वर्षों तक राज करने का इतिहास भी बनाया।
कमोबेश आज राजस्थान अपने राजनीतिक इतिहास की एक और करवट लेने जा रहा है क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार किसी प्रदेश की चुनाव की कमान कोई प्रधानमंत्री सम्भालने जा रहे है। भाजपा सूत्रों के अनुसार शीर्ष स्तर पर हुए फैसले के अनुसार इस वर्ष चार प्रदेशों में होने वाले चुनावों में मध्य प्रदेश की कमान भाजपा के चाणक्य केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह सम्भालेंगे। इसी तरह छत्तीस गढ़ की जिम्मेदारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के कन्धों पर रहेंगी जबकि तेलंगाना की कमान पार्टी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बी एल सन्तोष सम्भालेंगे लेकिन एक अनहोनी के रूप में राजस्थान की जिम्मदारी इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद सम्भालने जा रहें है। राजनीतिक पण्डित इसके पीछे कई गूढ़ रहस्य बता रहे है। वर्ष 2014 में जब भाजपा में लाल कृष्ण आडवाणी सहित पार्टी के कई बड़े वटवृक्षों के धराशायी होने के बाद देश में नरेन्द्र मोदी युग का अभ्युदय हुआ था तब भारत का नक्षा भगवा रंग से सराबोर होने लगा था और 2019 आते आते भाजपा का वर्चस्व अश्वमेध रथ की तरह पूरे देश में क्रमशः फैलता ही गया और भाजपा को विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का गौरव भी मिला। मोदी के करिश्मे ने देश विदेश में अपने ऐसे झण्डे गाढ़े कि पूरी दुनिया में भारत की विश्व गुरु जैसी प्रतिष्ठा दिखाई देने लगी। इस पूरे दौर में कांग्रेस पहले चार प्रदेशों में मिली विजय के बाद दो राज्यों के हाथ से छिटकने से राजस्थान और छत्तीस गढ़ तक ही सिमट कर रह गई और लगने लगा कि भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का नारा साकार होने वाला है लेकिन इस पूरे काल खण्ड में भाजपा के समक्ष पूरी ताकत के साथ निर्भय होकर एक शख़्स डटा रहा । वह और कोई नही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे जिन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस की नीतियों सिद्धान्तों और कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के साथ साथ न केवल अपनी सरकार को गिराने की साज़िशों से बचाया बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों और तथाकथित गैर संविधानिक कदमों की आलोचना करने में भी वे सबसे अधिक बेबाक़ टिप्पणियों के साथ मुखर रहें ।इसके अलावा वे कांग्रेस आला कमान की कदम-कदम पर सुरक्षा करने और ताकत बनने में भी कामयाब रहें।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी सौची समझी रणनीति के द्वारा कांग्रेस में सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा रचे गए राजनीतिक चक्रव्यूह को पूरी तरह भेदना चाहते है ताकि राजस्थान से देश भर में फैली गहलोत की लोकप्रिय योजनाओं और साढ़े चार साल बाद भी राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर नही होने तथा दो बार की पूर्व वसुन्धरा राजे को हाशिये पर रखने से प्रदेश बीजेपी द्वारा गहलोत के खिलाफ़ कोई बड़ा मुद्दा खड़ा नही कर पाने की कसर चुनाव की सारी कमान अपने हाथों में लेकर करना चाहते है । पी एम मोदी की प्रदेश में पिछलें नौ माह में आठ यात्राओं में गहलोत सरकार पर आक्रमक रवैया अख़्तियार करना यह दर्शाने के लिए काफ़ी है कि इस बार राजस्थान में गहलोत बनाम मोदी की सीधी लड़ाई तय है ।इससे पीएम मोदी के कई अन्य मन्तव्य भी पूरे होंगे। मोदी चाहते है कि पिछली दो बार की तरह अगले वर्ष होने वाले लोक सभा चुनाव में भी भाजपा द्वारा प्रदेश की सभी पच्चीस सीटें जीतने की तिकड़ी बनने का नायाब रिकार्ड भी बने।अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजस्थान की राजनीति के रण में इन दो चाणक्य महारथियों में से विजयश्री किसका वरण करेंगी और रेगिस्तान प्रधान राजस्थान में ऊँट किस करवट बैठेगा?