अशोक मधुप
अमेरिका का दूसरा परमाणु जापान के शहर नागासाकी की जगह क्योटो पर गिराया जाना था. सौभाग्य देखिए कि अमेरिका के युद्ध मंत्री की कृपा से वह बच गया. तीसरे शहर का भाग्य ने साथ दिया. क्योटो के लक्ष्य बदलने के बाद तै था कि कोकुरा पर बम गिराया जाए,पर आकाश में बादल होने के कारण चालक दल ने उसे छोड़कर उसकी जगह नागासाकी को अपना निशाना बनाया.
अमेरिका के शीर्ष नेतृत्व ने टोक्यो, कावासाकी, योकोहामा, नगोया, ओसाका, कोबे, क्योटो, हिरोशिमा, कुरे, यवाता, कोकुरा, शिमोसेंका, यामागुची, कुमामताओ, फुकुओका, नागासाकी और ससेबो जैसे शहरों को हमले के लिए चुना . हिरोशिमा को अमेरिकी हमले में अबतक कम नुकसान हुआ था ,इसलिए क्योटो को परमाणु टारगेट में इसे टॉप पर रखा गया. टोक्यो पहले ही तबाह हो चुका था इसलिए दूसरे नंबर पर क्योटो को रखा गया और योकोहोमा तीसरे नंबर पर.टारगेट कमेटी के वैज्ञानिकों ने क्योटो को प्राथमिकता दी क्योंकि ये शहर कई विश्वविद्यालयों का केंद्र था और उन्हें लगा कि वहां के लोग ये समझ पाएंगे कि परमाणु बम और अस्त्रों जैसा एक सामान्य हथियार नहीं था, ये मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. अब क्योटो टारगेट हिट लिस्ट में टॉप पर था और नागासाकी नीचे.
वह 1920 का दशक था. कहा जाता है कि अमेरिका के युद्ध मंत्री हेनरी एल. स्टिमसन अपनी पत्नी के साथ हनीमून मनाने के लिए जापान के क्योटो शहर आए थे. इस शहर के खूबसूरत नजारों ने उनके मन को मोह लिया और वह इसकी सुंदरता और संस्कृति को तबाह होते नहीं देखना चाहते थे. अमेरिका ने जब परमाणु हमले के लिए शहरों की लिस्ट बनाई तो स्टिमसन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमैन के सामने क्योटो को इस लिस्ट से हटाने की मांग को लेकर अड़ गए.
स्टिमसन जंग से जुड़े फैसलों को प्रभावित करने की क्षमता रखते थे. उनके अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रूमैन से अच्छे संबंध थे. वो ट्रूमैन को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर क्योटो पर हम परमाणु हमला करते हैं तो आनेवाले कई सालों तक जापान और अमेरिकी के रिश्ते में नरमी नहीं आ सकती क्योंकि क्योटो जापानियों के लिए एक शहर नहीं, एक धरोहर है, उनकी संस्कृति है… ये खत्म हो गया तो दोनों देशों के बीच की दूरी पाटने में सदियों लग सकते हैं। और इस तरह क्योटो शहर परमाणु हमले से बच गया।क्योटो तो बच गया। परमाणु बम गिराने के लिए उसकी जगह कोकुरा को चुना गए।कोकुराके बाद नागासाकी का नंबर था।
नौ अगस्त को अमेरिकी बमवर्षक विमान जापान के कोकुरा शहर पर परमाणु बम गिराने जा रहे थे ,लेकिन उन्हें अपना टारगेट बदलना पड़ा .टारगेट बदलने का कारण कोकुरा शहर पर बादल छाना था . हिरोशिमा धमाके के बाद काले धुएं ने इस शहर के आसमान को घेर रखा था. ये धुआं और बादल ही कोकुरा के लिए रक्षक बने और अमेरिकी पायलटों ने अपने सेकेंड टारगेट नागासाकी पर ‘फैटमैन बम’ गिराने का फैसला किया।
साल 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा दो परमाणु बम ‘लिटिल बॉय’ और ‘फैट मैन’ का इस्तेमाल किया गया था. ‘लिटिल बॉय’ आठ बजकर 15 मिनट पर अमेरिकी बॉम्बर ‘एनोला गे’ से लिटिल बॉय हिरोशिमा शहर के ऊपर गिरना शुरू हुआ. लिटिल बॉय को एनोला गे से नीचे आने में पूरे 43 सेकेंड का समय लगा. एक ही क्षण में वहां की इमारतों को छोड़ धरती पर मौजूद हर चीज गायब हो गई. विस्फोट का असर इतना भयंकर था कि ग्राउंड जीरो से 15 किलोमीटर दूर तक हर इमारत की खिड़कियों के शीशे चकनाचूर हो गए. ये अपने लक्ष्य अओई ब्रिज से 250 मीटर दूर शीमा सर्जिकल क्लीनिक के ऊपर फटा. इसकी शक्ति 12500 टन टीएनटी के बराबर थी. हिरोशिमा शहर की करीब दो तिहाई इमारतें एक सेकंड के अंदर ध्वस्त हो गईं. एक क्षण में ही हिरोशिमा शहर के करीब 80 हजार लोगों की मौत हो गई.
धमाके की वजह से हवा से ऑक्सीजन खत्म हो गई थी और इसकी वजह से शेल्टर में छिपे हुए लोग भी सांस न ले पाने की वजह से मारे गए थे. बम गिरने पर उसके केंद्र बिंदु के एक किलोमीटर के क्षेत्र की एक-एक चीज भाप बन कर उड़ गई. बिजली से चलने वाली ट्राम का भी नामोनिशान नहीं बचा. ऐसी तबाही दुनिया ने कभी नहीं देखी थी और ये तबाही मचाई थी लिटिल बॉय परमाणु बम ने.
हिरोशिमा पर हमला किए जाने के तीन दिन बाद यानी नौ अगस्त को अमेरिका ने जापान के एक अन्य शहर नागासाकी को निशाना बनाया और यहां फैट मैन नाम का परमाणु बम गिरा दिया. इसका वजन 4.8 टन था. इसे बी-29 बॉक्सकार बमवर्षक विमान से नीचे गिराया गया था. बम गिरते ही बड़ी संख्या में लोग और जानवर उसी वक्त मर गए क्योंकि ऊष्मा की किरणों ने उनके शरीर की पानी की लगभग हर बूंद को सोख लिया था. विस्फोट से निकली ऊष्मा इतनी घातक थी कि उसने त्वचा को थर्ड डिग्री बर्न्स से जला दिया. ये धमाका बेहद जबरदस्त था, जहां बम गिरा, उससे 500 किलोमीटर दूर स्थित एक प्राइमरी स्कूल का नामोनिशान तक मिट गया था. एक किलोमीटर के दायरे में मौजूद हर चीज भाप बनकर उड़ने लगी. तब ऐसा लगा मानो शहर अचानक से राख में तब्दील हो गया हो. एक सेकेंड से भी कम समय में नागासाकी जेल की तीन इमारतें ढह गईं.
परमाणु बम का सबसे पहले विचार 1939 में आया. अल्बर्ट आइंस्टाइन ने 1939 में पत्र लिख कर अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट को न्यूक्लियर फ्यूजन की विनाशकारी ताकत के बारे में बताया. जर्मन रसायनविज्ञानी ऑटोहान ने इसकी खोज की थी. पत्र में कहा गया था कि इस प्रक्रिया का नतीजा ‘एक नए तरह का अत्यंत शक्तिशाली बम’ होगा. रूजवेल्ट ने इसके बाद यूरेनियम पर सलाहकार बोर्ड का गठन किया.साल 1942 में अगस्त के महीने में अमेरिका ने आधिकारिक रूप से परमाणु बम बनाने के लिए एक बेहद खुफिया कार्यक्रम का फैसला किया. इस प्रोजेक्ट का नाम बाद में मैनहटन प्रोजेक्ट रखा गया . इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने दो अरब डॉलर का बजट दिया. न्यू मेक्सिको के लॉस अलामोस की एक खुफिया लैब में बम बनाने का काम शुरू हुआ. इसके लिए रॉबर्ट ओपेनहाइमर को साइंटिफिक डायरेक्टर बनाया गया. इस प्रोजेक्ट के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के शीर्ष भौतिक विज्ञानियों की टीम बनी। इसके साथ ही हजारों ऐसे लोग भी काम पर लगे जो नाजी शासन से भाग कर आए थे. 1943 में 12 अप्रैल को रूजवेल्ट की मौत हुई और हैरी ट्रूमैन अमेरिका के राष्ट्रपति बने. तब उन्हें अब तक बेहद खुफिया रहे मैनहटन प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी मिली. 1945 में यह बनकर तैयार ही नही हुआ कि वैज्ञानिकों ने लैब में इसका परीक्षण भी करके देख लिया. अब घरातल पर सच्चाई परखी जानी थी। और उसके लिए जापान ही उपयुक्त रहा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)