संदीप ठाकुर
राजनीतिक गलियारों में इनदिनों प्रशांत किशोर उर्फ पी.के नाम की चर्चा
जोरों पर है। चर्चा के मुताबिक या ताे वे कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं
या फिर पार्टी काे फर्श से अर्स पर लाने का ठेका ले सकते हैं। इसे लेकर
अंदरूनी तौर पर कांग्रेस दो फाड़ हो गई है। वहीं दूसरे राजनीतिक दलों में
भी बेचैनी है। खुसफुसाहट शुरू हो गई है। आखिर क्यों ? आखिर प्रशांत किशोर
के पास ऐसी कौन सी जड़ी बूटी है जिसे खिलाने से मरणासन्न कांग्रेस में
जान आ जाएगी ? इसका खुलासा फिलहाल नहीं हुआ है। सिर्फ इतना कहा जा रहा है
कि प्रशांत के नेतृत्व में यदि कांग्रेस चली ताे उसका उद्धार हो सकता है।
सवाल फिर वही है कि आखिर प्रशांत किशोर के पास कौन सी जड़ी बूटी है जिससे
वे मरणासन्न कांग्रेस में जान फूंक देंगे ! ये सवाल पार्टी के अंदर और
बाहर दोनों जगह खड़े किए जा रहे हैं।
इन दिनों चुनाव बहुत बदल गया है और सभी पार्टियां चुनाव प्रबंधकों और
रणनीतिकारों का इस्तेमाल कर रही हैं। प्रशांत किशोर ने देश की कई
पार्टियों के साथ काम किया है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ काम
की शुरुआत की थी। उसके बाद से वे लगातार भाजपा विरोधी पार्टियों के साथ
काम कर रहे हैं। यदि प्रशांत किशोर कांग्रेस के सारथी बन 2024 में
कांग्रेस को चुनाव लड़वाने की जिम्मेदारी उठाते हैं तो सबसे पहला सवाल
यही होगा कि क्या उन्होंने जितनी विपक्षी पार्टियों के साथ काम किया है
वे सब उनके साथ आएंगे? क्या वे सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करके साझा
मोर्चा बनवा पाएंगे? कांग्रेस वैसे भी सारे चुनाव हार रही है। 2019 के
लोकसभा चुनाव के बाद 17 राज्यों के चुनाव हुए हैं और कांग्रेस हर चुनाव
हारी है। पिछले आठ साल में कांग्रेस 50 से ज्यादा चुनाव हार चुकी है। ऐसे
में यदि प्रशांत कांग्रेस से जुड़ जाते हैं और चुनाव लड़वाते हैं ताे
इसमें हर्ज ही क्या है। यह तर्क प्रशांत के चाहने वालों का है। दूसरी तरफ
प्रशांत काे नहीं चाहने वाले कांग्रेसियों का कहना है कि पीके के पास कोई
जादू की छड़ी नहीं है। उनका कहना है कि इससे पहले जितने लोगों के साथ
पीके ने काम किया है वे वैसे भी जीतने वाले थे। कांग्रेस की स्थिति आज उन
दलाें जैसी नहीं है। इस वर्ग के नेताओं का मानना है कि कांग्रेस के पास
पहले से इतने दिग्गज हैं फिर प्रशांत किशोर की क्या जरूरत है।
इसके जवाब में पीके काे सपोर्ट करने वाले कांग्रेसियों का कहना है भाजपा
के पास क्या दिग्गजों की कमी थी, जो नरेंद्र मोदी ने पीके की सेवा ली ?
लालू-नीतीश क्या छाेटे माेटे नेता हैं, जो उन्होंने प्रशांत किशोर को
चुनाव लड़वाने का जिम्मा दिया ? ममता, स्टालिन, उद्धव या जगन को क्या
राजनीति की समझ नहीं है, जो उन्होंने प्रशांत किशोर की सेवाएं ली ? पीके
ने दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी के लिए भी काम किया है। ऐसे में यदि
पीके कांग्रेस के साथ जुड़ने को तैयार हैं ताे पार्टी काे उनका
शुक्रगुजार हाेना चाहिए। इस वर्ग का मानना है कि फिलहाल कांग्रेस काे रण
जीतने के लिए एक रणनीतिकार की सख्त जरूरत है। यहां तक ताे ठीक है लेकिन
विपक्ष मसलन तृणमूल कांग्रेस, टीआरएस, जगन मोहन रेड्डी, अरविंद केजरीवाल,
के चंद्रशेखर राव आदि काे कांग्रेस के साथ लाना टेढ़ी खीर है। हालांकि
इन दलों के नेताओं से पीके के नजदीकी संबंध रहे हैं। संबंध हाेना और उसे
कैश कर लेना दाेनाें अलग अलग बातें हैं। गौरतलब है कि पिछले साल भी
इन्हीं वजहों से प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच बातचीत असफल हो गई थी।
वैसे पीके की तीन बैठक कांग्रेस आला कमान के साथ हाे चुकी है। पार्टी में
माथापच्ची जारी है। कांग्रेस के सभी बड़े दिग्गज नेता मंथन कर रहे हैं।
प्रशांत किशोर अब तक नरेंद्र मोदी, जेडीयू नेता नीतीश कुमार, तृणमूल
कांग्रेस नेता ममता बनर्जी, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, आम आदमी
पार्टी के अरविंद केजरीवाल, आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी और तमिलनाडु में
डीएमके नेता एमके स्टालिन को अपनी प्रोफ़ेशनल सेवाएँ दे चुके हैं। लेकिन
हर जगह सफल नहीं रहे। पिछले बिहार चुनाव से पहले उन्होंने ‘बात बिहार की’
लॉन्च किया था। लेकिन उम्मीद के मुताबिक़ उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में राहुल और अखिलेश को साथ ला कर उन्होंने
‘यूपी के लड़के’ के साथ एक प्रयोग किया लेकिन वो भी सफ़ल नहीं रहा। ममता
बनर्जी ने गोवा में भी टीएमसी को उतारा। कहा जाता है कि प्रशांत किशोर के
कहने पर ही उन्होंने ऐसा किया था। लेकिन यह प्रयोग भी सफ़ल नहीं रहा। इस
बार यदि कांग्रेस के साथ उनकी बात बनती है, तो यह देखना दिलचस्प हाेगा कि
पीके राजनीतिक रणनीतिकार के तौर पर कितने सफल और कितने असफल रहते हैं।