भारतीय संस्कृति का प्रतीक “भगवा ध्वज”

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

भगवा ध्वज हिन्दू संस्कृति और धर्म का शाश्वत प्रतीक है। भगवा ध्वज का रंग केसरिया है। यह उगते हुए सूर्य का रंग है। इसका रंग अधर्म के अंधकार को दूर करके धर्म का प्रकाश फैलाने का संदेश देता है। भगवा ध्वज के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए भारत के पुरातन संस्कृति के ध्वजवाहक और वरिष्ठ लेखक डॉ. मयंक मुरारी ने एक पुस्तक की रचना की है, जिसका शीर्षक है- “भगवा ध्वज”।

डॉ. मयंक मुरारी जी ने रंगों का बड़े सुंदर शब्दों में वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है- रंग से विमुखता अन्धकार हैं, निराशा है। जहाँ पराजय हैं, वहाँ रंग नहीं है। वहाँ उम्मीद की किरणें नहीं उगतीं। उम्मीद का अपना रंग होता है। उसकी पहचान होती है। ये रंग मनोदशा के अनुसार बदलते हैं। कोई प्यार का रंग है, तो कोई शान्ति का; कोई सृजन का रंग है तो कोई शौर्य एवं त्याग का।

भारत की सांस्कृतिक विरासत प्राचीन रही है। देश में सनातन धर्म के साथ ही सांस्कृतिक विकास भी होते आया है। हिन्दू संस्कृति में भगवा रंग को अनन्य स्थान दिया गया है। यह एक ऐसा रंग है जो हमें आलस्य और निद्रा को त्यागकर उठ खड़े होने और अपने कर्तव्य में लग जाने की भी प्रेरणा देता है। यह हमें यह भी सिखाता है कि जिस प्रकार सूर्य स्वयं दिनभर जलकर सबको प्रकाश देता है, इसी प्रकार हम भी निस्वार्थ भाव से सभी प्राणियों की नित्य और अखंड सेवा करें।

उन्होंने भगवा के धार्मिक उपयोग को भी दिखाया है। मंदिरों के शिखरों पर भगवा ही फहराया जाता है। श्रीमद्भागवत में श्रीकृष्ण की लीलाओं में भगवा ध्वज का संकेत मिलता है। इसी प्रकार सूर्यवंशियों की परम्परा में सूर्य चिह्न अंकित भगवा ध्वज फहराया जाता रहा है। सूर्यवंशीय, सत्य, सहिष्णुता, सेवा, नैतिक मूल्यों की रक्षा, धर्मानुसार आचरण, वचन की दृढ़ता, वात्सल्य प्रेम करना जिनकी विशेषता है, ऐसी विजय ध्वजा भगवान श्रीराम के रथ में फहराती है। श्री हनुमानजी भी सदैव ही विजय ध्वज लेकर चलते थे। महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के रथ पर धर्मध्वजा फहरा रही है। उसकी रक्षा का दायित्व पवन पुत्र श्री हनुमानजी को सौंपा।

जब भी कोई आंदोलन होता है तो उसके प्रतीक के रूप में एक ध्वज का भी उपयोग किया जाता है। भारत की आजादी के लड़ाई में भी भगवा ध्वज भारतीय स्वाभिमान का प्रतीक रहा। सन् 1857 में भारतीयता के स्वाभिमान से स्फुरित होकर नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे, कुँवरसिंह, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसे देशभक्त नेताओं ने भगवा ध्वज की छत्रछाया में युद्ध का नगाड़ा बजाया। सन् 1857 के पश्चात् मराठों की सत्ता के रूप में बचे थे। भगवा ध्वज सदैव ही भारतीय स्वाभिमान और संकल्प का प्रतीक रहा है।

उम्मीद है डॉ. मयंक मुरारी द्वारा लिखित इस पुस्तक से वर्तमान समय में भगवा ध्वज के वास्तविक महत्व को समझने में मदद मिलेगी।

पुस्तक : भगवा ध्वज
लेखक: डॉ. मयंक मुरारी
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली
मूल्य: 325 रुपये