ललित गर्ग
चंद्र अभियान की ऐतिहासिक एवं अविस्मरणीय सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक नया इतिहास गढ़ने एवं एक और मैदान फतेह करने को तत्पर है और सूरज का अध्ययन करने के लिए संभवतः दो सितंबर, 2023 ‘आदित्य-एल 1’ यानी सूर्य मिशन के प्रक्षेपण की तैयारी कर रहा है। ‘आदित्य-एल 1’ अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परतों) के दूरस्थ अवलोकन और एल-1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा के यथास्थिति अवलोकन के लिए बनाया गया है, इस मिशन की मदद से स्पेस में मौसम की मोबिलिटी, सूरज के तापमान, सोलर स्टॉर्म, एमिशन और अल्ट्रावॉयलेट रेज के धरती और ओजोन लेयर पर पड़ने वाले प्रभावों की स्टडी की जा सकेगी, जिससे मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को सकारात्मक मोड़ देने में सुविधा रहेगी। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और मील का पत्थर होगा। इस प्रक्षेपण के बाद अमरीका, जर्मनी और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद भारत सूर्य के पास उपग्रह भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा। आदित्य एल-1 को पृथ्वी-सूर्य प्रणाली की ऑर्बिट के पांच बिंदुओं में से एक लैग्रेंज-1 में स्थापित किया जाएगा। यहां सूर्य पर ग्रहण के दौरान भी नजर रखी जा सकती है। यह पॉइंट पृथ्वी से 15 लाख किमी. दूर है। निश्चित ही चंद्रयान-3 के 3.84 लाख किमी. के सफर के मुकाबले आदित्य एल-1 का सफर कहीं ज्यादा चुनौती एवं संघर्षपूर्ण होगा।
दुनियाभर के वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने में जुटे हैं। जिस सौरमंडल में हम रहते हैं, उसे समझने के लिए सूर्य को जानना जरूरी है। सूर्य की ऊर्जा का अध्ययन धरती पर नहीं किया जा सकता। इसलिए दुनिया की दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों की तरह इसरो भी सूर्य के पास जाकर अध्ययन करना चाहता है। उसका पहला सूर्य अभियान सूर्य के कोरोना, प्रकाश मंडल, क्रोमोस्फीयर, सौर उत्सर्जन, सौर तूफानों और कोरोनल मास इजेक्शन के अध्ययन के साथ-साथ सूर्य की संपूर्ण इमेजिंग के नए द्वार खोल सकता है। लगातार चमकने वाला सूर्य, जहां ऊर्जा के लिए निरंतर विस्फोट होते रहते हैं, हमेशा से रहस्य का विषय रहा है। लेकिन ये विस्फोट कब होंगे और इसके प्रभाव क्या होंगे, इसकी सटीक जानकारी धरतीवासियों को नहीं है। ऐसे में इस टेलीस्कोप का एक उद्देश्य इनकी स्टडी करना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मिशन के तहत अलग-अलग तरह के डाटा को जुटाकर ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकेगी जिससे धरती को होने वाले नुकसान के बारे में पहले से अलर्ट किया जा सकेगा। इस अभियान की कामयाबी इसरो के लिए अंतरिक्ष में एक और अहम छलांग होगी। इससे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी भी बढ़ेगी, जो कि फिलहाल सिर्फ दो फीसदी है। इसमें वृद्धि के लिए इसरो को उसकी महत्त्वाकांक्षाओं के अनुरूप सरकार से हरसंभव मदद मिलनी चाहिए।
नया भारत एवं सशक्त भारत निर्मित करने की अनेक बहुद्देश्यीय एवं बहुआयामी योजनाएं आजादी के अमृतकाल में आकार लेने के लिये उजावली हैं, उन्हीं योजनाओं में अंतरिक्ष के अनुसंधान एवं अध्ययन से जुड़ी योजनाओं में से ‘आदित्य-एल 1’ एक बड़ी परियोजना है, जो सूर्य की गतिशीलता और उसके पास के मौसम की समझ में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। सूर्य का नाम आदित्य भी है, अतः इस नाम का अभियान या यान सबके आकर्षण का केंद्र बने, तो कोई आश्चर्य नहीं। यह अभियान दुनिया में एक भारतीय शब्द का प्रचार और भारत के अंतरिक्ष अभियान के स्वदेशी होने का अहसास करायेगा। योजना के अनुसार, यह यान कुल 125 दिन में सूर्य के पास की कक्षा में पहुंच जाएगा। सूर्य के एकदम निकट जाने के बारे में तो कोई सोच नहीं सकता, पर सूर्य के पास एक सुरक्षित कक्षा है जहां पहुंचकर कोई यान परिक्रमा करते हुए सूर्य को देख-परख सकता है। यह आदित्य अंतरिक्ष यान सात उन्नत उपयोगी उपकरणों से सुसज्जित है, जो सूर्य की विभिन्न परतों, प्रकाशमंडल और क्रोमोस्फीयर से लेकर सबसे बाहरी परत, कोरोना तक की जांच करने के लिए तैयार किए गए हैं। इरादा यह है कि सूर्य के पास घटित होने वाली तमाम गतिविधियों का डाटा एकत्र किया जाए, ताकि सूर्य की कुल क्रिया-प्रतिक्रिया को समझा जा सके। हम तेज सूर्य से आंख नहीं मिला पाते हैं, पर भारत का आदित्य यान सूर्य से सीधे आंख मिलाने में सक्षम होगा, इसमें लगे चार उपकरण तो केवल सूर्य को देखने का काम करेंगे, मतलब इस अभियान का मूल लक्ष्य सूर्य को करीब से देखना है।
भारत पूरातन काल से ज्ञान-विज्ञान का असीम भंडार रहा है। हमारे ऋषियों-मनीषियों ने आचार-विचार, आत्म-विकास एवं गहन खोजों से चिकित्सा, दर्शन, अर्थ और सौरमंडल तक की ऐसी जानकारी प्रदान की है, जिसके बारे में विश्व को बहुत बाद में पता चला। स्वामी विवेकानन्द ने कहा भी है कि आधुनिक विज्ञान के सूत्र पुरातन काल में वेदों में लिखित सूत्र ही है। किसी भी आपदा या घटना का पूर्वानुमान भारत में इसी सौरमंडल की जानकारी के आधार पर ही संभव हुआ है। सूर्य में भारत की दिलचस्पी एवं श्रद्धाभाव को स्वाभाविक ही समझा जा सकता है। भारत एक ऐसा देश है जहां सूर्य को देवता मानकर पूजने वाले, पर्व-उपवास करने वाले लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत में हर सुबह सूर्य नमस्कार और सूर्य को जल अर्पण दिनचर्या में शामिल है। भारतीय पौराणिक कथाओं में सूर्य एक चरित्र या किरदार के रूप में पुरजोर उपस्थित है। इसलिये कोई आश्चर्य नहीं, भारतीय ज्यादा श्रद्धाभाव से सूर्य का अध्ययन करते हुए विश्व मानवता को उपकृत सकेंगे। क्योंकि अब भारत पुरातन ज्ञान से अत्याधुनिक विज्ञान की स्वर्णिम यात्रा पर बढ़ रहा है।
निश्चित ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरगामी सोच एवं प्रोत्साहन से देश की वैज्ञानिक सोच एवं उपक्रमों को नया आधार मिल रहा है। वह भी अद्भुत दृश्य था, प्रधानमंत्री जब ब्रिक्स समिट एवं अन्य देशों की यात्रा से सीधे इसरो मुख्यालय पहुंचे और विज्ञानियों और इंजीनियरों से खास तौर पर मुलाकात की और उनके योगदान को सराहा। इसे प्रधानमंत्री ने यह कहकर अच्छे से रेखांकित किया कि जब हम अपनी आंखों के सामने इतिहास बनते हुए देखते हैं तो जीवन धन्य हो जाता है और ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं जीवन में चिरंजीव चेतना बन जाती हैं। मोदी ने कहा भी है कि आज हर कोई यह कह रहा है कि 21वीं सदी भारत की सदी है। भारत ही वह देश है जिसके पास युवा शक्ति का भरपूर भंडार है, मजबूत इरादे है एवं स्वतंत्र पहचान है। पहले सोच थी की भारत बदलेगा ही नहीं लेकिन अब सोच है कि हमारा यह देश खुद भी बदल रहा है एवं पूरी दुनिया को बदलने की सामर्थ्य रखता है। प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना हमारे विश्वास को मजबूत करता है कि भारत से जो प्रकाशपुंज उठा है, उसमें विश्व को ज्योति नजर आ रही है। आज हमारे पास लोकतंत्र, जनसंख्या और विविधता है और यह त्रिवेणी भारत के हर सपने को साकार करने का सामर्थ्य रखती है। भारत का सबसे बड़ा सामर्थ्य बना है मोदी सरकार के प्रति जन-जन का और विश्व का भारत के प्रति विश्वास। यह बेवजह नहीं है। जरूरत है भारत के विभिन्न राजनीतिक दल भी इसके महत्व को स्वीकारें।
करोड़ों भारतीयों की प्रार्थना और इसरो के विज्ञानियों की मेधा एवं उनके अथक प्रयासों से जिस तरह चंद्रयान-3 अंततः चांद पर पहुंच ही गया, उसी तरह ‘आदित्य-एल 1’ भी सूर्य पर फतेह करके दुनिया को आश्चर्य में डालेंगा एवं चमत्कृत करेंगा। इस महत्वाकांक्षी अभियान से एक बार फिर भारत के लोगों का सीना गर्व से चौड़ा होगा और पूरे देश में एक सुखद अनुभूति एवं ऊर्जा की लहर दौड़ेगी। इस महा सूर्य- अभियान के सफल होने से भारतवासियों के अंदर एक अनूठा आत्मविश्वास जागेगा, हौंसला बुलन्द होगा कि हम किसी भी जटिल से जटिल कार्य को पूर्ण कर सकेंगे और विश्वगुरु होने की पात्रता प्राप्त करेंगे।