वेश्याओं के जीवन पर आधारित है “ग़ुलाबी दुनिया”

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

लघुकथा के विमल बासन्ती बयार, चोख चोट के कचोट पर घायल पीड़ा पंछी तथा आँसू चुराई, नयन झुकाई समाजिकता को नई दिशा-बोध देने वाले हिन्दी साहित्य के प्रणम्य-प्रणेता ‘सुरेश सौरभ’ के संपादन में आपके हाथों की शोभा बढ़ा रही पुस्तक “ग़ुलाबी दुनिया” जो कि समाज के एक ऐसे वर्ग पर लघुकथाओं का संग्रह है जो पैसों के लिए बिस्तर गर्म करती है। इसमें आत्तजनों की आह, पीड़ितों की पीड़ा और चांदी के चन्द टुकड़ों के लिए अपनी अस्मत को गिरवी रखने वाली बदहाल वेश्याओं के दिनचर्या को दिखाता है।

पीड़ा और मातम के मजारों पर आंसुओं की अर्ध्य चढ़ाने वाली वेश्याओं के लिए साहिर लुधियानवी ने लिखा है-
“औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया,
जब जी चाहा मसला-कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया।”

वेश्यावृत्ति दुनिया भर में विभिन्न सभ्यताओं के लगभग सभी ऐतिहासिक कालो में मिलती है। वेश्यावृत्ति स्पष्ट रूप से उन सभ्यताओं का एक हिस्सा है जो पुरातन काल से चले आ रही है।वेश्यावृत्ति या व्यवसायिक यौन-कार्य भावनात्मक उदासीनता के साथ एक कामुक और भाड़े के आधार पर यौन-संबंध का अभ्यास है। सआदत हसन मंटो ने सटीक कहा है- “जिस औरत के दरवाज़े शहर के हर उस शख़्स के लिए खुले हैं जो अपनी जेबों में चाँदी के चंद सिक्के रखता हो।ख़्वाह वो मोची हो या भंगी, लंगड़ा हो या लूला, ख़ूबसूरत हो या करीहत-उल-मंज़र, उस की ज़िंदगी का अंदाज़ा बख़ूबी लगाया जा सकता है।”

लघुकथा जीवन की सच्‍चाई का पर्याय है। लघुकथा समय के साथ मानव-मन की गहराई तक को छू लेती है और अर्न्‍तमन को झकझोर देने की ताकत भी रखती है बशर्ते विषयवस्‍तु प्रभावी हो और इस लघुकथाओं के संग्रह की प्रत्येक लघुकथा अपने आप में साहित्य में लकीर खींच रहा है। सुकेश साहनी की लघुकथा ‘मरुस्थल’ में जहाँ वेश्याओं के अंदर घर की हुई प्रेम को उजागर किया गया है, जो उसका कभी हो ही नहीं सकता है तो वहीं उनकी लघुकथा ‘नपुंसक’ द्वारा समाज को आईना दिखाया गया है जिसमें वह लिखते हैं कि समाज के किसी एक व्यक्ति के सुधर जाने से वेश्यावृत्ति खत्म नहीं हो जाती बल्कि अनवरत चलती जाती है।

‘दंगे की रात’ में गुलज़ार हुसैन कहते है कि औरत में गुलाब की सुगंध ही नहीं आग की सुगंध भी है। एक वेश्या के द्वारा लूट के पैसे लेने से इंकार कर देना उसके ईमानदारी और इंसानियत को दर्शाता है।

आधुनिक समय की एक बड़ी समस्या बन चुकी ब्लैकमेलिंग को अरविंद असर ने ‘उसूल’ में लिखा है। जबकि लघुकथा ‘पूजा घर’ में वेश्या का ईश्वर के प्रति उपासना को लिखा गया है, जिसमें एक वेश्या पैसे के लिए ज़िस्म तो बेच सकती है , लेकिन वह इसके लिए ईश्वर के पूजा घर का इस्तेमाल अपने व्यापार के लिए नहीं करना चाहती है।

नज़्म सुभाष की लघुकथा “ग्राहक” के माध्यम से अपनत्व के प्रेम और कोठे के प्रेम के भिन्नता को परोसा गया है, जिसमें प्रकाश गुलदस्ता दे कर उसे अपना प्रेमिका बनाने की बात तो करता है लेकिन ज्योंहि वह अपनी तबियत ख़राब की बात छेड़ती है, प्रकाश का प्रेम उसकी तबियत न देख कर अपनी ज़िस्म की भूख की ओर चला जाता है और ना चाहते हुए भी वह प्रकाश के साथ हमबिस्तर हो जाती है। यही कारण है कि कथाकार ने अंत में उस वेश्या के अंदर की इंसान को जागृत कर दिया है जिसमें उसने गुलदस्ता को वापस कर दिया था। उसे पता है कि उसे यह गुलदस्ता ज़िस्म की भूख मिटाने के लिए मिला था, प्रेम के लिए नहीं।

वेश्याओं के जीवन से संबंधित हर पहलुओं को ध्यान में रख कर संपादित की गई यह लघुकथा-संग्रह वास्तव में उनके जीवन की पीड़ाओं को रेखांकित कर रहा है। सुंदर भाषा-शैली में लिखी गई और पाठकों के मर्म को समझने के साथ-साथ यह पुस्तक पाठकों को आकर्षित भी करेगी। वेश्याओं के मेले में उनके ज़िस्मों को नोचने तो हर कोई आ जाता है लेकिन उनके पीड़ाओं को हरने कोई नहीं आ पाता है। सआदत हसन मंटो ने ठीक ही कहा है- “वेश्याओं के इश्क़ में एक ख़ास बात क़ाबिल-ए-ज़िक्र है। उनका इश्क़ उनके रोज़मर्रा के मामूल पर बहुत कम असर डालता है।”

पुस्तक: ग़ुलाबी दुनिया
संपादक: सुरेश सौरभ
मूल्य: 249 रूपये