एक मोबाइल की आपबीती

सुरेश सौरभ

मैं एक स्मार्ट मोबाइल हूं। आज मैं आप को, अपनी बड़ी दुख भरी करूण कहानी सुनाने जा रहा हूँ। जब से एक कवि के पास आया हूं, तब से चाहे दिन हो चाहे रात हो , मुझे कभी सुकून-चैन नहीं मिला। जब देखो तब कवि जी मुझ पर पिले ही रहते हैं। कभी ये रील्स बना रहें कभी वो वीडियो अपलोड कर रहे हैं। सैकड़ों ग्रुपों से आते-जाते दिन-रात मैसेज, मेरी छाती पर हर समय साँपों की तरह लोटते रहते हैं। ऊपर से कभी ये कविता, कभी वो कविता लिख-लिख कर हर समय मेरे जिस्म से छेड़खानी करते रहते हैं कवि जी। एक पल मुझे जरा भी चैन नहीं-अगर कभी उनकी उंगलियों से सुकून मिला भी,तो कभी इधर-उधर की उल्टी-सीधी कविताओं को, कभी डांस वाले आइटम सांग को देखने सुनने से कवि महोदय जी बाज नहीं आते।

अब क्या-क्या बताऊँ, क्या-क्या दर्द मेरे भरा अंदर भरा पड़ा कसक रहा है। तड़प रहा है‌। जब से इस कवि महोदय के हत्थे चढ़ा हूँ। तब से अपने अच्छे दिनों की खैर भगवान से मना रहा हूं ।

नेशनल हाईवे पर इतनी गाड़ियाँ नहीं निकली होंगी जितनी मेरे जिस्म पर मेल, यानी ईमेल सर्र-सर्र रोज गुजरीं हैं, बाई चान्स जब कभी कवि जी अपना कहीं मोबाइल रखकर भूल भी जाते हैं, तो उनके बच्चे भी उनसे हजार कदम बढ़कर आगे हैं- दुनिया भर के यू-ट्यूबों चैनलों की लाइटों से खेल-खेल कर, हमारा खाना खराब कर डालते हैं।

काजी घर के चूहे सयाने वाली कहावत सुनी थी, पर कवि जी के बच्चे सयाने कितने होते हैं यह मैं कवि जी के घर आकर कायदे जान पाया हूँ। समझ पाया हूँ। भला हो बिजली कटौती करने वालो का, जब कभी-कभी लंबी कटौती होती है और मेरी बैट्री डिस्चार्ज होती है तब कहीं थोड़ा आराम पाता हूँ, सुकून से सो पता हूं-पर अब लग रहा वह सुकून भी जाता रहेगा,क्योंकि कवि महोदय लंबा-चौड़ा तगड़ा पावर बैंक ले आएं हैं, हे! भगवान् मेरे कब अच्छे दिन आएंगे कब मुझे इस बेचैन कवि की आत्मा से मुक्ति मिलेगी। कब इसके चगुंल से छूट, बावन अंगुल कूद-कूद कर छैंयां-छैंयां कर पाऊंगा। खुशी मना पाऊंगा।