सुरेश हिन्दुस्थानी
किसी भी देश का स्वयं का एक स्वभाव होता है। भारत का स्वभाव उसका सांस्कृतिक परिवेश है। आज जिस सनातन को समाप्त करने का कुचक्र चल रहा है, वह भारत को मिटाने का कुत्सित प्रयास ही कहा जाएगा, क्योंकि जिस देश का अपना कोई अतीत नहीं होता, वह देश काल के प्रवाह में समाप्त हो जाते हैं। जबकि यह सत्य है कि सनातन का अर्थ यही है कि वह किसी भी प्रयास से समाप्त नहीं हो सकता। सनातन भारत का सांस्कृतिक आवरण है। अगर सनातन हमारे विचारों से निकल जाएगा, तो भारत अपना मूल खो देगा।
वर्तमान में भारत देश की सर्वग्राही संस्कृति पर सुनियोजित आक्रमण करके समाज में बिखराव पैदा करने का खेल चल रहा है। हालांकि यह भी सर्वविदित है कि इस प्रकार की स्वार्थी मानसिकता के लोग हमेशा ही समाज के बीच रहते चले आए हैं। ऐसे ही लोग देश के मजबूत सांस्कृतिक विरासत को मिटाने का कुत्सित प्रयास करते दिखाई देते हैं। आज विसंगति यह है कि कुछ राजनेता भी भारत पहचान को प्रकट करने वाली सनातन आस्था पर कुठाराघात कर रहे है। अभी हाल ही में विवादास्पद बयान देकर सुर्खियों में बने रहने की कुटिल राजनीति करने वाले एक नेता उदयनिधि स्टालिन ने सनातन पर आघात करके अपनी अज्ञानता का परिचय दिया है, वह यही साबित करता है कि उनको भारत की संस्कृति का ज्ञान ही नहीं है। कहा जा रहा है कि यह सब चर्च के षड्यंत्र के तहत हो रहा है, ऐसा अनुमान इसलिए भी लगाया जा रहा है, क्योंकि उदयनिधि स्टालिन चर्च के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। इतना ही नहीं, उनके परिवार के मुखियाओं ने भी किसी न किसी रूप में हिन्दू आस्था को अपमानित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लेकिन सच तो सच होता है, उसे न तो कभी झुठलाया जा सकता है और न ही उसे मिटाया जा सकता है। उदयनिधि का यह कदम आस्था पर आघात तो है ही, साथ ही आत्मघाती भी है। ऐसा लगता है कि ऐसे ही लोग देश को मजबूत होते देखना नहीं चाहते।
कहा जाता है कि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। सत्य को कितना भी झुठलाने का प्रयास किया जाए, लेकिन एक दिन वह सूरज की तरह सारे अंधकार को समाप्त करने की क्षमता रखता है। भारत की सनातन आस्था पर जब भी हमला किया जाता है, तब कुछ लोग आंख बंद करके तमाशा देखने की मुद्रा में आ जाते हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि यह कृत्य दुस्साहस करने वालों के हौसलों को बढ़ाने का ही काम करता है। इसलिए अब तटस्थ रहने का समय नहीं, कुछ करने का समय है। वर्तमान में भारत देश में जिस प्रकार से आस्था के विषय को लेकर राजनीति की जा रही है, उससे देश में असांमजस्य का भाव पैदा हो रहा है। इस भाव के कारण कई प्रकार की विसंगति निर्मित हो रही हैं। देश में जितने भी धर्म या संप्रदाय हैं, उनकी मान्यताओं का सम्मान किया जाना संवैधानिक अधिकार भी है और हिन्दुस्थान की मान्यताओं का सांस्कृतिक परिवेश भी। संवैधानिक अधिकारों के तहत हर किसी को अपना वक्तव्य प्रसारित करने का अधिकार है, लेकिन इन अधिकारों में अगर किसी भी व्यक्ति के विचार या धर्म पर कुठाराघात होता है, तब यह अधिकार का दुरुपयोग ही माना जाएगा। वास्तव में हमारे देश में अधिकारों का दुरुपयोग कई अवसरों पर देखा जा रहा है। चाहे वह सांस्कृतिक मुद्दा हो या धार्मिक। हर बात पर राजनीति की जाती रही है। भारत में सभी धर्मों का सम्मान किए जाने के लिए कानून भी बना है, लेकिन जिस प्रकार से इन कानूनों का मजाक उड़ाया जाता रहा है, उससे देश की अस्मिता तार तार हो रही है।
असहिष्णुता के नाम पर राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार का खेल खेला है, उससे स्थिति और बिगड़ेगी ही। इसके अलावा राजनीतिक दलों को करना यह चाहिए था कि ऐसे मुद्दों पर पूरे देश की भावना के अनुसार ही काम हो। लेकिन कांग्रेस, समाजवादी पार्टी सहित कई राजनीतिक दलों ने हमेशा ही राजनीति की है। भारत में मौलिक अधिकारों के लिए संवैधानिक प्रावधान है, लेकिन यह बात हर एक पर लागू हो, तब ही सही मायने में इसकी प्रासंगिकता और उपादेयता मानी जाएगी।
वर्तमान में हमारे देश में देखा जा रहा है कि हमारी सांस्कृतिक विरासत के रूप में स्थापित मानबिन्दुओं पर जमकर कुठाराघात किया जा रहा है। इससे समाज की भावनाएं भी आहत हो रही हैं। वास्तव में भारत की संस्कृति कहती है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे किसी की आस्था पर प्रहार हो, लेकिन यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि ऐसे कार्य करने वालों को व्यापक समर्थन भी मिल जाता है। आस्था पर आघात करने वाले किसी भी कार्य को समर्थन करने से भारत का मूल स्वरूप बिगड़ रहा है। साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए काम करने वाली संस्थाओं को इस विषय में आगे आकर अपनी सक्रियता का प्रदर्शन करना चाहिए।
हम यह बात भी भलीभांति जानते हैं कि विश्व में केवल भारत देश ही ऐसा है, जहां हर धर्म और संप्रदाय के व्यक्तियों को अपने तौर तरीकों से जीने का अधिकार है, लेकिन यह जीने का अधिकार सभी के लिए लागू होता है, इसमें केवल अपने तक ही सीमित होना चाहिए। किसी को भी दूसरों की भावना को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में जिस प्रकार की राजनीति की जा रही है। उससे भाई चारे की भावना को ग्रहण लग रहा है। किसी भी सम्प्रदाय के व्यक्ति को जानते हुए यह काम नहीं करना चाहिए, कि वह काम निंदनीय बन जाए।
इसी प्रकार गौहत्या के मामले को लेकर भी कानून बने हैं, लेकिन इस कानून का पूरी तरह से उल्लंघन किया जा रहा है। भारत की मान्यताओं में शामिल गाय को माता को स्वरूप दिया गया है। हिन्दु समाज की आस्था से सीधे रूप में जुड़ी गौमाता का हनन किया जाना वास्तव में हिन्दू समाज की आस्था पर आघात है। हमारे देश में कुत्ता पालने वाले को बहुत बड़ा पशु प्रेमी कहा जाता है, लेकिन गाय पालने वाले को कट्टरवादी कहा जा रहा है। इसे देश की विसंगति नहीं तो और क्या कहा जाएगा, जिस देश में गाय को माता का दर्जा दिया हो, उस देश के मूल समाज की आस्थाओं पर नित्य प्रति प्रहार किए जा रहे हैं। आज गौमाता के बारे में तमाम प्रकार के वक्तव्य दिए जा रहे हैं। कोई कहता है कि खाने पीने का अधिकार सरकार तय नहीं कर सकती। सवाल केवल मांस खाने से नहीं हैं, यह बात सही है कि लोकतांत्रिक देश में स्वतंत्रता तो होना चाहिए, लेकिन लोकतंत्र में कुछ मर्यादाएं भी हैं। उन मर्यादाओं का पालन हर व्यक्ति को करना चाहिए। हम जानते हैं कि यह केवल मांस का मुद्दा नहीं है, यह आस्था से जुड़ा एक ऐसा मामला है, जिससे पूरा भारत जुड़ा हुआ है। मांस तो कुत्ते से भी मिल सकता है, लेकिन गाय माता को काटना हिन्दुओं के भावना के साथ खिलवाड़ ही है। इस आस्था को प्रकट करके अगर समाज इस बात के लिए विरोध प्रदर्शन करता है तो उस समाज की एक भी नहीं सुनी जाती। यह भाव देश के स्वभाव के अनुसार ठीक नहीं है।
आज देश में खुले रूप में हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ हो रहा है, जिसको लेकर हमारे देश में ही कई प्रकार के स्वर उभर रहे हैं, लेकिन यह तो मानना ही होगा कि कोई व्यक्ति जाने अनजाने में अगर भारत की आस्था के साथ खिलवाड़ करता है तो वह सीधे रूप में देश का विरोधी है। यह आस्था विरोधी कृत्य फिर चाहे किसी भी समुदाय का हो। भारत के बारे में जिस प्रकार की मान्यता है वह यही है कि भारत में हर धर्म और संप्रदाय का सम्मान होता है। इसके बारे में विस्तृत तौर पर अध्ययन करने पर पता चलता है कि देश का केवल हिन्दू समाज ही सारे संप्रदायों का सम्मान करता है। अन्य समुदाओं के लोग सीधे तौर पर केवल अपने ही धर्म को प्रधानता देते हैं। हिन्दुओं के किसी कार्यक्रम को इन संप्रदायों के लोग कतई सहन नहीं करते। इस प्रकार की कट्टरवादी सोच के चलते देश का मूल आधार ही खिसक रहा है। हिन्दू समाज के बारे में कहा जाता है कि वह सभी धर्मों के कार्यक्रमों में खुलकर भाग लेता है और सहयोग करता है, लेकिन अन्य धर्मों के लोग ऐसा कर पाने में असफल ही सिद्ध हो रहे हैं।
भारत का मूल स्वभाव है हिन्दू संस्कृति। सर्वोच्च न्यायालय के कथनानुसार हिन्दुत्व भारत की जीवन पद्धति है। यह बात केवल सर्वोच्च न्यायालय ही नहीं, बल्कि भारत में बौद्धिक चेतना का प्रवाह करने वाले समाज का भी मानना है कि हिन्दुस्तान में से अगर संस्कृति को समाप्त कर दिया जाए तो फिर भारत मृत प्राय: हो जाएगा। भारत के मूल सांस्कृतिक आधार का अध्ययन किया जाए तो इसके लिए हमें उस दौर का अध्ययन करना होगा जब भारत गुलाम नहीं था। आज भारत की नई पीढ़ी को वह इतिहास पढऩे को भी नहीं मिलता, क्योंकि मुगलों और अंग्रेजों ने भारत को एक अलग रूप में अपनी मर्जी के मुताबिक समाज के सामने प्रस्तुत किया। वर्तमान में उसी भारत के स्वरूप को हम देख रहे हैं।
देश में प्रायः देखा जाता है कि किसी धर्म विशेष के लिए किए जा रहे कार्यों को ही धर्म निरपेक्षता के दायरे में शामिल किया जाता है। लेकिन भारत के मूल स्वभाव को प्रदर्शित करने वाले कार्यों को साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाला करार दिया जाता है। हम सभी भारत देश के नागरिकों को इस बात का विचार करना होगा कि हमारा और देश का भला किस प्रकार की जीवन शैली अपनाने में है। यहां सवाल हिन्दू और मुस्लिम का नहीं है। यहां सवाल देश की सार्वभौमिकता का है। अगर देश नहीं तो हमारा अस्तित्व भी नहीं बचेगा। इसलिए राजनेताओं को भी ऐसे बयान देना चाहिए जो भारत की एकता को मजबूत कर सके। इसी में समाज की भलाई है और समय की मांग भी है।
(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)