ओम प्रकाश उनियाल
खादी केवल वस्त्र ही नहीं अपितु विचार भी है। इसमें स्वदेशी का भाव निहित है। अनुशासन एवं नियमों का पालन करना खादी कार्यकर्ता प्रशिक्षण में सिखाया जाता है। जो कि सबसे महत्वपूर्ण विषय होता है। और जीवन में जिसका होना जरूरी है। महात्मा गांधी भी अनुशासन की महत्ता भलीभांति समझते थे। तभी उसका अनुसरण भी करते थे। उनकी विचारधारा खादी प्रशिक्षण में पूरी तरह समाहित है। प्रशिक्षण की एक झलक प्रस्तुत है। हरियाणा के जिला अंबाला, ग्राम धनाना, तहसील नारायणगढ़ में स्थित खादी प्रशिक्षण केंद्र में अप्रैल 1984 में खादी कार्यकर्ता अभ्यासक्रम प्रशिक्षण हेतु मेरा चयन हुआ था। केंद्र गांव के शुरु में ही अंबाला-नारायणगढ़-चंडीगढ़ मुख्य मार्ग पर ही स्थित था। शांत व स्वच्छ वातारण। लगभग पच्चीस प्रशिक्षणार्थी एक बैच में थे। जो कि विभिन्न राज्यों से थे। मुझे खादी आश्रम, दिल्ली स्थित प्रशासनिक कार्यालय द्वारा इस केंद्र पर प्रशिक्षण हेतु भेजा गया था। आश्रम का मुख्यालय पानीपत था। सब प्रशिक्षणार्थियों को पहले दिन ही अनुशासन में रहने की हिदायत केंद्र के मुखिया द्वारा दी गयी थी। कुछ ही दूरी पर गांव था जहां जाने के लिए सख्त मनाही थी। यदि कोई आवश्यक कार्य हो तब ही विशेष अनुमति मिलती थी। अन्यत्र कहीं जाने पर भी पाबंदी थी। सुखपाल सिंह केंद्र के प्रधानाचार्य थे। एकदम सख्त और अनुशासित। लेकिन मन के साफ, स्पष्टवादी। किसी प्रकार की उलाहना बर्दाश्त नहीं करते थे। अनुशासन तोड़ने पर शरीर-श्रम दोगुना करने की सजा मिलती थी। सुबह चार बजे से रात तक उनकी निगाहें प्रशिक्षणार्थियों पर गढ़ी रहती। किसी की क्या मजाल जो टस से मस कर जाए। सुबह रोज चार बजकर पच्चपन मिनट पर एक प्रशिक्षु को घंटी बजानी पड़ती। पांच बजते ही सबको हर हालत में बिस्तर छोड़ना पड़ता था। हॉल में ही पच्चीस के बिस्तर थे। पांच पैंतालीस तक शौचादि निवृत्ति, छह पैतालीस तक शरीर-श्रम, सात पंद्रह तक स्नान, सात पैंतालीस तक जलपान, आठ बजे तक विश्राम, साढ़े आठ तक सूत्र-यज्ञ (छोटा चरखा चलाते हुए सुबह की प्रार्थना, साढ़े नौ तक बौद्धिक ज्ञान, साढ़े बारह तक कताई-बुनाई प्रयोगात्मक, डेढ बजे तक दोपहर का भोजन व विश्राम, साढ़े पांच तक व्यवहारिक ज्ञान, साढ़े छह तक खेलकूद या (अनुमति लेकर नजदीकी कस्बे तक दैनिक उपयोगी चीजें लेने हेतु), सायं सात बजे तक रात का भोजन, आठ बजे तक प्रार्थना व दिनचर्या लेखन, नौ बजे तक स्वाध्याय एवं दैनन्दिनी लेखन का कार्यक्रम चलता था। हर काम अनुशासित तरीके से करना होता था। विभिन्न विषय एक ही अध्यापक मुकेश शर्मा द्वारा पढ़ाए जाते थे। राशन भी तोल के प्रति प्रशिक्षु के हिसाब से मिलता था। रसोईये के साथ दो प्रशिक्षु सहायक के रूप में खाना तैयार करवाते थे। पहनावा भी खादी वस्त्रों का। प्रशिक्षण के दौरान सहकारिता, बुक-कीपिंग, खादी व ग्रामोद्योग, गांधी-दर्शन जैसे विषयों का अध्ययन कराया जाता था। दस माह के खादी प्रशिक्षण में गांधी विचारधारा की जो छाप मेरे मन पर पड़ी वह मुझे आज तक अनुशासित बनाए हुए है।
-ओम प्रकाश उनियाल