भारतीय देशभक्त सिखों को मत जोड़ो खालिस्तानियों से

आर.के. सिन्हा

इधर हाल के दौर में कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया वगैरह देशों में मुट्ठीभर सिरफिरे खालिस्तानियों की हरकतों को भारत के सामान्य राष्ट्र भक्त सिखों से जोड़ना वास्तव में किसी अपराध से कम नहीं माना जाएगा। भारत के सिखों की भारत को लेकर निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। सिख पंथ की स्थापना ही राष्ट्र पर जी जान न्योछावर करने के संकल्प के साथ हुई थी। भारत के चौतरफा विकास में सिखों को उल्लेखनीय योगदान रहा है। यह याद रखा जाए कि देश के बंटवारे के समय मोहम्मद अली जिन्ना ने सिखों के सामने पृथक राष्ट्र का प्रस्ताव भी रखा थ जिसे उन्होंने सिऱे खारिज कर दिया था। उसके बाद वे अपना सब कुछ छोड़कर भारत आ गए थे। यह मानना होगा कि संसार के किसी भी कोने में जाने वाले या रहने वाले सिख भारत के ही ब्रॉड एँबेसेडर हैं। दुनिया के किसी भी भाग में बसा सिख भारत को ही अपनी मातृभूमि और पुण्यभूमि मानता है। सिख समुदाय भारत की टीमों को ही सदा चीयर करता है।

मुझे लगता है कि भारतवंशियों के लिए भारत मात्र एक भौगोलिक एन्टिटी (भौगोलिक वास्तविकता) ही नहीं है। यह तो समझना होगा। अगर बात सिखों की करूं तो भारत सिखों के लिए तो गुरुघर है। इसलिए इसके प्रति उनकी अलग तरह की निष्ठा तो रहती ही है। शेष भारतवंशियों के संबंध में भी कमोबेश यही कहा जा सकता है। इसलिए वे केन्या, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन वगैरह में बसने के बाद भी अपने को भारत से दूर नहीं कर पाते। सिखों को भी भारत दिल से ही चाहता है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर, पटना साहिब गुरुद्वारा और देश के सैकड़ों गुरुद्वारों में रोज लाखों लोग लंगर का सेवन करते हैं। जो पूरे विश्व में एक मिसाल है। सिखों में सेवा का भाव वास्तव में अदभुत है। आपको भारत के हरेक क्षेत्र में सिख अपना योगदान देते हुए मिलेंगे।

अब आप दिल्ली के समाजसेवी जितेन्द्र सिंह शंटी को ही लें। शंटी लगभग तीन दशकों से दिल्ली और इसके आसपास के शहरों में लावरिस शवों का अंतिम संस्कार करवा रहे हैं। उन्होंने कोविड काल में अपने हाथों से दर्जनों अभागे लोगों का अंतिम संस्कार करवाया था। उस समय उन्हें और उनके परिवार के कई सदस्यों को भी कोविड हो गया था। पर वे हार मानने वाले कहां थे। वे कोविड को हराने के बाद फिर से सड़कों पर उतर गए थे। पदमश्री पुरस्कार विजेता शंटी ने रक्त दान का सैकड़ा भी बना लिया है। अर्पणा कौर भी भारतीय समकालीन कला जगत की सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनकी कूची 1984 के सिख विरोधी दंगों और वृन्दावन की विधवाओं पर खूब चली है। अर्पणा कौर के चित्रों में बुद्ध, बाबा नानक और सोहनी-महिवाल भी मिलेंगे। उनके चित्रों में स्त्री पात्र खूब मिलते हैं। अपर्णा कौर का बचपन से ही कला के प्रति रुझान था,उनका रुझान कविता साहित्य रचना में था , संगीत में भी दिलचस्पी रखतीं थीं।अर्पणा कौर को बचपन से ही खुले विचारों वाले माहौल के साथ संगीत, नृत्य, साहित्य और चित्रकारी का सांस्कृतिक परिवेश भी मिला। नौ वर्ष की आयु में उन्होंने तेल रंग में ‘मदर एंड डॉटर’चित्र बनाया जो अमृता शेरगिल की कलाकृति से प्रभावित था। भारत के नामचीन सिखों की बात होगी करीब तीन साल पहले बिजनेस की दुनिया से रिटायरमेंट ले लेने वाले पीआरएस ओबराय की चर्चा करनी होगी। ओबराय की निगरानी में राजधानी में ओबराय इंटरकांटिनेंटल होटल 1965 में बना था। उन्हें भारत की होटल इंडस्ट्री का गॉड फादर माना जा सकता है। उन्होंने कुछ साल पहले ओबराय इंटरकांटिनेंटल को नये सिरे से विकसित करवाया। मुंबई का दि ट्राइडेंट होटल 26/11हमले में बर्बाद हो गया था। पर ओबराय के बाते विक्की ओबेराय ने उसे राख के ढेर से फिऱ खड़ा किया। इस सूची में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी, भारतीय हॉकी टीम के दो पूर्व कप्तानों क्रमश: हरबिंदर सिंह तथा अजीत पाल सिंह का नाम छोड़ा नहीं जा सकता। इन तीनों ने भारत क्रिकेट और हॉकी टीमों की कप्तानी की है। लाजवाब फारवर्ड हरबिंदर सिंह 1964 के टोक्यो ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल विजयी भारतीय टीम के सदस्य थे। अजितपाल सिंह की कप्तानी में भारत ने 1975 में वर्ल्ड कप जीता था।

अपोलो टायर्स के चेयरमेन ओंकार सिंह कंवर 1947 में सीमा के उस पार से अपने पिता सरदार रौनक सिंह की गोद में आये थे। कंवर के पिता ने बिजनेस के संसार में दस्तक दी। उसे कंवर आगे लेकर गये। वे फिक्की के अध्यक्ष भी रहे। अपोलो टायर्स की दो फैक्ट्रिया नीदरलैंड और हंगरी में भी हैं। अपोलो टायर्स दुनिया की चोटी की टायर कंपनियों में से एक है।

आपने हाल ही में राजधानी में संपन्न हुए जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ राजघाट में एक सिख सज्जन को गर्मजोशी से मिलते हुए देखा होगा। उनका नाम है अजय बंगा। वे विश्व बैंक के अध्यक्ष हैं। वे इससे पहले अमेरिका की चोटी की मास्टर कार्ड नामक कंपनी के सीईओ पद पर आसीन थे। वे मूलत: और अंतत: भारतीय हैं। सेंट स्टीफंस कॉलेज से इक्नोमिक्स आनर्स करने वाले बंगा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पिछली अमेरिका यात्रा के समय उनसे मिले थे। बंगा को बैंकिंग और फाइनेंस की दुनिया का एक्सपर्ट माना जाता है। बंगा को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी ट्रेड पॉलिसी से जुड़ी सलाहकार टीम में लिया था।

अगर बात अजय बंगा के पिता हरभजन सिंह बंगा की करें तो वे भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुए थे। उन्होंने 1962,1965 और 1971 की जंगों में शत्रु के दांत खट्टे कर दिए थे। अजय बंगा का परिवार बहुत आस्थावान सिख हैं। अजय बंगा जब भी भारत आते हैं, तो गुरुद्वारा बंगला साहिब और गुरुद्वारा सीसगंज मत्था टेकने अवश्य जाते हैं। इसी तरह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह का भी सारा भारत एक अर्थशास्त्री के नाते सम्मान करता है। वे भारत में आर्थिक उदारीकरण को लागू करने वालों में से थे।

दरअसल भारत और सिख एक दूसरे के पर्याय हैं। सिखों के बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सारा भारत सिखों के प्रति स्नेह और सम्मान का भाव रखता है। भारत के सिखों को खालिस्तान से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। इनमें से ज्यादा ड्रग तस्करी में लगे हैं और उन्होंने खालिस्तान का चोला ओढ़ रखा है। इस तथ्य को समझना ही होगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)