शिशिर शुक्ला
दिन प्रतिदिन विकास के नवीन आयामों को स्पर्श करती प्रौद्योगिकी ने मानव जीवन में भी एक अच्छा खासा दखल दिया है। कागज, कलम, चिट्ठी एवं पत्र के जमाने आज लद चुके हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इसके उत्पादों से हमारे जीवन का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है। लैपटॉप, पर्सनल कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टैबलेट इत्यादि ऐसे उपकरण हैं जो लगभग चौबीस घंटे हमारे द्वारा प्रयोग में लाए जा रहे हैं। यहां पर एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इन सभी उत्पादों के निर्माण के मूल में अर्धचालक अथवा सेमीकंडक्टर विद्यमान है। वस्तुत: पदार्थों को उनके वैद्युतीय व्यवहार के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है- चालक, कुचालक एवं अर्धचालक। चालक वे पदार्थ हैं जिनमें विद्युत धारा का प्रवाह नितांत सुगमता से होता है। सभी धातुएं इस वर्ग में आती हैं। इसके विपरीत कुचालक अथवा अचालक ऐसे पदार्थ हैं जिनमें विद्युत धारा के प्रति पूर्ण उदासीनता होती है। और तो और, ये पदार्थ गर्म करने पर पिघल सकते हैं किंतु चालकता को कदापि स्वीकार नहीं करते। लकड़ी, कांच जैसे पदार्थ इस श्रेणी में आते हैं। इन दोनों श्रेणियों के मध्य एक ऐसा वर्ग भी है, जो चालकता अथवा प्रतिरोधकता के पैमाने पर चालक एवं अचालक के मध्य मौजूद होता है। ये पदार्थ न तो पूर्ण चालक ही होते हैं एवं न ही पूर्ण कुचालक। इन पदार्थों को अर्धचालक कहा जाता है। यद्यपि परमशून्य ताप पर ये भी कुचालकों की भांति ही व्यवहार करते हैं, किंतु ताप के उन्नयन के साथ इनमें मुक्त आवेश वाहकों की संख्या बढ़ती जाती है एवं इस कारण उनकी चालकता भी शनैःशनैः बढ़ने लगती है। एक दिलचस्प गुण जो इनको उपयोग की मापनी पर अति उच्च स्तर पर ले जाता है, वो यह है कि इनमें अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में उचित अशुद्धि मिला देने पर इनके चालकीय गुण असाधारण रूप से बढ़ जाते हैं। यहां से एक नई कहानी की शुरुआत होती है, अपितु सच कहें तो विज्ञान की नई शाखा इलेक्ट्रॉनिकी का जन्म यहीं से होता है। सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आधारभूत ढांचा अथवा यूं कहें कि इलेक्ट्रॉनिक्स की आत्मा अर्धचालक ही है।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा भारत में सेमीकंडक्टर संयंत्र स्थापित करने पर प्रौद्योगिकी कंपनियों को 50 प्रतिशत वित्तीय सहायता देने की बात गुजरात के गांधीनगर में सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम के दौरान कही गई। यह निस्संदेह भारत को सेमीकंडक्टर का वैश्विक हब बनाने की दिशा में एक सक्रिय एवं सराहनीय कदम है। वर्तमान में सेमीकंडक्टर की मांग दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ती जा रही है। इसका कारण यह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स आधारित उपकरणों का प्रयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। चूंकि सेमीकंडक्टर प्रत्येक क्षेत्र का आधारभूत तत्व है, लिहाजा इस क्षेत्र में रुचि के साथ-साथ आवश्यकता एवं निवेश का बढ़ना स्वाभाविक सी बात है। आंकड़े बताते हैं कि भारत का चीन से 65 प्रतिशत आयात केवल तीन क्षेत्रों- इलेक्ट्रॉनिक्स, जैविक रसायन एवं मशीनरी से होता है। 2022-23 में भारत के द्वारा लैपटॉप सहित 5.33 अरब डॉलर के पर्सनल कंप्यूटर का आयात किया गया। 2021-22 में यह आंकड़ा 7.37 अरब डॉलर का था। 2022-23 में भारत के द्वारा 77 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक सामान का आयात किया गया। वर्तमान में सर्वाधिक उन्नत किस्म के सेमीकंडक्टर के 92 प्रतिशत का निर्माण ताइवान में होता है। सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में तीन सौ से अधिक शिक्षण संस्थानों की पहचान की गई है जिनके माध्यम से देश को सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में कुशल इंजीनियर प्राप्त होंगे। आंकड़ों के अनुसार 2014 से अब तक देश के इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन में 70 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है। हाल ही में अमेरिकी कंपनियों माइक्रोन एवं एएमडी के द्वारा भारत में सेमीकंडक्टर क्षेत्र में क्रमशः 6800 करोड़ एवं 3300 करोड़ के निवेश का प्रस्ताव रखा गया है। एएमडी के द्वारा बेंगलुरु में एक नया अनुसंधान एवं विकास परिसर खोलने की योजना है, जो विश्व में उसका सबसे बड़ा संयंत्र होगा।
वर्ष 2021 में भारत सेमीकंडक्टर मिशन का शुभारंभ किया गया, जिसका प्रमुख उद्देश्य सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाते हुए, भारत के अंदर संभावनाओं से भरपूर सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम तैयार करना एवं जल्द ही भारत को सेमीकंडक्टर का वैश्विक हब बनाते हुए आयात से निर्यात के क्षेत्र में धकेलना है। वैश्विक आंकड़ों के अनुसार 2030 तक वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग का राजस्व 1 ट्रिलियन डॉलर होने की संभावना है। वर्तमान की स्थिति पर यदि नजर डालें, तो भारत में सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में शोध कार्य तो पूर्ण प्रगति पर है किंतु निर्माण कार्य अभी उन्नति के उस स्तर तक नहीं पहुंचा है जो वर्तमान की मांग है। वर्तमान में सेमीकंडक्टर का निर्माण दुनिया के चुनिंदा देशों में ही किया जाता है, जिनमें चीन, अमेरिका, दक्षिणी कोरिया, ताइवान, हांगकांग इत्यादि प्रमुख हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2022-23 में भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की खपत 158 अरब डॉलर रही थी। 2016-17 से लेकर 2022-23 के बीच यह खपत 11 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। यह कहीं न कहीं चिंता की बात है कि वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग एवं इलेक्ट्रॉनिक निर्यात के क्षेत्र में अनेकों देश भारत से आगे हैं। किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रियता एवं कुशल नेतृत्व के द्वारा हम इस क्षेत्र में भी प्रगति के आकाश को छूने की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। वर्ष 2020 में मोबाइल फोन एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के निर्माण हेतु 40951 करोड रुपए के प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव की घोषणा की गई, जिसके बाद से इन उत्पादों की हिस्सेदारी भारत के निर्यात में लगातार बढ़ रही है। भारत शीघ्रातिशीघ्र इलेक्ट्रॉनिक अर्थव्यवस्था का पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करने के लिए प्रयासरत है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2023-24 के प्रथम तीन माह में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के निर्यात में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आज तमाम विदेशी कंपनियां भारत की ओर रुख कर रही हैं। एप्पल जैसी कंपनी के आईफोन का निर्माण भारत में होने लगा है। बैंक ऑफ़ अमेरिका की रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2025 तक पूरे विश्व में बिकने वाले 18 प्रतिशत आईफोन का निर्माण भारत में होने लगेगा। इसका सीधा सा अर्थ है कि भारत के प्रति वैश्विक कंपनियों का विश्वास बढ़ रहा है एवं वे भारत को संभावनाओं से युक्त इलेक्ट्रॉनिकी हब के रूप में देख रही हैं।एएमडी, वेदांत, फॉक्सकॉन, माइक्रोन जैसी कंपनियां सेमीकंडक्टर निर्माण को लेकर पूर्ण रूपेण सक्रिय हो चुकी हैं। इन सभी कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण लाभ यह होगा कि एक न एक दिन चीन व दक्षिणी कोरिया जैसे देशों पर हमारी निर्भरता पूर्णतया समाप्त हो जाएगी। सेमीकंडक्टर से जुड़े पाठ्यक्रम को पढ़ाने के लिए तीन सौ से अधिक संस्थाओं का चयन किया गया है। निस्संदेह वह वक्त शीघ्र ही आएगा जब हमें अपने ही देश से सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में कुशल इंजीनियर प्राप्त होंगे। यह भी पूर्ण रूपेण स्पष्ट है कि जब सेमीकंडक्टर एवं इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग भारत में अपने पांव पसारेगा, तो निश्चित रूप से देश के एक बड़े बेरोजगार वर्ग को रोजगार का एक साधन प्राप्त होगा। सरकार के द्वारा गठित सेमीकॉन इंडिया फ्यूचर स्किल टैलेंट कमेटी की रिपोर्ट यह कहती है कि इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग के लिए वर्ष 2030 तक 12 लाख कुशल लोगों की आवश्यकता होगी और साथ ही साथ सेमीकंडक्टर चिप के निर्माण हेतु 2.75 लाख इंजीनियरों की जरूरत होगी। वर्तमान में चीन 900 अरब डॉलर से अधिक का इलेक्ट्रॉनिक निर्यात सालाना करता है। निश्चित रूप से इलेक्ट्रॉनिक हब के रूप में अपनी छवि निर्मित करने की दिशा में हमारे समक्ष अनेक चुनौतियां हैं, किंतु यह कार्य असंभव नहीं है। सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने हेतु मुख्य रूप से दो कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। पहला तो भारत के अंदर सेमीकंडक्टर संयंत्रों को प्रोत्साहन देते हुए उत्पादन बढ़ाए जाने को नीतियां सुनिश्चित करना, साथ ही साथ उन परिस्थितियों को उत्पन्न करना जो इन संयंत्रों के विकास में सहायक हों। निस्संदेह वह दिन दूर नहीं है जब देश को मेड इन इंडिया चिप मिल जाएगी और हम सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भी आयातक से निर्यातक की भूमिका में आ जाएंगे।