गोपेंद्र नाथ भट्ट
लम्बा कद ,बड़ा ललाट,बुलन्द आवाज़,आँखों पर चश्मा और अपने गौर वर्ण के साथ हमेशा हँसमुख रहने वाले तथा बिन्दास अन्दाज़ एवं बेबाक़ी से अपनी बात रखने वाले स्वर्गीय कमल किशोर जैन का बहु आयामी और प्रतिभा सम्पन्न तथाआसाधारण व्यक्तित्व हर किसी को आकर्षित करता था। प्रिय जन उन्हें भैईयाजी के नाम से पुकारते थे।उनके दो पुत्र और दो पुत्रियों का भरापूरा परिवार हैं। छह अक्टूबर को उनकी जन्म शताब्दी पर जयपुर के आदिनाथ नगर में गीतों भरी शाम भैया जी के नाम कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
स्वर्गीय कमल किशोर जैन ने स्वाधीनता आन्दोलन, सामाजिक कुरीतियाँ के उन्मूलन, सामाजिक,सांस्कृतिक,धार्मिक आध्यात्मिक और सरकारी क्षेत्र में अपने अतुलनीय कार्यों से समाज में एक अलग ही स्थान बनाया।
वे राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में एक चर्चित और वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी थे जिन्होंने प्रदेश और राज्य के बाहर सूचना केन्द्रों की स्थापना करने की परिकल्पना को साकार करने में सूत्रधार बन कर अहम भूमिका निभाई । कालान्तर में यें सूचना केन्द्र विभिन्न गतिविधियों के सशक्त माध्यम बने और इन केन्द्रों के पुस्तकालयों एवं वाचनालयों से लाभान्वित होकर कई युवक -युवतियाँ आईएएस,आईपीएस और अन्य प्रशासनिक अधिकारी बन कर निकले। ये सूचना केन्द्र शैक्षणिक, सांस्कृतिक,मनोरंजन, प्रदर्शनियों, संगोष्ठियों फिल्म प्रदर्शन आदि के आयोजनों और समाचारों के प्रेषण के साथ ही सरकार की विभिन्न विकास गतिविधियों के सेतु भी बने। इन सूचना केन्द्रों की उपादेयता और सार्थकता आज भी बनी हुई हैं।
स्वर्गीय कमल किशोर जैन के प्रदेश के माननीय राज्यपाल, मुख्यमंत्री,मंत्री गणों और अन्य जन प्रतिनिधियों से निजी रिश्ते थे । वे बेझिझक और बेबाक़ी के साथ उन्हें प्रदेश के विकास से जुड़े विषयों पर अपनी राय देते थे । उन्होंने राजस्थान के रेगिस्तान को हराभरा और सरसब्ज बनाने के लिए निर्मित विश्व की सबसे बड़ी नहर परियोजना राजस्थान केनाल जिसका नाम अब इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना है के विकास कार्यों को उजागर कराने के लिए कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया दलों की यात्राओं के आयोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । इसके अलावा उन्होंने पश्चिमी राजस्थान के सीमावर्ती इलाक़ों में 1971 के भारत – पाकिस्तान युद्ध के दौरान नागरिकों तक सही सूचनाएँ पहुँचाने और नागरिक सुरक्षा एवं सतर्कता बरतने से जुड़ी अधिकृत खबरों के प्रेषण में मीडिया समन्वयक की भूमिका का निर्वहन किया। वे जीवन पर्यन्त स्काउट एवं गाइड गतिविधियों से भी सक्रिय रूप से जुड़े रहें।
दिवंगत कमल किशोर जैन बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी थे ।सामाजिक क्षेत्र में भी उनके योगदान का कोई सानी नही था। वे जीवन पर्यन्त जैन धर्मावलम्बियों के प्रसिद्ध स्थल श्री महावीर जी और अन्य मंदिरों से जुड़े रहें। श्री महावीर जी के वार्षिक समारोह में देश और प्रदेश की मीडिया टीमों को आमन्त्रित करने तथा कवि सम्मेलनों के आयोजन में उनके योगदान को कभी भुलाया नही जा सकता। उनके द्वारा इन कवि सम्मेलनों में मंच प्रदान करने से कालान्तर में कई कवि देश के लब्ध प्रतिष्ठित कवि बन कर उभरें।
स्वर्गीय कमल किशोर जैन गत शताब्दी के उत्तरार्ध में राजस्थान की एक ऐसी शख़्सियत के रूप में उभरे जिनका योगदान केवल पत्रकारिता तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया और अपने बेजोड़ कार्यों से अपनी एक अलग ही पहचान और साख बनाई। वे अच्छे लेखक थे और उनकी रचनायें देश प्रदेश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे।
दिवंगत कमल किशोर जैन के जीवन की खास बात उनकी सादगी थी । उन्होंने जीवन भर खादी के कपड़े ही पहने । सामाजिक कुरीतियीं के खिलाफ वे आजन्म संघर्ष करते रहे। उन्होंने पर्दा प्रथा, मृत्यु भोज और दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज़ बुलन्द की। इन सभी कुरीतियों को सर्वप्रथम इन्होनें अपने परिवार से दूर किया और स्वयं के विवाह में पर्दा प्रथा को त्याग कर एक उदाहरण पेश किया। वे मानते थे कि जब खून का रंग लाल है, तो सभी लोग एक सरीखे हैं, क्या जाति और क्या धर्म। इसी वजह से उन्होंने अपने परिवार में भी अंतर्जातीय विवाह से परहेज नहीं किया । उनकी सादगी का आलम यह था कि विवाह के अवसर पर वे बेटी के बाप का दर्द समझते थे, तभी उस पर बोझ न पड़े यह सुनिश्चित कर बहुत आग्रह करने के उपरांत भी वे अपने परिवार के विवाहों में 51 से अधिक बाराती लेकर कभी नहीं गए । वे फिजूलखर्ची के भी खिलाफ रहे, उनका मानना था कि जब दिन में विवाह संभव है तो रात में क्यों अनावश्यक बिजली जलाकर इस रस्म का निर्वहन किया जाए।
जीवन परिचय
जयपुर में जबलपुर वाले शाह (जैन) परिवार में 6 अक्टूबर 1923 को जन्मे कमल किशोर जैन की प्रारंभिक शिक्षा लालसोट से हुई, इसके बाद 1941 में आगरा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत अछनेरा से हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में उच्च शिक्षा अध्ययन के लिए महाराजा कॉलेज जयपुर में प्रवेश लिया। इस कॉलेज में वे छात्र संघ के पहले निर्वाचित अध्यक्ष बने। तत्पश्यात् आपने हिन्दी में एम.ए. किया एवं साहित्य रत्न को उपाधि प्राप्त की। उनका विवाह मई 1942 में कासलीवाल परिवार की कान्ता देवी के साथ हुआ।
यह वह दौर था जबकि हिंदी पत्रकारिता अपने शैशव काल में थी और कमल किशोर जैन के खून में देश की आजादी के प्रति एक सोच और कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी। इसी वजह से इन्होंने लोकवाणी अख़बार के जरिए अपनी पत्रकारिता की शुरूआत राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री श्री हीरालाल शास्त्री के साथ की। इसके बाद वे राष्ट्रदूत से जुड़ें जो कि आजादी के बाद तीन दशक तक प्रदेश की हिंदी पत्रकारिता का सिरमौर रहा।यह वह दौर था जबकि राष्ट्रदूत में कपूर चंद्र कुलिश, दिनेश खरे और चंद्रगुप्त वार्ष्णेय सरीखे दिग्गज पत्रकार काम करते थे। राष्ट्रदूत में लंबी सेवाएं देने के बाद कमल किशोर जैन ने आकाशवाणी में उदघोषक के रूप में सेवाएँ दी और बाद में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा टाईम्स ऑफ इंडिया में भी अपनी सेवाये दी। कालांतर में राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय में संयुक्त निदेशक के पद पर काम कर 1978 में सेवा निवृत्त हुए।
यह कमल किशोर जैन का विजन था कि उन्होंने जयपुर में सूचना कद्र सरीखी एक व्यवस्था की सोच विकसित की । जयपुर एवं राजस्थान के सभी प्रमुख नगरों में सूचना केंद्रों की स्थापना का श्रेय श्री जैन को ही जाता हैं। साथ ही उन्होंने देश के चारों महानगरों दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चैन्नई में जनसंपर्क कार्यालय और सूचना केन्द्र स्थापित करायें थे।
भारत सरकार ने 1978 में श्री जैन की पत्रकारिता की गुणवत्ता को देखते हुए इन्हे भारत-पाक युद्ध 1971 को बाडमेर सेक्टर के गदरा बोर्डर से कवर करवाया। श्री कमल किशोर जैन का स्काउट एवं गाइड संस्था से काफी लगाव था। और अपनी क्षमताओं के जरिए राजस्थान के स्काउट एवं गाइड को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलवाने में कामयाब रहे। उनके प्रयासों से 1955-56 में राजस्थान में राष्ट्रीय स्तर की जंबूरी का आयोजन भी हुआ था । वे एक समर्पित स्काउट थे। वे आजीवन इस संस्था से जुडे रहे तथा सभी जंबुरियों में बडे शौक से भाग लिया एवं जनसंपर्क शाखा के प्रभारी भी रहें। इसके अलावा श्रीमहावीर जी स्थित अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जैन तीर्थ से आपका सतत जुडाव रहा और महावीर जयंती पर वहाँ विशाल कवि सम्मेलन आयोजित करने की शुरूआत भी जैन ने ही की थी।
उनकी जीवन की इस मिसाल का उल्लेख करना समयोचित होंगा कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान वे जेल गए, लेकिन जब बाद में उन्हें स्वाधीनता आंदोलन का प्रमाणन ताम्र पत्र में रूप में दिया जाना तय हुआ था तो उसे उन्होंने करने से इंकार कर दिया । उनका कहना था कि हमने देश को आजाद इसलिए नहीं कराया कि सरकारों से जीवनचर्या वृत्ति लेते रहें।
उनके बड़े पुत्र विजय जैन और छोटे प्रमोद जैन (जाने माने आर्किटेक्ट) तथा दोनों पुत्रियां आशा एवं अनिला आज भी उनके बताये कदमों का अनुसरण कर रहे हैं।
वे प्रकृति प्रेमी थे और उन्हें पर्यटन यात्राओं का बहुत शोक था । वे छुट्टीयॉ व्यतीत करने विभिन्न स्थानों पर जाते हैं थे किन्तु उनके लिये भ्रमण करना महज चन्द दिनो की छुट्टी बिताना नहीं होता था वरन वे उस स्थान की आत्मा की तह तक जाते थे और वहॉ से लौटकर अपने अनुभवों को परिवार मित्र जनों यह विभिन्न पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से पाठकों में बॉटते थे ।
श्री जैन की धर्म पत्नी श्रीमती कान्ता देवी का निधन अगस्त 1995 में हो गया था।अपनी पत्नी के बाद के अपने एकाकी जीवन को श्री जैन ने परिवार और समाज सेवा को समर्पित कर दिया था।
श्री जैन ने 3 फरवरी 2004 को 81 वर्ष की उम्र में अपने जीवन की अंतिम सांस ली और इसके साथ ही राजस्थान के इतिहास के एक बेजोड़ अध्याय की समाप्ति हो गई।
आज जब कमल किशोर जैन याद आते हैं तो जुबां से बरबस यहीं शब्द निकल आते हैं कि “हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा”
(लेखक राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के प्रेस अटेची और राजस्थान सूचना केन्द्र नई दिल्ली में अतिरिक्त निदेशक रहें है)