जीवन जीने की सीख देती पुस्तक “अमीबा एवम अन्य कविताऍं”

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

कविता कामिनी के कमनीय कांत कलेवर को कोमल काव्य कुसुम से अलंकृत करने वाले कवि डॉक्टर संतोष पटेल जी अपनी कविता संग्रह “अमीबा एवम अन्य कविताऍं” के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं पर अलख जगाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने इस पुस्तक के द्वारा विभिन्न समस्याओं पर अपनी कलम के माध्यम से जोड़दार प्रहार किया है। इस पुस्तक में एक तरफ जहाँ बहुजन समाज की जिंदगी के कई गुमनाम पहलुओं को केंद्र में रखा गया है वहीं प्रेम , भाईचारे , गांधीवादी विचार, अंबेडकर के विचारों से सुसज्जित मुद्दों पर भी कलम तोड़ा गया है।

संग्रह की पहली कविता ‘रेगिस्तान के फूल’ में कवि ने आम जीवन की बात किया है। जिस तरह से प्रकृति फूलों को उपजा देती है, ठीक वैसे ही जीवन में खुशियों की इमारत का निर्माण होता है। इंसान में संवेदना , प्रेम , दया , करूंगा सम्माहित होना चाहिए ताकि जीवन की नैया को पार लगाया जा सकें। डॉक्टर पटेल की एक कविता ‘व्याकुलता’ में भी प्रेम से जीवन को आगे बढ़ाते जाने की बात करतें हैं। कवि ने मिलन की आस को बड़ा ही सजीवता से तुलनात्मक रूप से लिखा है।

कवि डॉक्टर पटेल की कविता ‘लोक और शिष्ट’ में वर्षो से समाज में चले आ रहे शोषण को लिखा है। एक लेखक अपनी रचनाओं में पहले सिर्फ अपने वर्ग की बात करता था, वहीं जब से शोषक वर्ग ने कलम उठाई है, उन्होंने सामाजिक शोषण का पर्चा- पर्चा खोल दिया है। शोषित वर्ग की अधिकारों की लड़ाई कलम से लड़ी जाने लगी है। उनकी एक और कविता ‘वर्ना गांधी पसंद कब थे उन्हें’ में वर्तमान भारत में गांधी की दशा पर लिखा है। आज के दौर में गांधीवाद सिर्फ नाम का सिम्बोल मात्र ही समझा जाने लगा है। तभी तो गांधी सिर्फ भाषण देने के काम आते है और बदले में गोडसेवादियों ने समाज को हिंसक बना रखा है।

एक कविता ‘ दलित के घर सहभोज’ के माध्यम से उन्होंने सामाज में फ़ैल चुके भेदभाव को उजागर किया गया है। एक तरफ जहां संविधान में भेदभाव को खत्म करने की कोशिश हुई है , लेकिन संविधान लागू होने के सात दशक बाद भी स्थिती में सुधार नहीं हैं। इस पुस्तक के शीर्षक कविता ‘अमीबा’ में अमीबा के माध्यम से आम जीवन की बात किया गया है। आजकल मक्कारी और बेशर्मी के बावजूद लोग ख़ुद को स्वघोषित ईश्वर साबित करने पर उतारू हैं। कवि लिखतें हैं-
“अमीबा !
साबित हो गया कि
ऊर्ध्व गमन में तुम हो माहिर
खेल करते हो जैसे हो कोई साहिर
रोगकारी और विकारी
भरी है तुझमें केवल मक्कारी
इतनी बेशर्मी के बावजूद
अपने को बना रखे हो देवता ।”

डॉक्टर संतोष पटेल की पुस्तक “अमीबा एवम अन्य कविताऍं” से समाज को बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। पुस्तक हर वर्ग को संवैधानिक अधिकार के लिए खड़ा होने की बात भी करती है तथा समाज में प्रेम और भाईचारा बनाने की भी बात कर रहा है। पाठक वर्ग वर्तमान समाज को जानने के एक बेहतरीन उदाहरण के रूप में इस पुस्तक को देख रहे हैं।

पुस्तक – अमीबा एवम अन्य कविताऍं
लेखक – डॉ. संतोष पटेल
प्रकाशक – न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन , नई दिल्ली
मूल्य – 225 रुपया
पेज – 104