सीता राम शर्मा ‘चेतन’
आतंकवाद विश्व की सबसे बड़ी समस्या है जिस पर बिना किसी वैचारिक, सैद्धांतिक और व्यवहारिक मतभेद के वैश्विक एकजुटता के साथ कठोर प्रहार कर उसका सर्वनाश करने की जरूरत है । इजराइल पर हमास के द्वारा किए गए आतंकवादी हमले के बाद विश्व को बिना देर किए आतंकवाद पर एक वैश्विक विमर्श और निष्कर्ष तक पहुंचने की जरूरत है । दुर्भाग्य से हमास के विरुद्ध अपना सख्त रुख दिखाते या उसकी निंदा की औपचारिकता निभाते देश इस दिशा में अब भी अगंभीर और लापरवाह ही दिखाई देते हैं । उनका ध्यान वैश्विक आतंकवाद पर कम इजराइल के बहाने अपने दूसरे स्वार्थ और लक्ष्य साधने पर ज्यादा है, जो कम से कम वैश्विक आतंकवाद से मुक्ति की दृष्टि से बेहद निराशाजनक स्थिति है । वैश्विक आतंकवाद को लेकर सबसे ज्यादा चिंतनीय स्थिति यह है कि इसके विरोध और सर्वनाश को लेकर वैश्विक एकजुटता लाने और नीतिगत कठोर नियम कानूनों को बनाने और फिर सफलतापूर्वक उनको अमल में लाने का दायित्व जिस वैश्विक संस्थान का है, वह आज तक ना तो वैधानिक रूप से आतंकवाद को ठीक से जान समझ पाया है और ना ही उसको परिभाषित ही कर पाया है । फिर उसके द्वारा इसके ठोस और संपूर्ण निदान तथा विनाश की बात का औचित्य ही क्या ! बावजूद इसके यह समय की मांग है कि आतंकवाद के विरुद्ध गंभीर वैश्विक विमर्श और निष्कर्ष तक पहुंचने की दिशा में प्रयास हो और यह तो वही कर सकता है जो या तो वैश्विक मानवता का पक्षधर हो या फिर आतंकवाद की इस समस्या से ज्यादा त्रसित । निःसंदेह इन दोनों ही दृष्टिकोण से आतंकवाद के विरुद्ध भारत का नाम स्वाभाविक रूप से सामने आता है । अतः भारत को अब वैश्विक समुदाय से आतंकवाद पर वैश्विक विमर्श और निष्कर्ष के लिए त्वरित आगे आने की बात कहनी चाहिए । माध्यम यदि संयुक्त राष्ट्र हो तो और बेहतर होगा ।
गौरतलब है कि हमास द्वारा इजराइल पर किए गए घोर अमानवीय, निंदनीय और कायरतापूर्ण आतंकवादी हमले को लेकर अब तक संयुक्त राष्ट्र द्वारा बंद कमरे की बैठक से लेकर सार्वजनिक तौर पर निंदा और मानवाधिकार की दुहाई देते हुए बंधको को छोड़ने की जो बातें सामने आई है, उससे भी वैश्विक शांति और सुरक्षा के इस महत्वपूर्ण और जिम्मेवार संस्थान के खोखलापन, इसकी कमजोरी और दीनहीन स्थिति की वास्तविकता आइने की तरह साफ हो गई है । इसलिए इजराइल में सामने आए वैश्विक आतंकवाद पर वैश्विक मानवता के दृष्टिकोण से वैश्विक जिम्मेवार संस्थान की दीनता को प्रकट करते हुए वैश्विक विमर्श और निष्कर्ष पर वैश्विक ध्यानाकर्षण की जरूरत है । अब तक यह कहा जाता था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता पर अलग-अलग जातिगत और धार्मिक कट्टरता भी कैसे धर्म के नाम पर आतंकवाद को जन्म देकर उसका पालन पोषण और फैलाव करती है, यह अब बहुत आसानी से जाना समझा जा सकता है । अच्छी बात यह है कि इसका दायरा अभी सीमित है । इसलिए बेहतर होगा कि इसका अंत भी समय रहते मानवीय दृष्टिकोण से सार्वजनिक और सामुहिक वैश्विक विमर्श और प्रयास से किया जाए । वैश्विक भलाई के लिए वैश्विक आतंकवाद का निदान वैश्विक एकजुटता के एकमात्र मापदंड मानवता के आधार पर हो । यदि समय रहते ऐसा नहीं किया गया तो निःसंदेह आगामी निकट भविष्य में ही आतंकवाद अपने अलग-अलग जातिगत और धार्मिक रुपों में वैश्विक मानवता और मानवीय संसार पर अपना कहर ढाएगा और तब सबका एकतरफा अर्थात आर्थिक और सामरिक विकास, मानवीय विकास के अभाव में पंगु, कमजोर और उसका विनाश ही सिद्ध होगा, जो किसी भी दृष्टिकोण से किसी के लिए भी अच्छी स्थिति नहीं होगी ।
अंत में रही बात आतंकवाद को लेकर भारत की, तो भारत सरकार को इजराइल पर हमास के हुए आतंकवादी हमले को लेकर उसकी उस कमजोरी पर गंभीर चिंतन करना चाहिए जो उसके खुफिया तंत्र की विफलता को लेकर सामने आई है । भारत और भारतीय प्रशासनिक तथा राजनीतिक तंत्र को यह बात बहुत गंभीरतापूर्वक समझने की जरूरत है कि एक देश के रुप में उसका और उसकी सरकार का पहला और महत्वपूर्ण काम किसी भी कालखंड और परिस्थितियों में अपने खुफिया तंत्र को पूर्ण रूपेण सक्षम, सख्त, सक्रिय और संपर्क में बनाए रखने का है । बात आतंकवाद और शत्रु राष्ट्रों से सुरक्षित रहने की हो, आत्मनिर्भर और विकसित भारत के लक्ष्य की हो या फिर राजनीतिक स्वच्छता और ईमानदारी की, सबके लिए खुफिया तंत्र की आवश्यकता अनिवार्य और सबसे पहली है । सच कहा जाए तो राष्ट्र के मुखिया के दिनचर्या की सुबह की शुरुआत आवश्यकतानुसार मिनट दो मिनट के लिए ही सही, खुफिया तंत्र के संपर्क से ही प्रारंभ होनी चाहिए । राष्ट्रीय खुफिया तंत्र के व्यापक विस्तार और विकास पर भी जितना जल्दी काम हो, बेहतर होगा ।