नरेंद्र तिवारी
भारत की एक बड़ी आबादी कठिन परिश्रम से दो वक्त की रोटी की जुगाड़ करती है। सुबह से शाम तक कड़ा शारारिक परिश्रम कर अपने परिवार को पालने हेतु राशि जुटा पाती है। इसके विपरीत सरकारी और राजनीतिक क्षेत्र में हम देखते है कि जनता की सेवा के नाम पर नेताओं और अफसरों का गठजोड़ अनियमितता और भष्ट्राचार से करोड़ो रु कमाता है। नेता और अफसरों के इस गठजोड़ की काली कमाई महानगरों में बड़ी-बड़ी आलीशान इमारतों के रूप में नजर आती है। महानगरों की सड़कों पर दौड़ती चमचमाती हुई कारो में सोने के आभूषणों से लदी मैम साहबो का रईसी ठाठबाट सरकारी और राजनतिक गठजोड़ से कमाई ब्लैक मनी का ही प्रदर्शन है। भारत मे आर्थिक असमानता का यह दृश्य देश के मेहनतकश आम नागरिक को खलता है, इस आमनागरिक को काली कमाई से दिखाई जाने वाली शान-औ-शौकत में जनता का शोषण नजर आता है। आम नागरिक के विकास, हक और तरक्की का करोड़ो रु भष्ट्राचार की भेंट चढ़ जाता है। भारत मे आर्थिक असमानता की खाई बहुत गहरी है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के आकड़ो के अनुसार भारत मे 1 प्रतिशत सर्वाधिक अमीर लोगो के पास 2021 में कुल राष्ट्रीय आय का 22 प्रतिशत हिस्सा था, जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत लोग राष्ट्रीय आय के 57 प्रतिशत भाग पर काबिज थै। हमारे देश की आधी आबादी सिर्फ 13.1 फीसदी कमाती है।
इस असमानता का सबसे बड़ा कारण भष्ट्राचार को ही माना जाता है। भष्ट्राचार देश की तरक्की के लिए नासूर बन गया है। इन हालातों में भष्ट्र आचरण के खिलाफ निष्पक्ष और निर्विवाद कदमों की आवश्यकता है, आजादी के बाद से अब तक देश के हुक्मरानों ने भष्ट्राचार को खत्म करने की सौगन्ध तो खूब खाई, किंतु भष्ट्र आचरण सरकारी और राजनीतिक तंत्र की कार्यप्रणाली का हिस्सा बन चुका है। भष्ट्र आचरण कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। इसी के साथ बढ़ती जा रही है आर्थिक असमानता की खाई जो आमजन के मन मे समानता की कोशिशों के लिए शंका पैदा करती है। संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार की पालना तब ही सम्भव है, जब हमारी व्यवस्था की जड़ो में गहरे पैठ बना चुके भष्ट्राचार को सख्ती से समाप्त नहीं किया जाता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा 2022 में जारी भष्ट्राचार सूचकांक में 180 देशों में भारत 40 अंकों के साथ 85 वे स्थान पर बरकरार है। इंडियन करप्शन सर्वे 2019 की रिपोर्ट में भारत के क्रमशः भष्ट्र राज्य बताए गए है। जिनमे राजस्थान, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, कर्नाटक एव तमिलनाडु शामिल है। भष्ट्राचार के मामले में सर्वे कितने विश्वनीय औऱ सच के करीब है, यह कहा नहीं जा सकता है। किंतु यह भष्ट्राचार भारत के सभी राज्यो में कम-ज्यादा रूप से फैला हुआ है। मध्यप्रदेश में भष्ट्राचार की चर्चा जब आती है तो आईएएस दम्पति अरविंद जोशी और टीनू जोशी का जिक्र जरूर होता है। वर्ष 2011 में जब इस दम्पत्ति के यहां आयकर विभाग की रेड हुई तो भष्ट्राचार का ख़ौफ़नाक सच जाहिर हुआ। इस कपल से जप्त नामी और बेनामी संपत्ति का आकलन 360 करोड़ रु किया था, याने इस आईएएस दम्पत्ति द्वारा अपनी जॉइनिंग वर्ष 1979 से ही 12 करोड़ रु सालाना कमाई की जा रही थी। आईएएस दम्पप्ति का यह उदाहरण अफसरों में व्याप्त लालची प्रवृत्ति का उदाहरण है। इस क्रम में एमपी का व्यापम घोटाला भी सरकारी तंत्र और नेताओं के गठजोड़ की बेशर्म वास्तविकता है। हमारे सिस्टम में रच-बस गया भष्ट्राचार रूपी दानव देश के विकास में बाधक बन रहा है। वहीं नागरिक समाज मे सरकारी तंत्र के प्रति अविश्वास का कारण भी बन चुका है। हमारे तंत्र में ग्राम पंचायत से लगाकर बड़े-बड़े शासकीय कार्यालयों में व्याप्त लालफीताशाही बिना अवैध कमाई किये कोई कार्य नहीं करती। इस भष्ट्राचार की जड़ में हमारा राजनीतिक सिस्टम भी बराबरी का सहभागी है। राजनीति के इस मैदान में बिना धन के नहीं उतरा जा सकता है। सिंद्धांत मूल्य नैतिकता अब पुराने जमाने के शब्द हो गए है। महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारीलाल नंदा, अटलबिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे जैसे चरित्र अब राजनीतिक सिस्टम से बनना बन्द हो चुके है। ईमानदार चरित्रों का राजनीति में हस्तक्षेप लगभग खत्म हो चुका है। राजनीतिक मंचो से भष्ट्राचार पर सख्ती बनावटी, दिखावटी अधिक लगती है। पूंजीवादी राजनीति के दौर में मूल्यों की राजनीति का स्थान नगण्य हो गया है। यही कारण है की सीबीआई, ईडी जैसी एजेंसियों की कार्यप्रणाली चर्चा का केंद्र बनी हुई है। इन एजेंसियों पर पूर्व में भी सरकारी कठपुतली के आरोप लग चुके है, किँतु क्या पुरानी गलतियों को दोहराने के बजाय उन्हें सुधारा नहीं जाना चाहिए। इन एजेंसियों का सरकार को ईमानदारी से उपयोग करना चाहिए। सरकार की एजेंसियों पर विपक्षी नेताओं के सवाल बिना कारण नहीं है। इन सवालों के पीछे ऐसे राजनैतिक घटनाक्रम और चेहरे है जो शंका के घेरे में है। जिनपर भष्ट्राचार के आरोप लगे किंतु जब इन चेहरों ने अपनी निष्ठाओं को बदला तो जैसे यह वाशिंग मशीन धूल कर पाक-साफ हो गए।
सरकार की निष्पक्षता पर सवाल उठाते चेहरों में महाराष्ट्र राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार शामिल है। वें जब शिवसेना के साथ सरकार में शामिल थे तब उनपर भष्ट्राचार के आरोप केंद्र के सत्ताधारी दल द्वारा लगाए जा रहे थै, वे महाराष्ट्र की भाजपा के सहयोग से चलने वाली सरकार में शामिल हो गए तब उन पर सत्ताधारी दल ने आरोप लगाने बन्द कर दिए। शायद सत्ता में भागीदारी जांच से बचाने का परिणाम मॉनी जा रही है। महाराष्ट्र की राजनीति में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, नारायण राणे जैसे नेताओं ने भाजपा का सहयोग किया तो उनके सब पाप धुल गए। कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदीउरप्पा पर रिश्वत के आरोप के लिए न्यायालय ने एफआईआर के निर्देश दिए, किंतु केंद्र सरकार की किसी एजेंसी ने बीएस के खिलाफ कोई कार्यवाहीं नहीं की ऐसे बहुत से उदाहरण है। एमपी में भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे तब भाजपा उन पर जमीन घोटाले का आरोप लगाती थी। जब से वह भाजपा में शामिल हुए आरोप तो दूर केंद्र की भाजपा सरकार में मंत्री बनाकर सम्मानित किया जा रहा है।
ऐसी ही कुछ कहानी असम के मुख्यमंत्री हिम्मत विश्व शर्मा की है। जब वे कांग्रेस में थै भष्ट्र कहे जाते थे, भाजपा में शामिल होकर गंगा नहा लिए, अब विपक्ष उनपर कोरोना काल मे किट एवं शारदा घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा रहा है, वें असम के मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित कर रहे है। वैसे राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते रहे है, राजनीतिक आरोप लगाने मात्र से किसी नेता को भष्ट्र कहना भी गलत है। इस दौर की राजनीति में जब ईमानदार नेताओं की कमी महसूस की जा रही है, बिना अवैध धन के उपयोग के बिना चुनावो में भाग लेना और विजय पाना आसान नजर नहीं आता तब सत्ताधारी दल का इससे बचे रहना सम्भव नहीं है। विपक्षी नेताओं का यह आरोप भी है कि सरकार अपने नेताओं, मंत्रियों के भष्ट्राचार को छुपाती है। इन सबके बीच जिन पर भी आरोप लगे उसकी सच्चाई का पता लगाकर एजेंसियों ने निष्पक्षता से कार्यवाहीं करनी चाहिए। देशप्रेम और राष्ट्रवाद की बात करना आसान है किंतु ईमानदार चरित्रों का निर्माण करना कठिन है। ईमानदार चरित्र ही भारत की इस सबसे बड़ी और गम्भीर समस्या का समाधान ढूढ़ सकते है। सरकारी एजेंसियों को एकसमान रूप से भष्ट्राचार से जुड़े विषयो पर कार्यवाही करना चाहिए। आमजनता में सरकारी तंत्र के प्रति विश्वास पैदा करने के लिए ऊपरी स्तर से ईमानदार कोशिशों का किया जाना बेहद जरूरी है। भष्ट्राचार देश के विकास में सबसे बड़ा बाधक तत्व है। देश की गरीब जनता के हक की राशि मे अनियमितता कर लाभ कमाने की भावना राष्ट्र के साथ अपराध है। ऐसे आपराधिक तत्वों के खिलाफ चाहे वह किसी भी पद पर हो, किसी भी राजनतिक दल में हो, उन पर सख्ती के साथ कार्यवाहीं किये जाने की जरूरत है। देश का आमनागरिक भष्ट्राचार पर ईमानदार नियंत्रण की आवश्यकता महसूस कर रहा है।