अशोक मधुप
शारदीय नवरात्रि का आरंभ रविवार 15 अक्टूबर 2023 से हो रहा है।नवरात्र में अधिकांश हिंदू परिवार घर में मां के कलश की स्थापना करते हैं।इन नौ दिन उपवास रखकर देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है।देवी स्परुपा कन्याओं को पूजा जाता है।उन्हें जिमाया जाता है। वस्त्रादि भेंट किए जाते हैं। उपहार दिए जाते हैं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है।सदियों से चली आ रही इस परम्परा में वक्त के हिसाब से अब सुधार की जरूरत है। आज जरूरत है कि हम कन्याओं को पूजे और जिंमाए ही नहीं।उन्हें शिक्षित करें।उन्हें आत्मसुरक्षा भी सिखाए।उन्हें गुड टच और बेड टच से अवगत भी करांए। कन्याओं को आज के समाज में शान और सम्मान के साथ जीने के योग्य बनांए। ज्यादती के खिलाफ बोलना भी बतांए।इतनी ही नही बेटियों को सुरक्षा का वचन दें।शपथ लें कि गर्भ में बेटियों को नही मारेंगे। बेटी व्यक्ति विशेष की होने के साथ ही समाज की होती हैं। वचन लें आपदा में प्रत्येक बेटी की मदद करेंगे।
नवरात्र देश भर में अलग −अलग रूप में मनाए जाते हैं।पूजा अर्चन की जाती है।सबका तात्पर्य यह ही है कि देवी शक्ति की पूजा कर हम उनसे अपने और समाज के कल्याण का आशीर्वाद मांगे।स्वस्थ समाज की मांग करें।ये सब कुछ सदियों से चला आ रहा है। आज समय की मांग है कि हम आगे बढ़े।वक्त की जरूरत के साथ परिवर्तन करें।
आज देश की देवियां ,महिलाएं, मातृशक्ति विकास के हर क्षेत्र में अपना योगदान कर रही हैं।कार तो बहुत समय से चलाती रही हैं। अब ये आटो, ट्रक,ट्रेन ,मालगाड़ी भी चलाने लगीं हैं।ये प्लेन उड़ा रही हैं। अब तो सेना में जाकर बार्डर की हिफाजत भी महिलाएं कर रही हैं। आधुनिकतम लड़ाकू विमान भी उड़ा रहीं हैं। उन्हें निंयत्रित कर रही हैं।
कभी गाना , बजना, नाचना महिलाओं की कला थी। उसमें उन्हें पारंगत करने के साथ− साथ पुराने समय से परिवार की बेटियों को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई,अनाज पिसाई,छनाई के साथ घर के कामकाज सफाई,भोजन बनाने में आदि में निपुण किया जाता था। ताकि वह समय की जरूरत के हिसाब के शादी के बाद अपने परिवार को संभाल सकें। इस समय शिक्षा पर उतना जोर नही था। परिवार की जरूरतें बढ़ी तो पढ़ी लिखी बेटियां और महिलाएं घर की चाहरदीवारी से निकलीं। नौकरी करने लगीं। बिजनेस में परिवार को सहयोग देने लगीं।समय बदला ।महिलाएं आज शिक्षित हो सभी क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रही हैं। नौकरी के लिए अकेली युवती का विदेश जाना अब आम हो गया।
समय के साथ− साथ समाज की प्राथमिकताएं भी बदलीं। नहीं बदला तो महिलाओं और युवतियों के शोषण का सिलसिला। भारतीय समाज में फैली दहेज की कुप्रथा के कारण गर्भ में ही बालिका भ्रूण मारे जाने लगे।परिवार में ही आसपास ने नाते रिश्तेदारों द्वारा छुटपन से बेटियों के साथ छेड़छाड़ ,यौन शोषण चलता रहा।देश में चेतना आई ,शिक्षा का स्तर बढ़ा पर महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध कम नही हुए। राष्ट्रीय महिला आयोग ने सूचित किया कि वर्ष 2021 के प्रारंभिक आठ महीनों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की शिकायतों में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
राष्ट्रीय महिला आयोग को साल 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की करीब 31,000 शिकायतें मिलीं थी जो 2014 के बाद सबसे ज्यादा हैं। इनमें से आधे से ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश के थे। महिलाओं के खिलाफ अपराध की शिकायतों में 2020 की तुलना में 2021 में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। साल 2020 में कुल 23,722 शिकायतें महिला आयोग को मिली थीं।राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 30,864 शिकायतों में से, अधिकतम 11,013 सम्मान के साथ जीने के अधिकार से संबंधित थीं। घरेलू हिंसा से संबंधित 6,633 और दहेज उत्पीड़न से संबंधित 4,589 शिकायतें थीं। सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सबसे अधिक 15,828 शिकायतें दर्ज की गईं, इसके बाद दिल्ली में 3,336, महाराष्ट्र में 1,504, हरियाणा में 1,460 और बिहार में 1,456 शिकायतें दर्ज की गईं।आयोग के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के शील भंग या छेड़छाड़ के अपराध के संबंध में 1,819 शिकायतें मिली हैं। बलात्कार और बलात्कार की कोशिश 1,675 शिकायतें, महिलाओं के प्रति पुलिस की उदासीनता की 1,537 और साइबर अपराधों की 858 शिकायतें मिली हैं। ये वे शिकायत हैं जो रजिस्टर होती हैं1 इससे कई गुनी शिकायत तो दर्ज ही नही होती। परिवार का सम्मान बताकर ,युवती की स्मिता की बातकर घटनांए दबाली जाती हैं।
अब तक बच्चियों को गाने – बचाना ,डांस करने के वीडियों सामने आते थे। हाल ही में एक वीडियों सामने आया जिसमें एक पिता अपनी बेटी को लाठी चलाना सिखा रहा है। इस छोटे से वीडियों को बहुत पसंद किया गया। एक बेटी को तलवार चलानासिखाने का वीडियो देखने को मिला। जूड़े− कराटे सीखते भी बेटियां दिखाई देने लगी हैं। किंतु अभी इससे बहुत आगे बढ़ना होगा। प्रत्येक बेटी का आत्मरक्षा सिखानी होगी। आज समय की मांग है कि परिवार विशेषकर मां बेटी को बचपन से गुड टच और बैड टच से अवगत कराए। इनका अंतर बताएं। कहीं कुछ घर के आसपास , स्कूल में, स्कूल बस में अगर गलत होता है तो बेटी घर आकर बतांए।बेटी अब घर की देहरी के अंदर तक ही सीमित नही रह गई है। वह कार्य के लिए घर से बाहर निकल रही है। ट्रेन में, बस में अकेले सफर कर रही है।नौकरी के लिए सात समुंद पार जा रही है।ऐसे में जरूरत है उसे आत्मसुरक्षा के लिए तैयार करने की।जुडे−कराटे सिखाने की। आत्मसुरक्षा में निपुण करने की, ताकि वह विपरीत परिस्थिति में अपना बचाव कर सके।अगर ऐसा होगा तो छेड़छाड़ करने वाले के भय से युवती को आत्महत्या नही करनी पड़ेगी।जबकि आज इस तरह की रोज अखबारों में खबर आ रही हैं।
पिछले दिनों मुरादाबाद में से 12वीं में पढ़ने वाली छात्रा ने छेड़छाड़ से परेशान होकर कीटनाशक खा कर आत्महत्याकर ली। मुंबई के विनोबा भावे नगर चचेरे भाई के बार-बार यौन उत्पीड़न से तंग आकर 15 वर्षीय किशोरी ने आत्महत्या की। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जनपद में मनचले की छेड़छाड़ से परेशान छात्रा ने अपने ही घर में फांसी का फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली।इस तरह की खबर रोज अखबारों में सुर्खियां बन रही हैं। हम अपने परिवार की बेटी का ऐसे संस्कार और शिक्षा दें। आत्मनिर्भर बनांए, आत्मसुरक्षा सिखाएं,ज्यादती के खिलाफ उसे आवाज उठाना भी सिखांए ताकि समाज की कन्या और हमारी बेटी की खबर अखबार की सुर्खी न बने। शपथ लें कि गर्भ में बेटियों को नही मारेंगे। बेटी व्यक्ति विशेष की होने के साथ ही समाज की होती हैं। वचन लें कि आपदा में प्रत्येक बेटी की मदद करेंगे। किसी बेटी पर होती ज्यादती और जुल्म देखकर मुंह नही फेर लेंगे। आंख नही मूंदेंगे। बल्कि ज्यादती करने वाले का पूरी क्षमता और शक्ति से विरोध करेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)