राहुल गांधी पिछड़ी जातियों के मुद्दे पर इतने व्याकुल क्यों हैं?

मधुरेन्द्र सिन्हा

मध्य प्रदेश के चुनाव अभियान में पिछली बार हमने देखा था कि किस तरह राहुल गांधी मंदिर-मंदिर जा रहे थे और धोती बांधकर मंदिरों में पूजा कर रहे थे। इतना ही नहीं शिव मंदिर में उन्होंने अपने को ब्राह्मण घोषित किया। उनके चमचों ने उन्हें कौल ब्राह्मण घोषित करवा कर एक आश्चर्य पैदा कर दिया कि आखिर कैसे एक पारसी दादा का पोता और ईसाई मां का बेटा कौल जैसे उच्च जाति का ब्राह्मण बन गया? इस देश में जहां जातियां कई पीढ़ियों से चलती आती हैं और उन पर गर्व करने वालों की तादाद भी काफी है वहां इस तरह का ड्रामा निष्फल हो गया। लेकिन अब राहुल गांधी को पार्टी के सूत्रधारों ने नया मसाला पकड़ा दिया है और वह है अगड़ी जाती बनाम पिछड़ी जाति यानी मंडल बनाम कमंडल। अब वह तोते की तरह रटे जा रहे हैं कि ओबीसी को उनका हक मिलना ही चाहिए। इस मामले में वे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर-करके ज़ोर-शोर से अपनी बात कह रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि मुटठी भर जातियों ने देश में सत्ता और पदों पर कब्जा कर रखा है। लेकिन यह शोर मचाते वक्त वह भूल गये कि पिछले चुनाव अभियानों में वह ब्राह्मण बनने के लिए उतावले थे। उस समय वह मंदिरों और शिव की बातें कर रहे थे। अब उन्हें एक मुद्दा पकड़ा दिया गया है और वे सभी पर आरोप लगा रहे हैं कि पिछड़ो, आदिवासियों का जो हक है वह दे दिया जाये। यह बात अलग है कि राहुल गांधी और उनकी मां देश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी की सर्वेसर्वा हैं। यहां अगड़े-पिछड़े की बात ही नहीं है और सारे फैसले मां-बेटे ही लेते हैं। दिखावे के लिए दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया है ठीक वैसे ही जैसे मनमोहन सिंह को पीएम बना दिया गया है। यह सभी जानते हैं कि खड़गे की पार्टी में बिसात क्या है और राहुल गांधी उनके साथ क्या करेंगे। सेंस ऑफ एंटाइटलमेंट से भरे हुए राहुल गांधी के लिए हर चीज और हर नेता छोटा है। जो पत्रकार संसद के सत्रों में जाते हैं उन्होंने राहुल गांधी को गलियारे में चलते हुए देखा होगा। उन्होंने देखा होगा कि राहुल गांधी जब चलते हैं तो आस-पास किसी पर भी ध्यान नहीं देते। उनके चेहरे पर एक अलग तरह का भाव होता है ठीक वैसा ही जैसा किसी राजा के चेहरे पर होता है। उनके सामने सभी छोटे हैं।
बहरहाल इस मामले में राहुल गांधी तमाम सीमाएं लांघ गये और पत्रकारों की कॉन्फ्रेंस में उनसे ही उनकी जातियां पूछने लगे जो नियहायत ही हल्की और बेहूदा हरकत थी। राहुल दुनिया को यह बताना चाहते हैं कि वह ओबीसी के मसीहा हैं और आने वाले समय में सभी कुछ बदल देंगे। वह सत्तर के दशक में जी रहे हैं और परिस्थितियां वैसी ही हैं। लेकिन समय बहुत बदल गया है। ओबीसी आरक्षण के नाम पर देश में मुट्ठी भर जातियों ने सरकारी नौकरियों पर कब्जा कर लिय़ा, यह उन्हेंने देखा और यह भी जान लिया कि आने वाले समय में सरकारी नौकरियों की गुंजाइश नहीं है। राज्य सरकारे नौकरियां देने की स्थिति में अब नहीं हैं क्योंकि वेतन-भत्ते का भार इतना है कि राज्यों की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। एक और बात है कि इस खेल में वह पीएम मोदी को विलेन नहीं घोषित कर सकते क्योंकि वह जिस जाति से हैं वह कई राज्यों में पिछड़ी जाति में शुमार है। ऐसे में उन पर हमला करके उन्हें कुछ मिलेगा भी नहीं। पीएम मोदी सुलझे हुए और परिपक्व नेता हैं और उन्हें लक्ष्य करके कौल ब्राह्मण राहुल गांधी कुछ नहीं पा सकेंगे। नारे लगाने के लिए यह मुद्दा अच्छा है लेकिन चुनाव में यह तीर कितना चलेगा यह हर कोई देखना चाहेगा।