गोविन्द ठाकुर
“भारत की कामयावी में चंद्रयान 3 का सफल लैंडिग खुद गौरव की गाथा लिए हुए है, तो जी 20 शिखर सम्मेलन भी कुटनीति के लिहाज से कम नहीं रहा… लेकिन कोरोना को लेकर पढाये जाने की बात हो रही है वह दिलचस्प है… सवाल उठता है कि क्या कोरोना के उस तमाम पहलूओं को शामिल किया जायेगा जो सवालों के घेरे में रहे हैं या फिर वैक्सीन ड्राईव ही शामिल किया जायेगा’”
एक बहुत दिलचस्प खबर आई है कि अब स्कूलों में बच्चों को चंद्रयान-तीन की सफल लैंडिंग, जी-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन और कोरोना प्रबंधन के बारे में पढ़ाया जाएगा। इन तीनों को सिलेबस में शामिल करने का फैसला इसलिए किया गया है ताकि बच्चों को आधुनिक समय के घटनाक्रम के बारे में जानकारी रहे। निश्चित रूप से चंद्रयान-तीन की सफल लैंडिंग भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि है और जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन भी भारत की एक बड़ी कूटनीतिक सफलता है। इनके बारे में बच्चों को बताया जाना चाहिए। लेकिन सवाल है कि कोरोना के प्रबंधन के मामले में क्या पढ़ाया जाएगा? यह भी सवाल है कि भारत के कोरोना प्रबंधन में पढ़ाए जाने लायक क्या है?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि सरकार कोरोना प्रबंधन के नाम पर वैक्सीन की उपलब्धि का बखान करेगी? पिछल दिनों एक फिल्म आई थी ‘द वैक्सीन वॉर’। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फिल्म की तारीफ की थी लेकिन चूंकि फिल्म एक पीआर एक्सरसाइज के तौर पर बनाई गई थी, जिसमें लॉकडाउन, चिलचिलाती गर्मी में लाखों लोगों पलायन, ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों, बेड नहीं मिलने की वजह से अस्पतालों के बाहर तड़प तड़प करते मरते लोगों, गंगा में बहती या गंगा किनारे दफन कर दी गई लाशों के बारे में कुछ नहीं दिखाया गया था इसलिए फिल्म बुरी तरह से पिट गई। लोग बिल्कुल ही थियेटर में नहीं गए। क्योंकि यह बहुत पहले की कहानी नहीं है। दो साल पहले लोगों ने सब कुछ अपनी आंखों से देखा है इसलिए उस पर परदा डालना मुश्किल है। तभी सवाल है कि क्या स्कूलों में बच्चों को कोरोना की त्रासदी के हर पहलू के बारे में पढ़ाया जाएगा या राजनीतिक भाषणों की तरह यह बताया जाएगा कि भारत ने सबसे शानदार तरीके से कोरोना का प्रबंधन किया?