राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा में अंतर्कलह की रार को पाटने के प्रयास !

  • अशोक गहलोत को गाँधी परिवार के साथ मिला खड़गे का भी साथ
  • वसुन्धरा राजे के बारे में प्रह्लाद जोशी ने बताई शीर्ष नेतृत्व को ज़मीनी हकीकत
  • राजस्थान में इस बार भी हाथ के पंजे का शासन चलेगा अथवा कमल का फूल खिलेगा

गोपेंद्र नाथ भट्ट

अगले माह नवम्बर के अन्त में 25 नवम्बर को राजस्थान विधानसभा के चुनाव होने है और 3 दिसम्बर को चुनाव परिणामों की घोषणा के साथ ही यह साफ़ हों जायेगा कि देश के सबसे बड़े भू भाग वाले प्रदेश राजस्थान में इस बार भी हाथ के पंजे का शासन चलेगा अथवा कमल का फूल खिलेगा।

भारत के निर्वाचन आयोग ने जब से विधानसभा की तिथियों का ऐलान किया है उसके पहले और बाद में एक और जहाँ राजस्थान की धरती के विभिन्न हिस्सों में देश-प्रदेश के नेताओं के दौरें निरंतर हों रहें हैं । भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और अन्य नेताओं तथा कांग्रेस की ओर से राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी राष्ट्रीय महामंत्री प्रियंका गाँधी और अन्य कई नेताओं के दौरें हों रहें हैं वहीं दूसरी ओर टिकट पाने की चाहत रखने वाले उम्मीदवारों की दौड़ और गला काट प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है तथा उम्मीदवारों की सूचियाँ जारी होने के साथ ही असन्तोष के स्वर और बगावत की धमकियाँ भी तेज हों गई है।दोनों दल इसे रोकने के लिए और आपसी समझाईश के ऐडी से चौंटी के प्रयास कर रहें है।

कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शुरू से ही सीटिंग गेटिंग फ़ार्मूला और पार्टी द्वारा करवाए गए सर्वे में जिताऊँ उम्मीदवारों के आधार पर अधिकांश मौजूदा विधायकों को टिकट देने के पक्षधर रहें हैं। साथ ही मुसीबत के वक्त सरकार का साथ देने वाले निर्दलीय और बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को भी पार्टी उम्मीदवार बनाने के पक्ष में है, लेकिन पायलट गुट के नेता गहलोत की इस पहल से इत्तेफ़ाक नही रखते ।

कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की कई दौर की बैठकों के बाद तैयार की गई सूचियाँ केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक में पहुँची तों उसमें चर्चा हुई जो बातें बाहर आई उसके अनुसार पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गाँधी तथा समिति के अन्य सदस्यों की उपस्थिति में राहुल गाँधी ने सूची को देख कर कहा कि अरे! यह तों वही पुराने नाम हैं,कोई नया है नही क्या? बताते है कि सूची में शांति धारीवाल और डॉ महेश जोशी तथा लाल डायरी के नाम से चर्चित हुए आरटीडीसी चेयरमेन धर्मेन्द्र राठौड़ के नाम होने से शीर्ष नेता बिफर गए।इसके बाद कांग्रेस की सूची अटक गई और तरह-तरह की बातें और कयास लगायें जाने लगें। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र बताते है कि कतिपय लोगों ने कांग्रेस हाई कमान को जो फ़ीडिंग दी उससे हालात और अधिक बिगड़ें।

बताते है कि यह बातें भी चली कि गहलोत साहब अपनी मर्ज़ी के लोगों को टिकट दिला विधायक दल में अपने गुट के लोगों का बहुमत जुटाना चाहते है।

चुनाव समिति की बैठक के बाद तनाव में दिखें गहलोत ने पार्टी अध्यक्ष खड़गे से मुलाक़ात की और कहा कि उन्होंने किसी उम्मीदवार के लिए अनुशंसा नही की है और सचिन पायलट के साथ मानेसर जाने वाले विधायकों को टिकट देने पर भी कोई आपत्ति नही की है। पार्टी के सर्वे और प्रभारी सह प्रभारियों की रिपोर्ट तथा स्क्रीनिंग कमेटी की राय के अनुसार ही सूचियाँ तैयार की गई हैं।

बताते है कि इस सारे मामले को मल्लिकार्जुन खड़गे ने तफ़सील से समझा और स्थिति को सम्भालने के लिए पहल कर पार्टी के शीर्ष नेताओं को भी ब्रीफ किया तब जाकर कहीं कांग्रेस की सूचियाँ जारी हुई। फिर भी अभी दो सूचियों में कांग्रेस के 76 नाम ही घोषित हुए है और अभी भी 124 नाम घोषित होने बाकी है जबकि भाजपा ने अपने 124 उम्मीदवारों की दो सूचियाँ जारी कर दी है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इससे पहलें भी गाँधी परिवार के निर्देश पर गहलोत-पायलट के मध्य चल रहे मतभेदों को दूर करने में भी मध्यस्थता कर अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कर्नाटका के विवाद को निपटाने में भी महत्वपूर्ण रोल अदा किया था।

राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा में दोनों प्रमुख पार्टियाँ पिछलें काफी समय से अंतर्कलह की रार झेल रही है जिसे पाटने के प्रयास शीर्ष स्तर पर किए जा रहें है।

दोनों दलों में अंतर्कलह की झलक पिछलें दिनों की विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में स्पष्ट दिखाई दे रही हैं।

कांग्रेस में पिछलें पाँच वर्षों में कोई ऐसा पल नही रहा जब वहाँ कोई अंतर्कलह नही देखी गई। गहलोत सरकार को गिराने के असफल प्रयासों के बाद यह रार और अधिक बढ़ी और मतभेदों के साथ-साथ मनभेद भी साफ दिखाई दिए। स्थिति यहाँ तक आ गई कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट की लड़ाई सड़कों पर आ गई और दोनों ओर से ऐसी तलवारें खिंची कि लगने लगा कि कांग्रेस विधायक दल में दो फाड़ होकर रहेंगे,लेकिन इन मुश्किल और नाज़ुक हालातों में गाँधी परिवार के साथ ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आगे आयें और उन्होंने कई दौर की चर्चा और समझाईश के बाद दोनों गुटों को अपनी तलवारें अपनी अपनी म्यानों में डालने के लिए विवश किया।सचिन पायलट ने यकायक चुप्पी साध ली और तीखे बयानों का दौर भी खत्म हुआ। बाद में गहलोत और पायलट प्रदेश में राष्ट्रीय नेताओं की सभाओं एवं विधान सभा के उम्मीदवारों की चयन सम्बन्धी बैठकों में साथ दिखें तथा सचिन ने भी बयान दिया कि उन्होंने निर्दलियों को पार्टी का टिकट देने विरोध नही किया है।

इस तरह स्पष्ट दिख रहा है कि राजस्थान में पार्टी की एकता बनाने की भूमिका में खड़गे का राजस्थान के नेतृत्व को ज़बर्दस्त साथ मिला हैं।इससे कांग्रेस में खड़गे का कद भी बहुत ऊँचा हुआ है। लगता है राजस्थान की शेष उम्मीदवारों की सूची में भी कतिपय नए चेहरों को छोड़ कर मौजूदा विधायकों की टिकटें शायद ही कटेगी।फिर भी यह देखना होगा कि शांति धारीवाल डॉ महेश जोशी आदि को टिकट मिलता है या नही ? ताज़ा घटनाक्रम में डॉ महेश जोशी और मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी लोकेश शर्मा की जयपुर में सचिन पायलट से मुलाक़ातों के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहें हैं।

इधर भाजपा में उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने के बाद प्रदेश में दिखें ज़ोरदार असन्तोष और विरोध के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा तथा राजस्थान बीजेपी चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के राजस्थान दौरें में असन्तोष को थामने एवं नए सिरे से ज़मीनी हकीकत को समझने की कौशिश की गई।

बताया जा रहा है कि प्रह्लाद जोशी ने वसुन्धरा राजे के बारे में शीर्ष नेतृत्व को ज़मीनी हकीकत बताई तथा नए सिरे से रणनीति बनाने की जरुरत बताई। पहली सूची के नामों के विरोध और भारी असन्तोष के बाद शीर्ष नेतृत्व की आँखे खुली और उन्हें लगा कि वसुन्धरा राजे को विश्वास में लिए बिना बात बनने वाली नही है और उसके बाद जारी सूची में एक भी सांसद को टिकट नही दिया गया और वसुन्धरा राजे के समर्थित 27 विधायकों को टिकट मिल गया।अब भाजपा की शेष 76 उम्मीदवारों की सूची आने के बाद यह देखना दिलचस्प होंगा कि उनमें कितने और वसुन्धरा समर्थकों को टिकट मिलता है?

राजनीतिक पंडितों के अनुसार यदि अब भी वसुन्धरा राजे को जाहिरात तौर पर कोई जिम्मेदारी दी जाती है तों इसका कितना लाभ भाजपा को मिलेगाऔर केन्द्र और प्रदेश के वसुन्धरा विरोधी नेता उन्हें कितना सहयोग करेंगे यह कहना मुश्किल है।

इधर भरोसेमन्द सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि भाजपा ने राजस्थान में हो रही बगावत को देखते हुए अपने केन्द्रीय मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारने का विचार छोड़ दिया है।

भाजपा द्वारा राजस्थान विधान सभा के लिए जारी अपनी पहली सूची में सात सांसदों,दो पूर्व सांसदों एवं एक पूर्व आईएएस अधिकारी को टिकट देने और दूसरी सूची में कुछ मौजूदा विधायकों के टिकट कटने तथा कई विधायकों को रीपिट करने के बाद प्रदेश में उपजे विवाद, असन्तोष और बगावत के हालात पैदा होने तथा राजनीतिक हालात के बद से बदतर होने एवं प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी के घर पर पथराव होने जैसी घटनाओं के बाद भाजपा को अपनी रणनीति में बदलाव करने को मजबूर होने की खबरें मिल रही है।

ख़ूफ़ियाँ ऐजेंसियाँ से उड़ती खबरों के अनुसार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने बदलती परिस्थितियों में प्रदेश के अपने तीन केन्द्रीय मन्त्रियों तथा और अधिक सांसदों को चुनाव मैदान में उतारने का विचार त्याग दिया है। इसे बीजेपी की दूसरी सूची में भी देखा गया है जहां पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सहित अधिकांश मौजूदा विधायकों की टिकिट रीपिट की गई है।

बताया जा रहा है कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित उनके मंत्रिपरिषद के मंत्रियों को घेरने के लिए अपने हेवीवेट उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार कर उन्हें कडी टक्कर देने की जुगत में था लेकिन पार्टी में हो रही बगावत को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व को बेकफ़ुट पर आना पड़ा है।

राजनीतिक पण्डितों का यह भी कहना है कि इस बार भाजपा को सही समय पर अपनी सही रणनीति नही बनाने और प्रदेश में पार्टी में उपजे असन्तोष को नही रोक पाने की कीमत चुकानी पड़ सकती है। हालाँकि भाजपा की ही तरह कांग्रेस में भी उम्मीदवारों के खिलाफ़ असन्तोष के सुर शुरू हों गए हैं तथा आने वाली सूचियों के बाद और कितने बढ़ेंगे यह कहा नही जा सकता ?

चुनावी मैदान में सभी दलों के उम्मीदवारों के उतरने के बाद ही सही तस्वीर सामने आ पायेंगी,फिर भी दोनों पार्टियों के हालातों और अन्य दलों के भी ताल ठोकने से चुनाव के संघर्ष पूर्ण होने कीसम्भावनाओं से इंकार नही किया जा सकता।

कुल मिला कर राजस्थान के रण में इस बार ऊँट किस करवट बैठेगा,यह कहना बहुत जल्द बाजी होंगी?