ललित गर्ग
समूची दुनिया मजहबी कट्टरता, अमानवीय अत्याचार एवं उन्मादी आतंकवाद के चलते विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है। हमास के आतंकवादियों ने किस तरह की हैवानियत की थी, छोटे छोटे बच्चों एवं महिलाओं के साथ घर में घुसकर हिंसा, अनाचार किया, गोली मारी, जिंदा जला दिया। पकड़े गये सैनिकों को बारूद में लपेट कर जीवित जला देना, अपने ही हिमायती लोगांे को अपने लिए मानव ढाल बनने के लिए मजबूर करना, उन्हें युद्ध क्षेत्र में रोकना, जिससे अधिक से अधिक लोगों की जान जा सके यह किसी युद्ध की स्थिति नहीं है, यह इस्लामी कट्टरवादी सोच है। यह सारी मानवता को चुनौती है, विश्वशांति को खतरा है, उसके लिए अस्तित्व रक्षा का प्रश्न है। अब सवाल ये है कि गाजा के आम लोगों का इसमें क्या कसूर? क्या हमास की दरिंदगी का बदला गाजा के आम लोगों के खून से चुकाया जाएगा? आखिर कब तक निर्दोष, मासूम एवं आमजन उन्माद एवं आतंक की भेंट चढ़ते रहेंगे? इस्लामी कट्टरता एवं उन्माद के काले दंश केवल गाजापट्टी में ही नहीं, भारत में भी कहर बरपाते रहे हैं, लम्बे समय सेे जम्मू-कश्मीर हो या, हाल ही में मणिपुर-मेवात में हुई हिंसा, उन्माद एवं वहशियाना हरकतें चिन्ता का सबब बनती रही है।
इस्लामी आतंकवाद खतरनाक है, मानवता पर कुठाराघात है। इस तरह के आतंक से दुनिया को डराना एवं भयभीत करना मुख्य लक्ष्य है। हमास के आतंकवादियों ने जब इजरायल के मासूम नागरिकों पर बेरहमी से हमला किया तो वो हथियारों के साथ-साथ कैमरों से भी लैस थे, अपनी वहशियाना हरकतों को कैमरे में कैद कर रहे थे। आज जब इसके सबूत सामने आए तो साफ हो गया कि इरादा सिर्फ मारकाट मचाना नहीं था, इरादा सिर्फ इजरायल को नुकसान पहुंचाने का भी नहीं था, इरादा तो ये था कि ये हैवानियत दुनिया को दिखाई जाए, दुनिया को इस्लाम एवं उसकी आतंकी सोच के सामने झूकने को विवश करना इरादा था, इरादा इजरायल के आत्मसम्मान पर चोट पहुंचाना भी था।
इजरायल दुनिया को हमास के जुल्मों की तस्वीरें दिखाकर पूछ रहा है कि इस पर दुनिया के इस्लामिक देश खामोश क्यों हैं? जो आज इजरायल से जंग रोकने के लिए कह रहे हैं उन्होंने हमास की अमानवीय कार्रवाई की निंदा क्यों नहीं की? अगर कैमरों पर सबूत न होते तो कुछ लोग शायद ये कह देते कि इजरायल की फौज और मोसाद ने खुद ही अपने लोगों को मरवाया ताकि उन्हें हमास पर हमला करने का बहाना मिल सके। लेकिन इस बात के पुख्ता सबूत हैं और दावे भी कि हमास के आतंकवादियों ने मासूम और बेकसूर लोगों के साथ वहशियाना तरीके से जुल्म किया, हत्या की और आज भी अगवा किए गए लोगों को इंसानी ढाल बनाकर अपने आप को बचाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन फिलिस्तीन का समर्थन एवं मानवाधिकार की बातें करने वाले इन हरकतों को नजरअंदाज करने में लगे हैं। दुनिया के कई मुल्कों में प्रदर्शन हुए हैं, लोग इजरायल पर दबाव बनाना चाहते हैं ताकि वो गाजा पर किए जा रहे हमलों को रोके।
इजरायल के कड़े रुख को देखते हुए अब हमारे देश में भी फिलिस्तीन और हमास के समर्थन में मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम नेताओं ने प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। ये वे ही लोग एवं संगठन हैं जो भारत में होने वाली आतंकवादी घटनाओं, उन्मादी सोच एवं हिंसा एवं पाकिस्तानी हरकतों का समर्थन करने से बाज नहीं आते। हमास के दहशतगर्दों ने महिलाओं के कपड़े उतारकर उन पर जुल्म करके, उनकी नुमाइश करते वक्त कैमरों के सामने अल्लाहु अकबर के नारे लगाए। गौर करने की बात ये भी है कि सऊदी अरब और यूनिइटेड अरब अमीरत के मुल्कों में कोई विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर नहीं उतरा लेकिन हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनके बारे में कुछ लोग कह रहे हैं-बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। असदुद्दीन ओवैसी खुलकर इजरायल का विरोध कर रहे हैं। इजरायल का समर्थन करने के भारत सरकार के फैसले को गलत बता रहे हैं।
पिछले दिनों मेवात में बरपी इस्लामिक कट्टरता में भी गाजापट्टी जैसे ही दृश्य देखने को मिले। जिहादियों ने हिन्दुओं पर हमला करने की पहले से पूरी तैयारी कर रखी थी। यहां तक कि उन्होंने मन्दिर में फंसे हिन्दू महिलाओं, बच्चों एवं निर्दोषों को निकालने के लिये गुरुग्राम से आने वाले पुलिसकर्मियों पर भी हमले किये। पुलिस थाने को भी जला दिया गया, ताकि पुलिसकर्मी रक्षा एवं बचाव कार्य न कर सके। उस समय मेवात मानो मिनी पाकिस्तान बन गया था। मेवात में अल्पसंख्यक हिन्दुओं का कब्रिस्तान बनाने का एक षडयंत्र एवं साजिश थी। मेवात के सभी सैकड़ों गांव हिन्दू-विहीन हो चुके हैं। मेवात के हालात आज के गाजा पट्टी जैसे ही बने हुए थे। भारत में ऐसे अनेक गाजापट्टी हैं, जहां इस्लामिक उन्माद चाहे जब फट सकता है। पूरे देश में इस्लामिक कट्टरता एवं जिहादी सोच के चलते मानवीय मूल्यों एवं साम्प्रदायिक सौहार्द का हृास हुआ है। हिंसा, आतंक, उन्माद पनपे हैं। इस्लामिक कट्टरता एवं उन्माद से जुड़ी समस्याओं ने नये सन्दर्भों में पंख फैलाये हैं। मानवीय संबंधों के बीच एकता, अखण्डता, सहयोगिता, सह-अस्तित्व, प्रेम, आपसी सौहार्द, करुणा, अहिंसा एवं उदारता की पहचान घटी है।
कहना गलत न होगा कि हमास द्वारा इजरायल के निर्दोषों का नरसंहार भारत के कथित धर्मनिरपेक्ष तत्वों को दिखाई नहीं दिया, वे तथा सत्ता विरोधी गठबंधन से जुड़े दल मुस्लिम वोटों की संकीर्ण राजनीति के चलते आतंकियों के विरुद्ध एक भी शब्द बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सके, आतंक के विरोध में बोलना उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण नीति के खिलाफ जो ठहरा। विश्व भर में मानवाधिकारों की बात करने वाले भी आतंकी हमलों का विरोध न करके चुप्पी साथ गए। यही नहीं, आतंकियों के समर्थन में भारत भर में सत्ता के विरोध का वातावरण बनाया गया। अब मानवीय दृष्टिकोण से जब गाजा के सामान्य निर्दोष नागरिकों के लिए भारत ने राहत सामग्री भेजी है, तब हमास के समर्थन में जुलूस निकालने और तकरीर करने वाले तत्वों ने भारतीय सत्ता की तनिक भी सराहना नहीं की। भारत ने विश्वस्तर पर पीड़ित मानवता की सहायता करने में कभी कसर बाकी नहीं छोड़ी, फिर भी खास धर्म के अनुयायियों द्वारा भारत का विरोध करना यही सिद्ध करता है कि भले ही सबका साथ सबका विकास की नीति का अनुपालन करते हुए सत्ता भेदभाव न करती हो, फिर भी कुछ तत्व ऐसे हैं जिनके लिए धर्म के नाम पर आतंकियों का समर्थन सर्वोपरि है, राष्ट्र दोयम दर्जे पर ही है। यह चिंताजनक स्थिति है, जिस पर गंभीरता से चिंतन किया जाना नितांत आवश्यक है।
जब आतंकवादियों पर कार्रवाई होगी, तो मानवाधिकारों का मामला बन जाएगा, और जब आतंकवादी निरीह नागरिकों की हत्याएं-बलात्कार और बाकी जघन्यता करेंगे, तो वही रूदाली गिरोह या तो दूसरी ओर देखने लगेगा, या महीन ढंग से काते गये शब्दों से उसके लिए ढाल पेश करने की कोशिश करेगा। यह ढाल शाब्दिक होती है, आभासी होती है। भौतिक ढाल वे मनुष्य होते हैं, जो उनके नियंत्रण में होते हैं। लगता है ऐसे में फिलिस्तीनियों को सावधान रहना होगा, क्योंकि मानवाधिकारवादी रूदाली के तीसरे चरण के लिए फिर मानवों की कुर्बानी की आवश्यकता पड़ सकती है। जाहिर है, यह कुर्बानी के मानव वे फिलिस्तीनी ही हो सकते हैं, जो या तो आतंकवादियों के हथियारों के वश में हैं या आतंकवादियों के दिखाए सपनों के वश में हैं। भारत में भी अक्सर ऐसा होता रहा है।
सभ्यता संचार माध्यमों का निर्माण करती है, ताकि लोगों तक सूचनाएं पहुंचाई जा सकें, पाशविकता उनका इस्तेमाल झूठ, नफरत, द्वेष एवं उन्माद फैलाने के लिए करती हैं, ताकि लोगांे को निशाना बनाया जा सके। सभ्यता मानवीयता को पालती-पोसती है, पाशविकता उन मनुष्यों को मानव दीवार में इस्तेमाल करती है। जिनमें कट्टरता है, उन्माद है, जिन्होंने हाथों में बम एवं हथियार उठा लिये हैं, वह शांति एवं अमन का कोई तर्क नहीं सुनेगा एवं समझेगा। वे यह भी समझने को तैयार नहीं होंगे कि निर्दोष मृतकों की सूची लम्बी करने के परिणाम में घृणा की विरासत बनती है। उन्माद, जिहादी घृणा, नफरत, द्वेष और खून की विरासत कभी किसी को कुछ नहीं देती, किसी का भला नहीं करती।