भारत से संबंधों को क्यों खराब करने पर तुला है कतर ?

प्रीती पांडेय

बीते दिनों 8 भारतीय नौसैनिकों को कतर की एक अदालत द्वारा जासूसी के मामले में फांसी सुनाएं जाने के मामले ने भारत सरकार को सकते में डाल दिया । कतर की कोर्ट के फैसले पर भारतीय विदेश मंत्रालय हैरान है और कहा है कि भारतीयों को फांसी के फंदे से बचाने के लिए कानूनी रास्ते तलाशे जा रहे हैं ।

अरब देशों में कतर पहले बहुत गरीब था. आज गैस की कमाई से कतर खुद और उसके देश के नागरिक अमेरिका और यूरोप में लगातार इनवेस्टमेंट कर रहे हैं । वर्ल्ड मार्केट में कतर की अलग पहचान बन गई है.

आठ भारतीयों को एकतरफा फांसी की सजा सुनाने वाला बहुत छोटा सा देश है कतर. बमुश्किल 30 लाख की आबादी. इनमें भी एक तिहाई दूसरे देशों के लोग. फिर भी डंके की चोट पर हमास और तालिबान जैसे संगठनों को अपने यहां दफ्तर खोलने देता है. दुनिया के अन्य आतंकी संगठनों की आर्थिक मदद करता है. अमेरिका-तालिबान में समझौता करवा देता है. कतर हमास का समर्थन और इजरायल के खिलाफ अरब देशों को एकजुट करने की कोशिश करता है । कतर कई अन्य देशों के बीच बातचीत में अब मीडीएटर की भूमिका निभा रहा है ।

वर्ल्ड मार्केट में कतर का कैसा प्रदर्शन?
अकूत प्राकृतिक गैस भंडार का बेहतरीन उपयोग करके उसने न केवल अपनी आर्थिकी मजबूत कर ली बल्कि दुनिया के अन्य मुल्कों पर भी अपना प्रभाव बना लिया.

गैस की कमाई से कतर खुद और उसके देश के नागरिक अमेरिका और यूरोप में लगातार इनवेस्टमेंट कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कतर आज ब्रिटेन में 10 वां सबसे बड़ा निवेशक है. कतर ने प्रॉपर्टी में भी खूब निवेश किया है. यूके की कंपनियों में भी कतर का खासा निवेश है. इसे समझने के लिए एक आंकड़ा पर्याप्त होगा कि साल 2022 में कतर ने डिविडेंट के रूप में लगभग 55 करोड़ डॉलर लिया है. फ्रांस, जर्मनी में भी उसका निवेश है.

कतर कैसे बना ताकतवर?
अमेरिका जैसा ताकतवर देश कतर में अपना सैन्य बेस बना लेता है, यह यूं ही नहीं हुआ. कतर वही देश है जिसने अपनी राजधानी दोहा में तालिबान से एक समझौता करवाकर अमेरिका की सेना को अफगानिस्तान से वापस भेज दिया । उधर, अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ा नहीं के तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो गया । यह समझौता साल 2020 फरवरी में हुआ । अगस्त 2021 तक अमेरिकी सेना ने अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया और वापस चले गए. हमें यह नहीं भूलना है कि अमेरिकी सेना बीते 20 साल यानी साल 2001 से अफगानिस्तान में डटी हुई थी. तालिबान से लड़ रही थी. उसे वापस भेजने का समझौता वाशिंगटन-काबुल में नहीं, बल्कि दोहा में हुआ. जब ट्रम्प शासन ने यह बातचीत शुरू की थी, तब कतर-तालिबान-अमेरिका ही शामिल थे, अफगानिस्तान की सरकार को इसकी भनक तक नहीं लगने पाई थी.

कतर का अन्य देशों के साथ कैसा संबंध?
कतर ने साल 2013 में तालिबान को अपना दफ्तर खोलने की इजाजत दी थी. इसके बड़े नेता भी कतर में रहा करते थे, जिस तरह हमास का दफ्तर और राजनीतिक ब्यूरो कतर से ही संचालित हो रहा है. कतर इससे पहले यमन सरकार और हूती विद्रोहियों के बीच भी समझौता करवाया था. यह बात साल 2008 की है. यह अलग बात है कि संघर्ष अभी भी चल ही रहा है
ठीक इसी समय लेबनान में चल रहे गृहयुद्ध के बीच भी कतर घुसा और विद्रोही गुटों को एकत्र कर बातचीत करवाई. फिर वहां साझे की सरकार बनी. सूडान और चाड के बीच भी मध्यस्थ रहा है कतर. साल 2011 में सूडान सरकार और विद्रोही गुट लिबरेशन एंड जस्टिस मूवमेंट के बीच भी कतर ने समझौता करवाया. इसका नाम ही दोहा समझौता रखा गया. साल 2012 में हमास-फतह के बीच भी दोहा में एक समझौता हुआ फिर वेस्ट बैंक में अंतरिम सरकार बन पाई.

यूरोपीयन फुटबाल क्लब, होटलों में भी कतर का निवेश है. अमेरिका की कंपनियों में भी निवेश के साथ कतर ने न्यूयार्क में प्रॉपर्टी में भी निवेश किया है. इस तरह आतंक का पोषक यह देश अपनी सॉफ्ट इमेज बना ले गया है. इसी वजह से उसे फीफा 2022 की मेजबानी मिली और इस तरह वह पहला अरब मुल्क बना जिसे यह मौका मिला.

कतर आतंकी संगठनों को समर्थन देने की बात कभी खुलकर स्वीकार नहीं करता लेकिन दुनिया के किसी भी देश को अगर किसी भी बड़े आतंकी संगठन से बातचीत करना है तो वह दोहा को प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल कर सकता है, बशर्ते उसे कतर की ओर पहले हाथ बढ़ाना होगा. वह सहमत हुआ तो बातचीत जरूर होगी. इजरायल-हमास के बीच चल रहे युद्ध के बीच हमास ने दो अमेरिकी नागरिक छोड़े हैं, उसमें भी कतर का हाथ है. अमेरिका ने कतर से मदद मांगी थी. चर्चा है कि भारतीयों को फांसी की सजा का समय इजरायल-हमास युद्ध से जुड़ा हो सकता है. इजरायल-भारत दोस्त हैं. फांसी की सजा पाए लोगों पर आरोप है कि उन्होंने इजरायल को कतर की सुरक्षा योजना लीक की है. वहीं कुछ जानकारो का मानना है कि कतर के इस फ़ैसले के पीछे पाकिस्तान की एक बड़ी भूमिका हो सकती और उसके पीछे की बड़ी वजह है क़तर में रहने वाले रसूखदार पाकिस्तानी फ़ौज के रिटायर्ड अधिकारी और ये लोग क़तर के हर स्टैबलिशमैंट में अंदर तक घुसे हुए हैं और हो सकता है कि उनके प्रभाव के चलते ये फैसला दिया गया हो. 8 लोगों को और वो भी भारतीयों को सजा सुनाया जाना ये सभी के लिए चौंकाने वाला है. पूर्व भारतीय नौसेना के अधिकारियों पर जो चार्ज फ़्रेम किया गया उसकी सजा मौत ही है, लेकिन भारत के साथ उस तरह की जानकारी साझा नहीं की गई. भारत और क़तर के रिश्ते अच्छे रहें हैं, लेकिन इतने नहीं की वो मुस्लिम ब्रदर हुड को पीछे छोड़ सके और पाकिस्तान इसका फ़ायदा उठा लेना चाहता है.

क़तर में तकरीबन 8 लाख भारतीय रहते हैं और 15000 से ज्यादा छोटी-बड़ी भारतीय कंपनियां क़तर में ऑपरेट करती हैं, जो वहां की इंफ़्रास्ट्रक्चर, कम्यूनिकेशन, आईटी और एनर्जी के क्षेत्र के साथ अन्य क्षेत्रों में अपनी भागीदारी दे रही है. भारत और क़तर के बीच व्यापारिक रिश्तों की बात करें तो साल 2021-22 में 15.03 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें 1.83 बिलियन डॉलर की दालें, कॉपर आयरन और स्टील की वस्तुएं, सब्ज़ी-फल, मसाले, प्रोसेस्ड फ़ूड, इलेक्ट्रिकल और मशीनें, प्लास्टिक प्रोडक्ट, कंस्ट्रक्शन मटेरियल, टेक्सटाइल और गारमेन्ट्स, कैमिकल, रबर और बेशक़ीमती पत्थर का निर्यात और 13.19 बिलियन डॉलर की एलएनजी, पीएनजी, कैमिकल और पेट्रोकेमिकल्स, फर्टिलाइजर, प्लास्टिक और एलिम्यूनियम की वस्तु क़तर से आयात की गई. इसके अलावा भारत और क़तर के बीच डिफेंस कोऑपरेशन भी अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है और ये रिश्ता पाकिस्तान को कम नहीं चुभता और उसकी कोशिश है कि ऐसे मामले को हवा देकर इन दोनों देशों के संबंध ख़राब कर दिए जाएं । इज़रायल और फ़िलस्तीन दोनों का समर्थन करते हुए भारत ने इस संघर्ष में अपने टू स्टेट फॉर्मूला पर जोर दिया है, लेकिन इसके साथ ही भारत ने किसी भी प्रकार के आतंकी गतिविधियों की ज़बरदस्त तरीक़े से भर्त्सना की जिसका मतलब है कि हमास आंतकी संगठन पर आपना रुख भारत ने साफ़ कर दिया है. उधर, पाकिस्तान जिसे बुचर ऑफ़ फ़िलिस्तीन भी कहा जाता है, वो फ़िलिस्तीन के समर्थन में झंडा बुलंद करने में जुटा है. पाकिस्तान तो वो देश है जब साल 2017 में सऊदी अरब, मिस्र, यमन, यूएई और बहरीन ने कतर से अपने संबंध ख़त्म कर दिए थे तब पाकिस्तान किसे समर्थन करें ये तक साफ़ नहीं कर सका था क्योंकि उसे बाक़ी देशों के साथ रिश्ते भी रखने का लालच था. वहीं भारत ने तब कतर की मदद की थी, जब अरब देशों ने उसके साथ राजनियक खत्म कर दिए थे. इसके चलते कतर को आयात निर्यात के लिए सुदूर बंदरगाहों का इस्तेमाल करना पड़ा था. तब गंभीर खाद्य संकट से गुजर रहे कतर की भारत सरकार ने भारत-कतर एक्सप्रेस सेवा नामक समुद्री आपूर्ति लाइन के जरिए मदद की थी. बहरीन, मिस्र, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर कतर से रिश्ते खत्म कर लिए थे. लेकिन आज वही कतर तमाम मेहरबानियों को अनदेखा करके आज भारत के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को खराब करने की अगर हिम्मत कर रहा है तो शर्तिया इसके पीछे पाकिस्तान जैसे आतंक के पनाहगार मुल्क ही है ।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उन 8 पूर्व नेवी अफसरों के परिवार से मुलाकात की है, जिन्हें कतर में मौत की सजा सुनाई गई है. विदेश मंत्री ने खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा कि कि सरकार मामले को सर्वोच्च महत्व दे रही है. हम उन परिवारों की चिंताओं और दर्द को समझते …हमने परिवारों को आश्वासन दिया है कि सरकार उनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास जारी रखेगी. परिवारों के साथ इस मुद्दे पर कॉर्डिनेट किया जाएगा । फिलहाल भारत सरकार के पास तमाम विकल्प मौजूद है , लेकिन बड़ा प्रश्न यही है कि जिस कतर के साथ कल तक हमारे संबंध बेहतर थे वो कतर आज क्या आतंक के मसले पर भारत के खुले स्टैंड की वजह से ये रवैया अख्तियार कर रहा है या वो पाक के हाथों कठपुतली बन कर संबंधों में ज़हर घोल रहा है