युवा उत्तराखंड और युवा-शक्ति

ओम प्रकाश उनियाल

उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवंबर 2000 हुयी थी। उत्तराखंडवासियों की लंबी लड़ाई के बाद यह मांग पूरी हुयी थी। पृथक राज्य आंदोलन में जो शहीद हुए उनके सपनों का राज्य आज तक नहीं बन पाया, यह आरोप जब भी जो सरकार बनी उस पर उत्तराखंडवासी लगाते आ रहे हैं। पहाड़ में रहने वाला ही बता सकता है कि पहाड़ में इतने सालों में कितना विकास हुआ, क्या वहां की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप विकास कार्य हो भी रहे हैं या नहीं? देहरादून या अन्य महानगरों में बैठकर जो पहाड़ के विकास का खाका खींचकर कोरे सपने बुनते रहते हैं वे पहाड़ के लोगों का दर्द भला कैसे समझेंगे? पहाड़ तो उनके लिए मात्र सैरगाह है। बस, दो-चार दिन जाते हैं, फिर आकर टीका-टिप्पणी करते हैं या फिर आपस में उलझ कर विवाद पैदा करते रहते हैं। हालांकि, जो पहाड़ में रह रहे हैं उन पर भी ‘गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। जिसकी सरकार बनती है उसी की वाह-वाह करने लगते हैं। अपने पहाड़ के प्रति जो लगाव व जागरूकता होनी चाहिए वह बहुत ही कम स्पष्ट नजर आती है। सरकारें तो बदलती रहती हैं लेकिन उत्तराखंडवासी अपना दृष्टिकोण कब बदलेंगे, यह सवाल भी काफी मायने रखता है? वास्तविकता यह है कि राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में जो बदलाव देखने को मिला वह है सक्षम लोगों द्वारा मैदानी शहरों व कस्बों में बसने की होड़। जो पहाड़ में रह रहे हैं उनमें तो कई ऐसे हैं जिन्होंने खेती-बाड़ी को भी तिलांजलि दे दी है। किसी के पास जंगली जानवरों द्वारा फसलों का नष्ट किया जा रहा है जैसा रटा-रटाया जवाब है तो किसी के पास पहाड़ में तो कुछ नहीं रखा है। न स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसी सुविधाएं जैसा जवाब। हालांकि, जो जागरूक हैं या पहाड़ के प्रति जिनका लगाव है वे सतत् रूप से खेती-बाड़ी, बागवानी व अन्य प्रकार के छुटपट उद्यम कर जीवन-यापन कर ही रहे हैं। पहाड़ों पर हर साल प्राकृतिक आपदाएं आती ही रहती हैं। इससे वहां हर तरह की भारी क्षति होती है। आपदाओं से जूझने के बावजूद भी जो लोग पहाड़ की तरह डटे रहते हैं वे उनके लिए मिशाल हैं जो केवल बहाने बनाकर पहाड़ से मैदान की तरफ अपना रुझान किए हुए हैं। हर काम के लिए सरकार और राजनीति करने वालों के भरोसे ही बैठे रहने से उत्तराखंड और वहां के वासी आगे नहीं बढ़ सकते। राजनीति करने वाले तो अपनी-अपनी पैठ बनाने के लिए कुछ न कुछ पैंतरे चलते ही रहेंगे। अपने-अपने क्षेत्र में कुछ करने का दम तो वहीं रह रहे लोगों को ही दिखाना पड़ेगा। खासतौर पर युवाओं को। यदि लोग पहाड़ की तरह अडिग रहेंगे तो सरकार किसी की भी हो उसे भी झुका सकते हैं। अपनी मेहनत का रंग बिखेर कर उत्तराखंड जैसी पावन भूमि को प्रगति के शिखर पर पहुंचा सकते हैं। एक कदम पहाड़ का मानस उठाएगा तो जो सरकार सत्ता में होगी दस कदम उठाने को स्वत: मजबूर होगी। युवा उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से युवा-शक्ति को अपनी आवाज बुलंद करने की पहल करनी होगी।
-ओम प्रकाश उनियाल