आर.के. सिन्हा
दीपावली और स्वादिष्ट मिठाइयों का चोली-दामन का साथ है। मिठाई के बिना दीपोत्सव का आनंद अधूरा ही माना जा सकता है। जो इंसान मिठाई नहीं पसंद करता या फिर डाक्टरी सलाह पर इसका सेवन नहीं करता, वह भी दिवाली पर तो कम से कम एक –दो डिब्बे मिठाई के खरीद ही लेता है। इसकी वजह यह है कि लक्ष्मी पूजन के वक्त मिठाई का प्रसाद लक्ष्मी-गणेश को अर्पित करके वितरित किया जाना है। पर यह भी मानना होगा कि दिवाली पर जिस मात्रा में मिलावटी मिठाइयां बाजार में मिलने लगी है, उसके चलते मिठाई का आनंद लेने से पहले हर इंसान कई बार सोचने लगा है।
सच में इस कारण से घनघोर मिठाई प्रेमी भी अब मिठाई खाने से कतराने लगे हैं। वर्ना एक दौर था जब दिवाली से पहले हिंदू परिवारों में मिठाइयों पर विस्तृत चर्चा होती थी। पर मिलावटी मिठाइयों की बिक्री ने लोगों को मिठाई से दूर सा कर दिया है। युवा पीढ़ी तो अब वैसे भी मिठाई को लेकर कोई बहुत उत्साह नहीं दिखाती है। इस स्थिति के लिए उन हलवाइयों को ही दोषी मानना ही होगा जो चंद सिक्कों की खातिर मिठाइयों को बनाते हुए भरपूर मिलावट करते हैं। मिलावटी मिठाइयां तो किसी की भी सेहत को खराब करने की गारंटी देती हैं। आप दीपावली से पहले इस तरह की खबरें जरूर ही पढ़ रहे होंगे कि मिठाई की दुकानों पर छापा मारा गया और वहां से मिलावटी मिठाई मिली।
मिलावटी मिठाई बेचने वाले हलवाइयों पर क्या कार्रवाई हुई, यह तो बाद की बात है पर इन खबरों को पढ़कर मिठाई खाने वाले दूर भागने लगते हैं। मुझे याद है कि देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहरी वाजपेयी के घर में अतिथियों को दिल्ली की मशहूर दुकानों की मिठाइयां पेश की जाती थीं। वे खुद भी मिठाई प्रेमी थे। इंदिरा गांधी जी भी मेहमानों को स्वादिष्ट मिठाइयां खिलवाती थीं। अगर ये नेता अब होते तो इन्होंने भी अपने मित्रों और मिलने वालों का मुंह मीठा करवाना बंद कर दिया होता। मैं भी अब अपने मेहमानों को घर में बने खजूर गुड़ के लड्डू पेश करता हूँ। अपनी गौशाला की देसी गायों का शुद्ध बिलोया हुआ घी तो है ही। चने के बेसन के अलावे बाजरा, कंगनी, कुटकी और सांवा के आटे के लड्डू भी अद्भुत स्वादिष्ट होते हैं।
बेशक पर्वों व खास अनुष्ठानों में मिठाई का बहुत महत्व होता है। दैनिक जीवन में मिठाई का सेवन भोजन के बाद किया जाता है। कुछ राज्यों में भोजन के पूर्व ही मिठाई पेश करने का रिवाज है। कुछ मिठाइयों को खाने का समय भी तय होता है जैसे जलेबी सुबह के समय खाई जाती है, तो रबड़ी रात में I कुछ मिठाइयां पर्वों से संबंधित होती हैं, जैसे गुझिया उत्तर भारत में होली पर बिकती है और पूर्वी भारत मे तीज के पर्व पर हर घर मे बनाई जाती है। उत्तर भारत में कलाकंद, काजू कतली, कालाजाम, गुलाब जामुन, घेवर, चमचम, जलेबी, बर्फ़ी, तिलकुट, दाल हलवा, नारियल बर्फ़ी, मिल्क केक, परवल की मिठाई, पेठा, पेड़ा, फीरनी वगैरह मिलती हैं। बताइये कि कौन सा इंसान होगा जिन्हें ये मिठाइयां पसंद न हो? इनका नाम सुनते ही मुहं से लार टपकने लगता है। पर दीपावली के मौके पर ये कितनी शुद्ध रूप से बनाई जाती हैं इसकी कोई गारंटी नहीं है।
किसे नहीं पता कि दिवाली पर हमारे यहां मिलावट का बाजार खूब फलता फूलता है। बाजारों में आपको खाने पीने की चीजों में सबसे ज्यादा मिलावट मिलेगी। दीपोत्सव पर मिलावटी मावा और मिलावटी मिठाइयों का बड़ा बाजार भी तैयार हो जाता है। दिल्ली के बाजार में ही इतना मावा या खोवा आ जाता है, जितना देश भर में उत्पादित दूध नहीं बना सकते! इसी कारण से बहुत सारे लोग मिलावट के चलते आजकल दिवाली पर मिठाई की जगह चॉकलेट्स, ड्राई फ्रूट या फिर नमकीन और कुकीज के गिफ्ट हैंपर देने लगे हैं। लेकिन, पूजा के लिए तो मिठाई लानी ही पड़ती है। ऐसे में मिठाई खरीदने से पहले ही आप भी नकली मिठाई की पहचान कर सकते हैं। मिठाई बनाते समय इसके इस्तेमाल में होने वाले दूध, मावा, चांदी के वर्क, चीनी या तेल तक में भरपूर मिलावट की जाती है। जैसे चांदी के वर्क में एल्यूमिनियम प्रचुर मात्र में मिला दिया जाता है। दूध में यूरिया, रंग, वांशिग पाउडर छूटकर मिला देते हैं। घी में जानवरों की चर्बी मिला दी जाती है। मावा भी पूर्णत: मिलावटी होता है। मावा में सबसे ज्यादा मिलावट की जाती है। इसकी पहचान करने के लिए फिल्टर पर आयोडीन की दो ड्रॉप डालें। अगर रंग काला हो जाए तो माल लें कि इसमें मिलावट है। अगर खोया बहुत दानेदार है तो समझो इसमें भी किसी तरह की मिलावट की गई है। शुद्ध खोया एकदम चिकना होता है। इसी तरह से मिठाई में कलर की भी खूब मिलावट भी बेशर्मी से की जाती है। इसलिए रंग बिरंगी मिठाई खाने-खरीदने से बचें। जान लें कि कलर वाली मिठाई को हाथ में लेकर चेक करें। अगर हाथ में रंग नहीं लग रहा तो रंग की मिलावट नहीं है। आपके लिए एक ये भी सलाह है कि मिठाई खरीदने से पहले चख लें। इस दौरान आपके बहुत सारे आपके शुभचिंतक आपको सही ही कहने लगते हैं कि आप मिठाइयों का सेवन कम या न करें। मतलब दीपावली पर भी मिष्ठान न खाएं। मिष्ठान हर भारतीयों की कमजोरी है। ये इस तरह की कमजोरी है जिससे किसी को हानि नहीं होती, यदि शुद्धत्ता बरती जाये। कहीं न कहीं कमी तो सरकारी महकमों की भी है जो मिलावट खोरों पर पूरी तरह शिकंजा नहीं कस पाते। एक बार जब मैंने इस विभाग के वरिष्ठ पदाधिकारी से पूछा तो उन्होंने इसका कारण फ़ूड इंस्पेक्टरों की कमी बताया। यदि कमी है पूरी करो । निर्दोष जनता को क्यों मारते हो?
भारतीय मिष्ठान शक्कर, अन्न,दूध और घी के अलग-अलग प्रकार से पकाने और मिलाने से बनती हैं। खीर और हलवा सबसे सामान्य मिठाइयां हैं जो प्रायः सभी के घरों में बनती हैं। इसके अतिरिक्त लड्डू, पेड़े, बर्फी और गुजिया भी घरों मे बनती हैI पर ज्यादातर मिठाइयां बाज़ार से ही खरीदी जाती हैं। भारत की संस्कृति के ही अनुसार यहां हर प्रदेश की मिठाई में भी विभिन्नता है। उदाहरण के लिए बंगाली मिठाइयों में छेने या पनीर की प्रमुखता है तो पंजाबी मिठाइयों में खोये की। उत्तर भारत की मिठाइयों में दूध की प्रमुखता है तो दक्षिण भारत की मिठाइयों में अन्न और नारियल की। यकीन मानिए कि कभी-कभी मन उदास सा हो जाता है कि दिवाली पर अधिकतर देशवासियों को शुद्ध मिठाइयां नहीं मिल पाती है। यह एक घोर निराशा की स्थिति है। सरकार को मिलावट खोरों के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन लेना चाहिए। उनकी लापरवाही से अच्छा भला सेहतमंद व्यक्ति मिलावटखोरों की चंगुल में फंसकर स्थायी रूप से बीमार होता जा रहा है। उन सरकारी अफसरों पर भी करवाई होनी चाहिए जो मिलावटखोरों पर एक्शन नहीं ले पाते। कई तो मिलावटखोरों की घूस खाकर मोटे होते जा रहे हैं। आखिर देश की संसद मिलावटखोरों को मौत या उम्र कैद की सजा देने के बिन्दु पर क्यों नहीं विचार करता ?
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)