ऋतुपर्ण दवे
स्त्री शिक्षा के फायदे गिनाते-गिनाते नीतिश कुमार भाषा की मर्यादा इस कदर भूल गए कि याद भी नहीं रहा कि वो लोकतंत्र के मंदिर में बोल रहे हैं? अक्सर माननीयों के बिगड़े बोल सामने आते रहते हैं, लेकिन जिस तरह से नीतिश ने हाथ मटका कर, अजीब भाव भंगिमा के साथ मंगलवार को विधानसभा में जो शब्द बोले वो ज्यों के त्यों लिखे भी नहीं जा सकते। नीतिश ने जिस तरह से सेक्स शिक्षा पर बयान दिया उससे बवाल तय था। सवाल यह भी है कि क्या एक परिपक्व राजनेता को जो देश के प्रधानमंत्री का ख्वाब भी पाले हुए है, इतना भान नहीं था कि वो क्या बोल रहे हैं?कहां बोल रहे हैं? उसके मायने क्या निकलेंगे? माना कि मेडिकल साइंस की भाषा में उन्होंने गलत नहीं कहा लेकिन जिस जगह कहा वह ऐसा स्थान नहीं था जहां उस भाषा में कहा जाना था, जिसका उपयोग उन्होंने किया।जिस समय नीतिश बोल रहे थे उस समय सदन में कई महिला नेत्री भी बैठी हुईं थीं कुछ शर्म से सिर झुकाए हुए थीं तो एक ने नाराजगी जताते हुए सदन से बहिर्गमन कर दिया।
उनके समर्थन में शुरू-शुरू में आए लोगों ने अपने ही तर्क देने शुरू किए लेकिन जब बुधवार को नीतिश ने सार्वजनिक तौर पर माफी मांग ली तो उनके बयान से उठा तूल थमने के बजाए अलग ही रंग में रंगता दिखा। उनका कहना “मैं खुद पर शर्म महसूस करता हूं, मेरी बात किसी को गलत लगी तो इसके लिए माफी मांगता हूंऔर अपना बयान वापस लेता हूं। इसके लिए दुख प्रकट करता हूं।” लेकिन सवाल यही कि क्या बुरा बोलकर माफी मांग लेना ही पर्याप्त है? क्या भारतीय राजनीति में इसे परिपाटी माना जा सकता है? शायद नहीं, कभी नहीं।
ऐसा भी नहीं है कि नीतिश देश के पहले राजनेता हैं जिनके बोल बिगड़े हों। हाँ ये बात जरूर है कि उन्होंने जिस तरह से कहा वो देश में पहली बार सुना और देखा गया है। हो सकता है कि दुनिया में भी सदन में पहली बार किसी ने कहा हो। आखिर नीतिश को इस तरह से बोलने की क्या जरूरत थी? सवाल तो बहुत से हैं लेकिन जवाब शायद किसी के पास नहीं होगा। सदन लोक प्रतिनिधित्व की पावन जगह है। यह कोई मयखाना या नशेड़ियों का अड्डा नहीं जो भी मन में आए बोल दिया। भले ही कोई मेडिकल साइंस की या जन्म दर के आंकड़े की दुहाई दे लेकिन सच तो यही है कि इस तरह की भाषा या शब्दावली के मायने चिकित्सा शिक्षा में अध्ययन या चिकित्सा के वक्तसामान्य होंगे। वहां भी इसके बोलने, समझाने का शिष्ट तरीका है। बांकी समय ऐसी भाषा नहीं बोली जाती है।
यह भी सही है कि सुशासन बाबू के नाम से भी अपनी अलग पहचान रखने वाले नीतिश कुमार की अलग छवि रही। नीतिश कुमार को कभी विकास कुमार भी कहा गया। जनचर्चा है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अपनी नई पहचान बनाने की पिनक में उन्होंने जो मुंह से कहा वो नई पहचान के लिए तो नहीं? क्योंकि दोनों ही सदन में कहना इसे चूक नहीं कह सकते।इसे जुबान फिसलना भी नहीं कह सकते क्योंकि कोई एक-दो शब्द होते तो माना भी जा सकता था यहां तो उन्होंने बड़े तरतीब से बेहद अश्लील शब्दों में अपनी बात कही। उनकी कही गई बात सच में दुनिया के किसी भी सभ्य समाज को नागवार गुजरना था, जो गुजरा भी। जो कहा वो पूरा का पूरा या ज्यों का त्यों लिखा भी नहीं जा सकता। उन्होंने कहा ‘लड़की पढ़ लेगी अगर, तो जब शादी होगी,तब पुरुष रोज रात में करता है ना। उसी में और (बच्चे) पैदा हो जाता है। लड़की अगर पढ़ लेगी तो उसको भीतर मत …, उसको भीतर मत …, उसको …. कर दो। इसी में संख्या घट रही है…।’ नीतिश बाबू ये आप क्या कह गए? आप खुद एक नहीं कई बार सुनें और बार-बार शर्मिन्दा हों। कितनी बार शर्मिन्दा होंगे? कहते हैं कमान से निकला तीर और जुबान से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते।
देश में तो इसका विरोध हो ही रहा है दुनिया में भी शुरू हो गया है। अफ्रीकी-अमेरिकी अभिनेत्री और गायिका मैरी मिलबेन ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा राज्य विधानसभा में जनसंख्या नियंत्रण पर बोलते वक्त शिक्षा और महिलाओं की भूमिका को समझाने के लिए अपमानजनक भाषा के किए इस्तेमाल पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि आज भारत एक निर्णायक स्थिति का सामना कर रहा है। ऐसे में बिहार मेंजहां महिलाओं के मूल्य को चुनौती दी जा रही है? मेरा मानना है कि इस चुनौती का केवल एक ही उत्तर है वो ये कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की टिप्पणियों के बाद, किसी साहसी महिला को आगे आकर बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी की घोषणा करनी चाहिए। यदि मैं भारत की नागरिक होतीतो बिहार जाती और मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ती। मेरा मानना है कि बिहार में महिला नेतृत्व को और सशक्त बनाना चाहिए तभी महिला सशक्तिकरण और विकास और प्रतिक्रिया की सच्ची भावना होगी। निश्चित रूप से अभी तो और भी कई तीखी प्रतिक्रियाएं आनी बांकी हैं।
यकीनन नीतिश ने जिस भी मकसद से अस्वीकार्य भाषा का इस्तेमाल किया वो तो वही जानें। लेकिन उनके एक बयान से पूरे देश में सियासत को नई हवा जरूर मिल गई है। निश्चित रूप से इण्डिया गठबंधन भी हक्का-बक्का होगी। विपक्ष को बैठे बिठाए वह भी पाँच राज्यों के चुनाव के दौरान बड़ा मुद्दा मिल गया। सबसे बड़ी बात यह भी कि नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले खुद ही अनैतिक हो जाएं तो उन पर नियंत्रण कौन करेगा? उससे भी बड़ा यह कि सर्वोपरि सदन में ऐसी भाषा बोलने की हिमाकत को साधारण नहीं कहा जा सकता। ये बाद की बात है कि इसे कार्यवाही से निकाल दिया जाए। लेकिन इस पर भी सोचना होगा कि दोबारा ऐसी कोई भी घटना न पाए। नीतिश को उनके इस बोल की क्या कीमत चुकानी होगी यह वक्त ही बताएगा।माफी मांगे या शर्मिन्दगी महसूस करें लेकिन अपने घर में भी नीतिश क्या सर उठा कर परिवार वालों से नजरें मिला पाते होंगे?नीतिश अपने इस बयान के लिए कौन सी सजा के हकदार होंगे नहीं पता लेकिन निश्चित रूप से इस अभद्र बोल से राजनीति भी बुरी तरह से शर्मसार हुई है। बस यही इल्तिजा है कि सदन, सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे बोल पहले और आखिरी हों।