- दस दिन बाद भी 41 जिंदगियों को बचाने का जी-तोड़ प्रयास
ओम प्रकाश उनियाल
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सिलक्यारा-डंडालगांव निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा ढहने से कई सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। चूक कहां, कैसे और क्यों हुई यह सब ठीकठाक होने के बाद की बात है। फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है। पहले श्रमिकों को सकुशल बाहर निकालने का सवाल है। घटना घटने की सूचना पाते ही शासन-प्रशासन ने प्राथमिकता के आधार पर पहले सुरंग में फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने का निर्णय लिया।
घटना 12 नवंबर को सुबह के वक्त घटी। सूचना मिलते ही एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, प्रशासन, पुलिस, एनएचआईडीसीएल आदि राहत एवं बचाव कार्य के लिए घटनास्थल पर पहुंचे। बचाव एवं राहत कार्य तत्काल तो शुरु तो किया गया लेकिन बार-बार कई प्रकार की अड़चनें बचाव दलों के सामने आती रही। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी मौके पर जाकर निरीक्षण किया और बचाव कार्यों की लगातार निगरानी करते रहे। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रेलमंत्री आदि भी स्थिति का जायजा लिया एवं जानकारी लेते रहे। मुख्यमंत्री ने सुरंग में हुए भू-धंसाव के अध्ययन एवं कारणों की जांच के लिए निदेशक उत्तराखंड भूस्खलन एवं न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केन्द्र की अध्यक्षता में समिति भी गठित की। जांच दल द्वारा सुरंग के ऊपर की पहाड़ी का भी सर्वेक्षण किया गया।
12 नवंबर को जब देश में दीपावली का त्योहार मनाया जा रहा था तब उत्तरकाशी जिले की सिलक्यारा टनल में फंसी 41 जिंदगियां बाहर निकलने के लिए व्याकुल थी। लेकिन बचाव दलों को हर तरह के तमाम प्रयासों के बावजूद भी असफलता ही हाथ लगती रही। हालांकि, टनल में फंसे श्रमिकों को पाईप के माध्यम से ऑक्सीजन, खाना, पानी, दवाईयों इत्यादि की व्यवस्था की जाती रही। श्रमिकों से बातचीत के जरिए हर समय बराबर संपर्क बनाए रखा गया। उन्हें जल्द बाहर निकालने का आश्वासन सबकी तरफ से दिया जाता रहा। पल-पल उनकी कुशल-क्षेम पूछी जाती रही। अंतत: पहाड़ी के ऊपर से ड्रिल करने का निर्णय लिया गया। लेख लिखे जाने तक की तारीख तक (अर्थात् दसवें दिन तक) फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए हर प्रकार की पूरी ताकत झोंकी हुई थी। कितने दिन अभी और लगेंगे। स्पष्ट तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन बचाव दलों के आश्वासन और जी-जान से बचाव कार्य में जुटे रहने से संभावना है कि जरूर जल्दी ही सफलता मिलेगी। सभी सकुशल सुरंग से बाहर निकाले जा सकेंगे।