दीपक कुमार त्यागी
- जीवन के लिए स्वच्छ हवा पाना हर जीव-जंतु व नागरिक का है अधिकार,
- निरोगी जीवन जीने के लिए कम से कम स्वच्छ सांसें तो दे दो सरकार
दीपावली के बाद एकबार फिर से दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र में वायु प्रदूषण के चलते जहरीली धुंध की परत छाई हुई है। एकबार फिर से यह क्षेत्र वायु प्रदूषण के चलते गैस चैंबर बन गया था। हालांकि वायु प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए दिल्ली में कमीशन फॉर एयर क्वॉलिटी एंड मैनेजमेंट ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) की स्टेज – 4 को पहले से ही लागू करने के निर्देश दे रखें थे, लेकिन चंद लोगों की वजह से सिस्टम में व्याप्त आकंठ भ्रष्टाचार के चलते धरातल पर लोगों ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) की पाबंदियों को ठेंगा दिखाने का कार्य किया है। जिस स्थिति के चलते हुए एकबार फिर भी इस पूरे क्षेत्र में तेजी से बढ़ते वायु प्रदूषण से स्थिति बेहद गंभीर है। वैसे तो दिल्ली-एनसीआर का यह पूरा क्षेत्र पिछले कई वर्षों से तरह-तरह के प्रदूषणों से जूझ रहा है, लेकिन इस बार तो वायु प्रदूषण के चलते नवंबर माह के शुरुआती दिनों में ही यह क्षेत्र गैस चैंबर में तब्दील हो गया था। जिसके पश्चात ही वायु प्रदूषण के मसले पर सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद सरकार का सिस्टम फाइलों से निकल कर प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए धरातल पर कुछ सक्रिय हो पाया था, दिल्ली की सरकार ने तो दीपावली के बाद कृत्रिम बारिश तक करवाने के बारे में विचार करना शुरू कर रखा था। लेकिन 9 नवंबर की रात को अचानक मौसम ने जबरदस्त ढंग से करवट ले ली, जिसके चलते इस क्षेत्र में तेज हवाओं के साथ ठीक-ठाक बारिश हो गई और लोगों को ईश्वर की कृपा से वायु प्रदूषण से कुछ अस्थाई तौर पर फ़ौरी राहत मिल गयी थी। लेकिन 12 नवंबर को दीपोत्सव के पावन पर्व पर इस क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय के पटाखे पर रोक होने के आदेश के बावजूद भी सिस्टम में बैठे चंद लोगों के मूकदर्शक बने रहने के चलते पटाखे बिक्री का काम हुआ था, जिसकी वजह से दिल्ली व एनसीआर के क्षेत्र में जमकर आतिशबाजी हुई थी, जिसके चलते दीपावली के बाद एकबार फिर से दिल्ली व एनसीआर के क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत तेजी से खराब हो गया था। वायु प्रदूषण दर्शाने वाला एक्यूआई का इंडेक्स 999 तक पहुंचकर के अपने ही पुराने रिकॉर्ड को ध्वस्त करने में व्यस्त हो गया था, वहीं दिल्ली की भोली-भाली जनता के कर्ताधर्ता 3.3 करोड़ जनता को पूरी तरह से भगवान के भरोसे छोड़कर के अपने आपको ईडी, सीबीआई से बचाने में व्यस्त था और बाकी समय में वह राज्यों के विधानसभा चुनावों में प्रचार करने में दिन-रात बेहद व्यस्त था।
हालांकि देश के विभिन्न राज्यों की जनता इस वर्ष दीपावली के पहले से ही वायु प्रदूषण से परेशान रही है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में ही तेजी से बढ़ते हुए गंभीर प्रकृति के वायु प्रदूषण ने दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र को तो गैस चैंबर बनाकर रख दिया है, जो स्थिति किसी भी प्रकार के जीवन के लिए बेहद घातक है। वैसे तो हमारे प्यारे देश में वायु प्रदूषण का आलम यह हो गया है कि अब तो शहर व गांव में भी घर के अंदर भी पिछले कुछ समय से जानलेवा दमघोंटू वायु प्रदूषण अब लोगों की अनमोल जान लीलने लग गया है, देश की जनता जल-थल-वायु के विभिन्न प्रकार के प्रदूषण की मार से अब बेहद त्रस्त हैं। वायु प्रदूषण की इस भयावह स्थिति पर डॉक्टरों के विचार हैं कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के चलते गंभीर प्रकृति की स्वास्थ्य समस्याओं का जबरदस्त जोखिम बना हुआ है, जिसके चलते बच्चे, नौजवान, बुजुर्गों में तरह-तरह की स्वास्थ्य समस्याएं नज़र आ रही हैं। लोगों में सिरदर्द, तनाव, चिंता, चिड़चिड़ापन, सांस संबंधित समस्याएं काफी बढ़ गई हैं। वायु प्रदूषण के चलते लोगों की आंखों में तेज जलन, आंखों से पानी बहना, सांस लेने की दिक्कत व सांस फूलने की दिक्कत आदि की समस्याएं आम होती जा रही हैं और ऐसी स्थिति में भी हमारा सिस्टम मूकदर्शक बनकर बैठा है। इस स्थिति पर डॉक्टर कहते हैं कि अगर वायु प्रदूषण की स्थिति जल्द नहीं सुधरी तो सांसों पर लगा यह आपातकाल आने वाले दिनों में लोगों के लिए बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता है, गंभीर प्रकृति के वायु प्रदूषण की वजह से लोगों में तरह-तरह की स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो सकती हैं, लोगों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है, लोगों में बेचैनी की समस्या बढ़ सकती है, लोगों को गंभीर तंत्रिका तंत्र की समस्याओं से जूझना पड़ सकता हैं। जिस तरह से लोगों के बीच सांस संबंधित रोग तेजी से बढ़ रहे हैं, फेफड़ों का कैंसर तेजी से बढ़ता जा रहा है, तरह-तरह के गंभीर रोग लोगों के बीच तेजी से पैर पसार रहे हैं, उस स्थिति के लिए वायु प्रदूषण भी काफी जिम्मेदार है और हम अब भी तमाशबीन बनकर के केवल तमाशा देख रहे हैं। वायु प्रदूषण के इस तरह के हाल पर शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा संकलित किये गये आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के लोग जिस खराब गुणवत्ता वाली वायु में सांस लेते हैं, उसके चलते इन लोगों का जीवन 11.9 वर्ष तक कम हो सकता है और अगर वायु प्रदूषण की यह स्थिति इस तरह ही बनी रही, तो वर्ष दर वर्ष लोगों के जीवन पर यह खतरा बढ़ता ही जा रहा है।
हालांकि इस वर्ष जब देश की राजधानी दिल्ली व एनसीआर का पूरा क्षेत्र अचानक से गैस चैंबर बना था, तो शुरुआत में अधिकांश लोगों को लगता था कि आम जनमानस के सांसों की इस बेहद गंभीर समस्या को देखकर के देश व राज्यों के सभी नेता, कर्ताधर्ता, सिस्टम व नीति-निर्माता तुरंत ही समस्या की गंभीरता को देखते हुए सक्रिय होकर के तत्काल प्रभाव से जनता के स्वास्थ्य को बचाने के लिए धरातल पर कुछ स्थाई व कुछ तात्कालिक प्रभावी कदम उठाकर के लोगों के सांसों की समस्या पर लगे बंधन को हटाएंगे। लेकिन बेहद अफसोस की बात यह है कि दिल्ली व एनसीआर के क्षेत्र में तो प्रदूषण के नियंत्रण के लिए तो काम-कम हुए हैं, हां नकारात्मक राजनीति भरपूर ढंग से हुई है। इस ज्वलंत मुद्दे पर भी ताकतवर राजनेताओं ने सिवाय जुबानी जंग व एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने और अपनी जिम्मेदारी को दूसरे राज्य पर डालने के अलावा अभी तक तो कोई ठोस प्रभावी स्थाई कदम धरातल पर उठाने का कार्य नहीं किया है। जबकि विचारणीय तथ्य यह है कि जानलेवा वायु प्रदूषण पर पिछले कुछ वर्षों से निरंतर सर्वोच्च न्यायालय की नजर बनी हुई है, लेकिन उसके बावजूद भी आंकड़ेबाजी में माहिर हमारे देश का सिस्टम सर्वोच्च न्यायालय की आंखों में भी सिवाय धूल झोंकने के अलावा धरातल पर कुछ ठोस नहीं कर रहा है। यह स्थिति आज उस हालात में भी बेख़ौफ़ चल रही है जब देश की राजधानी समेत देश के अन्य कुछ भागों में एक्यूआई आसमान छू कर नित-नए रिकॉर्ड बना रहा है।
लापरवाही का आलम यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व में दिये गये आदेश के द्वारा दिल्ली में पूर्व में स्मॉग टावर लगे थे, हाल ही में जब सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी सुनवाई के दौरान दिल्ली के वायु प्रदूषण के बारे में जानते हुए पूर्व में लगाये गये स्मॉग टावर के बारे में पूछा तो पता चला कि 23 करोड़ की लागत से बने हुए यह स्मॉग टावर अब शोपीस बनकर बंद खड़े हैं, जिसके बाद स्मॉग टावर को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने बेहद तल्ख टिप्पणी की थी, लेकिन उसके बाद से ही इस मसले पर भी दिल्ली सरकार व एलजी कार्यालय के बीच आरोप प्रत्यारोप चल रहे हैं। वहीं पिछले वर्ष तक तो दिल्ली के कर्ताधर्ता इस गंभीर वायु प्रदूषण के लिए पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के किसानों के द्वारा खेतों में जलाएं जाने वाली पराली को जिम्मेदार ठहरा कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर लेते थे, लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि अब पंजाब में भी अपनी पार्टी की सरकार होने के चलते इस वर्ष दिल्ली सरकार के कर्ताधर्ता हरियाणा व उत्तर प्रदेश सरकार पर दोषारोपण करते हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में प्रचार करने में व्यस्त हैं, ईडी व सीबीआई से खुद को बचाने में व्यस्त हैं। दीपावली के बाद तो हद ही हो गयी है दिल्ली सरकार के वरिष्ठ मंत्री गोपाल राय तो इस गंभीर प्रकृति के वायु प्रदूषण को भाजपा की साज़िश बताने लग गये हैं, वह दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए उत्तर प्रदेश व हरियाणा में चले पटाखों को जिम्मेदार ठहराकर, बड़ी ही चतुराई से अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। खैर जो भी है दिल्ली में वायु प्रदूषण नियंत्रण हो या ना हो, लेकिन यह तय है कि इस ज्वलंत मसले पर हर दल अपने स्वार्थों के हिसाब से पूरा राजनीतिक लाभ हासिल अवश्य करना चाहता है। किसी को भी आम जनमानस के स्वास्थ्य की फ़िक्र नहीं है, तब ही तो देश की जनता आज जल, थल व वायु के जहरीले प्रदूषण को झेलते हुए जीवन जीने के लिए मजबूर है और गंभीर प्रकृति के रोगों की चपेट में आकर के जीवन जीने के लिए संघर्षरत है।