- खरगोन जिले में भाजपा को मिली आंशिक सफलता
नरेंद्र तिवारी
मध्यप्रदेश में एक तरफा विजय की पताका फहराने वाली भाजपा बड़वानी जिले में क्यों हारी? क्यों खरगोन जिले में भाजपा को आधी सीटों पर ही सफलता मिली।यह प्रश्न खरगोन–बड़वानी जिले की राजनीति में गहराने लगा है। बड़वानी जिले की चार विधानसभा सीटों में मात्र एक पर विजय होकर भाजपा का इतराना कितना न्यायसंगत है। खरगोन जिले में आधी सफलता को गर्व करने लायक माना जाना चाहिए ? यह भाजपा के सांसद, जिलाध्यक्ष एवं पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए विचारणीय प्रश्न होना चाहिए। बड़वानी जिले की बात करें तो इस जिला मुख्यालय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा क्यों बेअसर रही ? क्यों सेंधवा विधानसभा की चाचरिया ग्राम पंचायत में आए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज का जादू नहीं चल पाया? क्यों लाडली बहना पर गर्व कर रही भाजपा की यह योजना बड़वानी में बेअसर रही? यह प्रश्न बड़वानी जिले की हर विधानसभा में गूंज रहा है। वह तो पानसेमल विधानसभा में कांग्रेस के बागी निर्दलीय उम्मीदवार ने भाजपा की लाज को बचा लिया वरना इस जिले में चारो विधानसभा कांग्रेस की झोली में जाने से कोई नहीं रोक पा रहा था। पानसेमल में भाजपा के श्याम बरडे ने विजय हासिल कर चार शून्य की पराजय को तीन–एक में बदल दिया। जिले की सबसे बड़ी हार कैबिनेट मंत्री प्रेमसिंह पटेल की है। जिन्होंने एक वर्ष पूर्व अपने पुत्र को जिला पंचायत के चुनाव में संगठन के दिशानिर्देश के विरुद्ध जाकर जिला जनपद अध्यक्ष की कुर्सी पर तो जीत दिलवा दी थी, किंतु जिला पंचायत चुनाव से बड़वानी जिले में फैली भाजपाई गुटबाजी बढ़ती चली गई। भाजपा का जिला संगठन इसे दूर करने की बजाय इसमें ही अपने बढ़ने की संभावनाओं को ढूंढता नजर आया। दरअसल जिला पंचायत में भाजपा को स्पष्ट बहुमत था। भाजपा संगठन ने जिला पंचायत पद हेतु पूर्व मंत्री अंतरसिंह आर्य की पुत्रवधू जिला पंचायत सदस्य कविता विकास आर्य को नामित किया था। किंतु मंत्री प्रेमसिंह पटेल के पुत्र बलवंत पटेल ने पार्टी के दिशानिर्देशों के विरुद्ध जाकर जिला पंचायत अध्यक्ष के पद हेतु अपना नामांकन दाखिल किया और कुछ अन्य सदस्यों से मिलकर विजय भी हासिल कर ली, पार्टी के निर्देशों के विरुद्ध जाकर पाई इस जीत का नतीजा सम्पूर्ण जिले में गुटबाजी पनपने के रूप में हुआ। जिले में भाजपा को चार में से एक सीट पर ही विजय होना उसी गुटबाजी का नतीजा है। बड़वानी विधानसभा में नए नवेले कांग्रेस उम्मीदवार राजन मंडलोई ने भाजपा के स्थापित नेता, सरकार के कैबिनेट मंत्री प्रेमसिंह पटेल की सत्ता को उखाड़ दिया। सेंधवा में पूर्व मंत्री, आदिवासी समाज के कद्दावर माने जाने वाले अंतरसिंह आर्य को नए चेहरे मोंटू सोलंकी ने मात देकर धराशाही कर दिया। भाजपा की राजनीतिक रणनीति राजपुर में भी सफल नहीं हो सकी जहां अंतरसिंह पटेल पूर्व गृहमंत्री कांग्रेस उम्मीदवार बाला बच्चन के हाथो पराजित हुए है। राजपुर भाजपा के जिला अध्यक्ष की घरेलू विधानसभा है। वह तो पानसेमल में नए नवेले भाजपा उम्मीदवार ने कांग्रेस की विधायक चंद्रभागा किराड़े को पराजित कर भाजपा की चार शून्य से होने वाली संभावित पराजय से बचा लिया। 2018 में चार शून्य से बचाने का श्रेय प्रेमसिंह पटेल बड़वानी को गया था। जिन्हे इस विजय का तोहफा कैबिनेट मंत्री के रूप में मिला था। कैबिनेट मंत्री प्रेमसिंह भी 2023 में अपनी पराजय को नहीं बचा पाए। बड़वानी जिला जहां पलसूद को छोड़कर लगभग सभी नगरपालिका, नगर पंचायत, भाजपा के कब्जे में है। जिला जनपद अध्यक्ष के पद पर प्रेमसिंह पटेल के पुत्र बलवंत पटेल काबिज है। संसदीय सीट से भाजपा के लोकसभा सदस्य गजेंद्र पटेल है। राज्यसभा के सांसद सुमरसिंह सोलंकी है। भाजपा का मजबूत सा दिखने वाला संगठन भी बड़वानी जिले को पूर्व की स्थिति से उभारने में नाकाम, सिद्ध हुआ है। बात महज बड़वानी की नहीं है। खरगोन संसदीय सीट के अंतर्गत खरगोन जिले की छह विधानसभा भी आती है। खरगोन जिले की बात करें तो यहां फिफ्टी–फिफ्टी नतीजा रहा। खरगोन जिले में जरूर भाजपा ने कुछ हासिल किया है। किंतु इतना नहीं जिस पर इतराया जा सके। खरगोन में तीन–तीन सीट की बराबरी भाजपा के लिए गर्व की बात नहीं मानी जा सकती है।कसरावत विधानसभा में सचिन यादव कांग्रेस यथावत रखने में सफल रहे। उन्होंने भाजपा के पूर्व विधायक आत्माराम पटेल को पराजित किया। भिकनगांव विधानसभा में भी संघर्ष पूर्व मुकाबले में झूमा सोलंकी कांग्रेस विजय रही। भगवानपुरा विधानसभा जहां 2018 में केदार डावर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजय हुए थै, इस बार कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार बनाया केदार बड़ी और धमाकेदार जीत हासिल करने में सफल हुए। महेश्वर में भाजपा के राजकुमार मेव ने जरूर सफलता अर्जित की उन्होंने अपने दम पर इंदौर टीम के साथ अपने बेहतर प्रबंधन से वर्तमान विधायक और कमलनाथ सरकार में मंत्री रही विजयलक्ष्मी साधो को पराजित किया, खरगोन में भाजपा के बालकृष्ण पाटीदार जरूर भाजपा संगठन की मेहनत का परिणाम माने जा सकते है। उन्होंने कांग्रेस के वर्तमान विधायक रवि जोशी को हराकर 2018 में मिली पराजय का बदला लिया। बड़वाह में 2018 में कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव लडे और विधायक बने सचिन बिरला ने खंडवा लोकसभा उपचुनाव में भाजपा का हाथ थामा। 2023 में भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया उन्होंने कांग्रेस के नरेंद्र पटेल को पराजित किया। यहां भाजपा संगठन ने बहुत कुछ खोकर सचिन के रूप में कांग्रेस से आयातित व्यक्ति को विधायक भाजपा विधायक बना पाने में सफलता प्राप्त की है। कुलमिलाकर निमाड़ की खरगोन–बड़वानी संसदीय क्षेत्र में भाजपा ने 4 सीट तो कांग्रेस ने 6 सीट पर विजय प्राप्त की है। खरगोन में भाजपा को आंशिक सफलता मिली है। बड़वानी में 2018 की स्थिति यथावत रही, भाजपा की विजय सीट जरूर बदली कांग्रेस ने पानसेमल खोकर जिला मुख्यालय की सीट प्राप्त की है। ऐसे समय जब सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में भाजपा क्लीन स्वीप कर रही हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू सर चढ़कर बोल रहा हो, शिवराज की लाडली बहना प्रदेश में जीत का इतिहास लिख रही हो। बड़वानी जिले में भाजपा का तीन के मुकाबले एक विधानसभा में विजय रहना। खरगोन में आंशिक सफलता हासिल करना। भाजपा के सांसद सदस्य, राज्यसभा सदस्य, जिला अध्यक्षों, सहित पार्टी पधारिकारियो के लिए सोचनीय प्रश्न है। खरगोन–बड़वानी संसदीय क्षेत्र भाजपा के लिए चिंता का सवाल होना चाहिए। उन्हे बड़वानी में कमजोर और खरगोन में मिली आंशिक आधी पराजय की जिम्मेदारी भी लेना चाहिए। भाजपा के मौजूदा सांसद, राज्यसभा सांसद, पधाधिकारियो पर नैतिकता की तलवार तो लटक ही रहीं है। नैतिकता का सवाल भले भाजपा का अंदरूनी मामला हो किंतु जिले के मतदाता जरूर सोच रहे है। बड़वानी में तीन एक की यथावत स्थिति और खरगोन में तीन–तीन का प्रदर्शन प्रदेश में क्लीन स्वीप कर रही भाजपा के लिए कितना उम्दा, बेहतर और गर्व करने लायक है। भाजपा को खरगोन–बड़वानी संसदीय क्षेत्र की इन सीटों को लोकसभा के लिहाज से भी देखना है। गजेंद्र पटेल इस संसदीय क्षेत्र से सांसद सदस्य है। विगत दो लोकसभा चुनाव में भाजपा ने विजय उम्मीदवार को बदलने का साहस दिखाया और दोनो ही लोकसभा चुनाव में विजय श्री हासिल की थी। भाजपा के एक पूर्व सांसद सदस्य मकनसिंह सोलंकी ने विधानसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम लिया था। जिसका परिणाम बड़वानी विधानसभा में भाजपा की हार के रूप में देखा जा सकता है। अब सवाल यह है की भाजपा बड़वानी जिले के अपने मंथन में क्या नया करने जा रही है। नैतिकता के आधार पर कौनसे पदाधिकारी परिवर्तित होंगें या लोकसभा चुनाव तक सब यथावत चलता रहेगा देखने वाली बात होगी। यह याद रखना होगा की भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व लोकसभा 2024 के चुनाव में किसी भी स्थिति में विजय चाहेगा। खरगोन–बड़वानी लोकसभा क्षेत्र की 10 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस 6, भाजपा 4 पर विजय रही। पलड़ा कांग्रेस के पक्ष में झुका हुआ है। भाजपा यह मानकर खुश जरूर हो सकती है की आठ–एक के आकड़े को छ–चार पर पहुंचा दिया। खरगोन जिले में आंशिक सफलता पाई भाजपा बड़वानी जिले में अपने प्रदर्शन में कोई सुधार नहीं कर सकी इसका जिम्मेदार कौन है।