मानवीय भावनाओं पर केंद्रित है पुस्तक “ऊर्जस्वी”

मनीषा मंजरी

किसी भी रचनाओं का आविर्भाव भी इसी समाज से होता है जिसे रचनाकार अपने भावों के साथ मिलाकर उसे एक आकार देता है। यही रचना समाज के नवनिर्माण में पथप्रदर्शक की भूमिका निभाने लगती है। विगत बीस वर्षों से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय रहने वाले लेखक और विचारक नृपेंद्र अभिषेक नृप की हिन्दी में पहली प्रकाशित पुस्तक “ऊर्जस्वी” जब हाथों में आती है, तो किसी आम पुस्तक की भाँती हीं प्रतीत होती है। हालांकि इस किताब के शीर्षक में हीं इतनी ऊर्जा का समावेश है कि ये स्वयं को पाठकों की दिशा में आकृष्ट करती है। परन्तु जब बत्तीस आलेखों से सुसज्जित इस पुस्तक के पृष्ठ हम एक-एक कर पलटना शुरू करते हैं तो जाने कब ये पुस्तक हमें अपने यथार्थ और जादुई शब्दों में बाँध देती है, ये प्रतीति पुस्तक के आखरी पृष्ठ तक भी नहीं हो पाती। निराशाओं और खोखलेपन से भरे इस संसार में नृपेंद्र की “ऊर्जस्वी” सकारात्मकता और आशावाद की अलख जलाती हुई मिलती है।

ऊर्जस्वी जो समयांतराल पर आयी नृपेंद्र के आलेखों का एक विशिष्ट संकलन है, इसमें व्यक्तिवाद को मानववाद में परिवर्तित करने के बीज बड़ी चतुराई से निहित मिलते हैं। आधुनिक जीवन में जिस तरह जीवन-मूल्यों और मानव-मूल्यों को धीरे-धीरे विस्मृत किया जा रहा है, उन बहुमूल्य स्मृतियों को इन आलेखों द्वारा पुनर्जीवन मिला है। पुस्तक का पहला आलेख “असफलता से सीखना सफलता हीं तो है।” जीवन में संघर्षरत लोगों के लिए संजीवनी से कम नहीं। अपनी असफलताओं से पराजित होकर कर्मपथ से विरक्त होना कोई समाधान नहीं, इस तथ्य को बड़ी हीं खूबसूरती से, और दृढ उदाहरणों से बाँध कर प्रस्तुत किया गया है।

ऊर्जस्वी के आलेख जहां एक ओर मनुष्य को सफलता के मन्त्रों से वशीभूत करते है, वहीं दूसरी ओर मनुष्य की नैतिकता का पथ प्रदर्शित करते मिलते हैं। मानवता के मुख्य गुणों को जागृत करने के साथ-साथ मानवीय भावनाओं पर भी नृपेंद्र के गहन विचार आपको निःशब्द करते दिखेंगे।समकालीन समाज में विलुप्ति के कगार पर खड़ी, सत्य की महत्ता, ईमानदार व्यक्तित्व, अनुशासन, क्षमाशीलता, परोपकारिता, निःस्वार्थवाद इत्यादि विषयों की बड़े हीं प्रभावी ढंग से व्याख्या करती है ‘ऊर्जस्वी’। इसके साथ ही परिवार, रिश्ते, प्रेम इत्यादि निजी जीवन के आधार की भी भावनात्मक और हृदय-स्पर्शी विवेचना इस पुस्तक में देखने को मिलती है।

यूँ तो नृपेंद्र की ‘ऊर्जस्वी’ समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए लाभकारी एवं उपयोगी है, अपितु युवा वर्ग के लिए ये पुस्तक अतिविशिष्ट है। ये पुस्तक युवाओं के मन मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ने का साहस तो रखती हीं है, साथ हीं इसके आलेख प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी बहुत उपयोगी हैं। दर्शन और नीति-शास्त्र से जुड़े विद्यार्थियों के लिए ऊर्जस्वी एक अति मोहक पुस्तक है।

यदि आपने इस पुस्तक का एक आलेख भी पढ़ा तो आप लेखक के लेखनी की प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाएंगे। बड़े ही सरल और सुगम भाषा में नृपेंद्र ने अपनी बातें और विचार हमारे समक्ष प्रस्तुत की हैं। पुस्तक लेखन के क्षेत्र में उनका तहे दिल से स्वागत करते हुए मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ, और आशा करती हूँ कि वो ऐसे हीं अपनी लेखनी से हमें वशीभूत करते रहेंगे।

पुस्तक: ऊर्जस्वी
लेखक: नृपेन्द्र अभिषेक नृप
प्रकाशन: स्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली
मूल्य: 199 रुपये
पृष्ठ- 115 पेज