संदीप ठाकुर
फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ रिलीज हाेने के बाद देशभर में अचानक न सिर्फ
कश्मीरी पंडितों पर चर्चा का बाजार गर्म हो गया बल्कि फिल्म को लेकर
सियासत भी उबलने लगी थी। विपक्ष के कई नेताओं ने इसे भाजपा का
प्रोपेगेंडा करार देते हुए पूरे मामले को राजनीतिक फायदे के लिए तूल देने
का आरोप लगाया। विपक्षी नेताओं का कहना है कि सत्ता में रहते हुए खुद
कश्मीरी पंडितों के लिए भाजपा ने कुछ भी नहीं किया। उधर भाजपा का कहना
है कि कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। सवाल
यह है कि क्या विपक्ष के ये आरोप सही हैं ? क्या भाजपा कश्मीरी पंडितों
का मुद्दा उठाकर सिर्फ हिंदुओं का वोट पाना चाहती है ? क्या वाकई मौजूदा
सरकार ने कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ नहीं किया है?
गृह मंत्रालय की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान
प्रायोजित आतंकवाद की वजह से 64,827 कश्मीरी पंडित परिवारों को 1990 के
दशक की शुरुआत में कश्मीर घाटी छोड़ जम्मू, दिल्ली और देश के कुछ अन्य
हिस्सों में बसने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसमें कहा गया है कि
कश्मीरी पंडितों के अलावा, आतंकवाद की वजह से कुछ सिख और मुस्लिम
परिवारों को भी कश्मीर घाटी से जम्मू, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में
पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। रिपोर्ट के अनुसार जम्मू के
पहाड़ी इलाकों से लगभग 1,054 परिवार जम्मू के मैदानी इलाकों में चले
गए।इसमें कहा गया है कि जम्मू कश्मीर के राहत और प्रवासी आयुक्त के पास
उपलब्ध पंजीकरण के रिकॉर्ड के अनुसार, वर्तमान में 43,618 पंजीकृत
कश्मीरी प्रवासी परिवार जम्मू में बसे हुए हैं, 19,338 परिवार दिल्ली और
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में और 1,995 परिवार देश के कुछ अन्य
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बसे हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक
1990 के दशक और 2020 के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के कारण 14,091
नागरिकों और सुरक्षा बल के 5,356 जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर में 2014 से 2020 तक पाकिस्तान
द्वारा प्रायोजित कुल 2,546 आतंकी घटनाएं हुईं, जिनमें 481 सुरक्षाकर्मी,
215 नागरिक और 1,216 आतंकवादी मारे गए। 2014 -2020 के बीच जम्मू कश्मीर
में सीमा पार से घुसपैठ के 1,776 प्रयास किये गये थे।
मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों के लिए क्या किया इसका जवाब जानने के लिए
गृह मंत्रालय की उस रिपोर्ट पर नजर डालनी होगी जो पिछले साल जम्मू-कश्मीर
से जुड़े एक बिल पर चर्चा करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में पेश
किया था। उन्होंने कहा था कि सरकार 44 हजार कश्मीरी पंडित परिवारों को हर
महीने 13 हजार रुपये देती है। ये वो कश्मीरी पंडित परिवार हैं जिनके पास
रिलीफ कार्ड हैं। रजिस्टर्ड कश्मीरी प्रवासियों को प्रति परिवार 13,000
रुपये की सीमा के साथ ही 3,250 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह सूखा राशन
और नकद राहत भी मिलती है। दिल्ली में बसे कश्मीरी प्रवासियों के मामले
में भारत सरकार और दिल्ली सरकार पंडित समुदाय को दिए जाने वाले पैसे को
बांटती है। पिछली सरकार भी कश्मीरी पंडितों काे आर्थिक मदद करती थी। 2020
के संसदीय पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 64,827 पंजीकृत
प्रवासी परिवार हैं। इनमें 60,489 हिंदू परिवार, 2,609 मुस्लिम परिवार और
1,729 सिख परिवार शामिल हैं। 64,827 परिवारों में से 43,494 परिवार जम्मू
में पंजीकृत हैं। 19,338 दिल्ली और 1,995 परिवार अन्य राज्यों और केंद्र
शासित प्रदेशों में बसे हुए हैं। 43,494 प्रवासी परिवारों में से 5,248
परिवार प्रवासी शिविरों में रह रहे हैं।