पिंकी सिंघल
*ज्ञान,विज्ञान,भक्ति से पुस्तकें,परिचय सबका करवाती हैं*
*करती मनोरंजन पढ़ने वालों का,चुनौतियों से लड़ना सिखाती हैं*
बचपन में अक्सर हम पढ़ा करते थे कि पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती हैं। छोटी उम्र में इस बात का वास्तविक अर्थ शायद हमारी समझ के बाहर हुआ करता था ,परंतु जैसे-जैसे परिपक्वता आती गई इस वाक्य का सच्चा अर्थ भी हमें समझ आने लगा ।यह अक्षरश: सत्य है कि जीवन में यदि हमारा कोई सच्चा मित्र है तो वह है पुस्तक। खाली समय में बोरियत महसूस होने लगे तो आप एक पुस्तक लेकर बैठ जाइए और फिर देखिए कैसे आपका दिन बिना किसी अन्य विचार को मस्तिष्क में लाए कट जाएगा। पुस्तकों की संगत में आपको अन्य किसी व्यक्ति के पास होने की कमी कभी नहीं खलेगी ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है ।पुस्तक तो अथाह ज्ञान का भंडार हैं। यदि जीवन भर भी हम पुस्तकों को पढ़ते रहे तो भी यह ज्ञान कभी खत्म नहीं होने वाला। हर पुस्तक अपने आप में ज्ञान और मनोरंजन का अनोखा संगम होती है।
पुस्तकों की महत्ता को महसूस करने के पश्चात ही 23 अप्रैल को विश्व भर में विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है। यह बहुत ही सुखद पहल है,परंतु मेरे अनुसार ऐसे दिवस मनाने के लिए केवल एक दिन काफी नहीं है ।मेरे लिए तो वर्ष का प्रत्येक दिन ही पुस्तक दिवस है क्योंकि शायद ही ऐसा कोई दिवस होता होगा जिस दिन आप कोई पुस्तक या पुस्तक का कोई अंश ना पढ़ते होंगे। अपने ज्ञान में वृद्धि के लिए हम पुस्तकों को पढ़ते हैं और पुस्तकों के माध्यम से ही हमें अपने गौरवशाली इतिहास और महापुरुषों के जीवन के विषय में बेहतरीन जानकारी प्राप्त होती है जिन से प्रेरित होकर हम अपने जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए उत्साहित होते हैं।
बेशक आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति के पास समय का अभाव होता है और सभी चाहते हैं कि उन्हें कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त हो जिसके लिए वे कंप्यूटर ,लैपटॉप,मोबाइल आदि का प्रयोग कर जानकारियां हासिल करते हैं परंतु इससे पुस्तकों का रुतबा और महत्व दोनों ही किसी प्रकार से कम नहीं हो जाता। पुस्तकों का अपना एक विशेष महत्व होता है ।पुस्तकों का स्थान कभी कोई भी विकल्प ले ही नहीं सकता । इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी लगभग सभी शिक्षण संस्थानों में पठन-पाठन के लिए पुस्तकों को ही प्रयोग में लाया जाता है ।चाहे तकनीकी कितनी भी विकसित क्यों ना हो जाए परंतु पुस्तकों का स्थान कभी नहीं ले सकती, यह निर्विवाद रूप से सत्य है और यह जानकर मन अंदर ही अंदर अति हर्षित होता है कि आधुनिक युग में भी हमारे देश के कर्णधार ,हमारे बच्चे रुचिपूर्वक पुस्तकें पढ़ते हैं और पूरी दिलचस्पी के साथ ज्ञान का अर्जन करते हैं।
विश्व पुस्तक दिवस मनाये जाने के पीछे एक मंशा यह भी रही है है कि युवा वर्ग की पुस्तकों के प्रति अभिरुचि को विकसित किया जाए जिससे वह अपने स्वर्णिम इतिहास से चिर परिचित हो सकें और अपने राष्ट्र को आगे ही आगे बढ़ने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।
*स्वर्णिम इतिहास बताती हैं,नव पीढ़ी का ज्ञान बढ़ाती हैं*
*पुस्तकें होती अनमोल बहुत,ये जड़ों से जुड़ना सिखाती हैं*
पुस्तकें तो ज्ञान की अनमोल पूंजी हैं, हमारी अनुपम धरोहर हैं, विरासत है और अपनी विरासत को किसी अन्य विकल्प के रूप में देखने का तात्पर्य होगा कि हम अपनी जड़ों से विमुख होते जा रहे हैं। स्मरण रहे,अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को धरोहर के रूप में अगली पीढ़ियों को सौंपने का दायित्व और नैतिक जिम्मेदारी हमारी पीढ़ी की है जिसे हमें पूर्ण ईमानदारी के साथ निभाना होगा, पुस्तकों के प्रति सच्चा प्रेम दिखाना होगा और आने वाली नई पीढ़ी को भी सस्नेह यह धरोहर भेंट करनी होगी।