सुरेश सौरभ
चटाक ऽऽऽऽ….
वह गाल पकड़ कर सहम गया।
“उत्ती देर से देख रही हूँ ,गालियाँ बक रहा है। बकवास कर रहा है।”
गाल सहलाते हुए वह बोला-” मम्मी मैं तो खेल रहा था।”
“ये भी कोई खेल है कि खेल-खेल में माँ-बहन की गाली बके।”
वह क्षुब्ध, खामोश था।
“कहाँ से सीखता है ये सब, बता-बता।…”
“एक नेता जी कह रहे थे, एंकर उसे दोहरा रहे थे।
“हाँ अब बस यही सब देख गाली-गलौच वाले कार्यक्रम,पहले नेता बके फिर एंकर बके, फिर तुम सब बको, इसी बकवासबाजी के लिए एलसीडी डिश का रिचार्ज कराती हूँ। आने दे पापा को शाम को…”
“पापा के साथ ही तो देख रहा था उस दिन।” गुस्से से लाल-लाल आंखों से वह बोला।
मम्मी, निःशब्द, क्षुब्ध, और हतप्रभ।