ऋतुपर्ण दवे
मध्यप्रदेश में मौजूदाभाजपा सरकार के नेतृत्व परिवर्तन कोशुरुआत में अलग नजरिए से देखा जा रहा था।जहां विपक्ष बगावत का धुंआ सूंघ रहा था और वहीं सत्तादल में वरिष्ठों को लेकर जबरदस्त कानाफूसी हो रही थी। लेकिन, अनुशासन को लेकर किसी भी प्रकार की चूं-चपड़ को बर्दास्त न कर,विशिष्ट कार्यशैली से पहचानबनाचुके भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने उस मिथक को बरकरार रखा कि मोदी-शाह की थैली में क्या है, उनके सिवाय कोई नहीं जानता। वही सच निकला। हां, शिवराज सिंह चौहान का बदला व्यव्हार और दिल्ली न जाकर मध्यप्रदेश में ही रहने की दुहाई और सक्रियता जरूर अटपटी लगती रही।
यूं तो डॉ. मोहन यादव का नाम मध्यप्रदेश कीराजनीति में नया और बड़ा भी नहीं था।एकसवाल हर सबके मन में कौंधता रहा कि तमाम दिग्गजों के रहते वही क्यों? हालाकि जवाब पहले छत्तीसगढ़,बाद में राजस्थान से काफी कुछ मिला भी।भाजपा शीर्ष नेतृत्व की रणनीति कहें या पार्टी के अन्दरखाने में खुद को क्षत्रप मानने वालों को जवाब या नसीहत जोभी, एक तीर से कई निशाने साधे गए।मध्यप्रदेश में 2003 से लगातार भाजपा काबिज है, सिवाय बीच के 15 महीनों को छोड़कर। उसमें भी 17 साल मुख्यमंत्री रहे शिवराज रहे।ऐसे में नए नेतृत्व को कमान के कई मायने हैं। ऐसी ही चौंकाने वाली परिस्थितियों में 29 नवंबर 2005 को शिवराज भी मुख्यमंत्री बने थे। बाबूलाल गौर के खिलाफ बगावत के चलते नए चेहरे के तौर पर प्रमोद महाजन ने उन्हें प्रस्तावित किया जिस पर तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की सहमति थी। 2023 विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम काफी बाद में आने से कयास लगने लगे कि इस बार शिवराज के लिए हालात मुश्किल भरे होंगे।कई बार टिकट पर संदेह हुआ।इधर मोहन यादव को नेतृत्व सौंपने की तैयारी बहुत पहले शुरू हो चुकी थी। ये बात अलग है कि तब प्रदेशराजनीति को बूझने वाले समझ नहीं पाए या समझ कर भी खामोश रहे।
कई सिलसिलेवार घटनाक्रमों से कहानी साफ दिखती है। 30 सितंबर 2022 को भोपाल से दूर रातापानी गेस्ट हाउस में भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष एक बड़ा संदेश लेकर आए।वहां अचानक डॉ. मोहन यादव, विश्वास सारंग और इंदर सिंह परमार बुलाए गए। लंबी चर्चा हुई। यहीं तय हुआ कि महाकाल लोक के उद्घाटन हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर 2022 को जब उज्जैन आएंगे, सारीव्यवस्थाएं डॉ. मोहन यादव संभालेंगे।दूसरा वाकया 30 अक्टूबर 2023 का है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह चुनाव प्रचार खातिर उज्जैन आए। किसी पदाधिकारी के घर भोजन करनातय था, कहां सिवाय डॉ. यादव को किसी को नहीं पता था। दो घण्टे पहले पता चला उन्हीं के कट्टर समर्थक पमनानी जी के यहां भोजन करेंगे जिसकी गुप्त जानकारी डॉ. यादव ने ही गृह मंत्रालय को दी थी। प्रोटोकाल के तहत पूरा बन्दोबस्त हुआ। डिनर टेबल पर तीन लोगअमित शाह, वीडी शर्मा और डॉ. मोहन यादवको ही बैठने की इजाजत थी। भोजन पर जाते वक्त अमित शाह कीकार में उनके साथ अकेले डॉ. यादव थे।
भोजन के बाद अमित शाह और डॉ. यादव की आधे घण्टे बात हुई। संकेत साफ होने लगे थे। 19 नवंबर को डा. यादव को तेलंगाना प्रचार पर भेजा गया। प्रचार समाप्त होते वहीं सेदिल्ली बुला लिए गए।नतीजों के बाद 6 दिसंबर को भोपाल से उज्जैन जाते वक्त बीच रास्ते दिल्ली बुलावा आया।तुरंत भोपाल लौट। फ्लाइट पकड़ी, दिल्ली पहुंचे।वहां जेपी नड्डा से 15 मिनट बात हुई।7 दिसंबर को बात फैली तो राजनीतिक पण्डित तक गच्चा खा गए।नई चर्चाओं ने जोर पकड़ा किजातिगत समीकरण साधने उन्हें प्रदेश भाजपा की कमान दी जाएगी?11 दिसंबर को नेता चुनने भाजपा विधायक दल की औपचारिक बैठक शुरू हुई। डॉ. यादव पीछे की पंक्ति में चुपचाप बैठे थे। पर्यवेक्षक हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने शिवराज सिंह के जरिए डॉ. मोहन यादव का नाम प्रस्तावित कराया, जिसका समर्थन नरेन्द्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय व अन्य ने किया। दो उप-मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र शुक्ला सहित और विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर की भी घोषणा हुई। देश-प्रदेश में लोग चौंक गए।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव वर्षों पहले स्वयंसेवक के रूप में आरएसएस से जुड़े थे। ओबीसी वर्ग से आते हैं जो संघ की प्रयोगशाला कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में पहली पसंद बने। इस तरह एक तीर से कई निशाने साधे गए। यहां52 प्रतिशत आबादी ओबीसी की है। जिसमेंयादव समाज की अच्छी आबादी है।आम-चुनाव में उप्र से जुड़े होने कारण वहां सहित बिहार और दूसरी जगह उनके जरिए जातिगत समीकरण साधने की जुगत होगी। उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर, मध्यप्रदेश की मौजूदा विधानसभा में भाजपा के कई धुरंधरों के पहुंचने से बनी ऊहापोह की स्थिति को बड़ी चतुराई से साधा गया। अभी पूरा महीना नहीं बीता कि डॉ. यादव की कार्यप्रणाली और फैसलों का मध्यप्रदेश मुरीद हो रहा है जो 2024 के आम-चुनाव में भी जबरदस्त फायदेमंद होगा।
शीर्ष नेतृत्व सेडॉ. यादव को शुरुआत से ही फ्री हैण्ड मिला। 2019 का वो दौर याद आता है जब शिवराज को आभार यात्राओं की इजाजत नहीं मिली, वहीं मोहन यादव ऐसी यात्राओं में सक्रिय हैं। मंत्रिमण्डल के गठन और विभाग वितरण में देरी पर चर्चाएं कुछ भी हों। लेकिन सच यही है कि 31 मंत्रियोंमें सात को ही महत्वपूर्ण विभागदेना और 10 बड़े मंत्रालय अपने पास रखना, उनकी ताकत का अहसास कराता है। जिस बेफिक्री सेडॉ. यादवपहले ही दिन से सक्रिय होकर सख्त और बेझिझक जनहितैषी फैसले ले रहे हैं उससे मध्यप्रदेश में जनता की सरकार होने का आम और खास सभी को भान हो रहा है।13 दिसंबर को शपथ के बाद पहले आदेश में सभी के धार्मिक स्थलों से तेज आवाज में बजने वाले ध्वनि विस्तारकों सहित खुले में मांस की बिक्री पर प्रभावी रोक लगाई जिससेसवाल भी उठेकि तमाम कानूनों के बावजूद पहले ये क्यों नहीं हो पाया?इधर 27 दिसंबर को गुना जिले में बस-ट्रक भिड़ंत हादसे में 13 लोगों के जिंदा जलने पर सख्त कार्रवाई कर तुरंत परिवहन आयुक्त, कलेक्टर, एसपी को हटा दिया। आरटीओ और नगरपालिका सीएमओ को सस्पेंड कर बता दिया कि कोई लापरवाह नहीं बचेंगे। इसके बाद तो प्रदेश में संभाग से लेकर जिलों की सड़कों पर खुद एडीजीपी से लेकर एसपी तक वाहनों की चेकिंग करते दिखे। इसी बीच ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल के दौरान शाजापुर कलेक्टर की एक ड्राइवर से अशिष्ट भाषा की बातचीत वायरल होते ही बिना देरी किए न केवल मंत्रालय में एक कोने में बिठा दिया बल्कि नाराजगी जताकर संदेश देदिया कि जन प्रतिनिधि और अधिकारी जनता की सेवा के लिए हैं न कि रौब झड़ने को। नई प्रशासनिक सजावट के साथ, अधिकारियोंकोजनता से बदतमीजी नहीं करने की सख्त चेतावनी बताती है वोपहले ऐक्शन फिर बयान में विश्वास करते हैं। उनकी कार्यप्रणाली की कई दिग्गज कांग्रेसियों ने भी तारीफ की है।
बुरहानपुर के शाहपुर में 90 वर्ष पुराने अतिक्रमण को हटाना बताता है कि प्रदेश में कई पुरानी फाइलें बिना भेदभाव, फिर खुलेंगी। अब अतिक्रमण से लेकर तमाम भ्रष्टाचारियों के अलावाशिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, राजस्व और दूसरेविभागों में बिना चढ़ोत्री काम नहीं करने वालेमठाधीश बने बाबू से लेकर अफसर, सभी सकते में हैं। फर्जी डिग्रियों और झूठे प्रमाण-पत्रों से शान सेनौकरी कर रहे फर्जीवाड़ियों की हवाइयां उड़ी हुई हैं।शिक्षा की बेहतरी उनकी प्राथमिकता है। तमाम शिक्षक विहीन स्कूल तो बिना रिक्तता के एक ही विषय के, एक ही स्कूल में कई-कई शिक्षकों का जुगाड़ तथा डॉक्टरों की लापरवाही का व अव्यवस्थाओं का दंश भुगत रहे अस्पतालों पर भी कार्रवाई संभव है। यह नहीं भूलना होगा कि पूरे प्रदेश में आरएसस संगठन बिना सामने आए अपना काम बखूबी करता है। कहने की जरूरत नहीं कि मुख्यमंत्री तकसारी सही जानकारियां पहुंचाने कीइतर व्यवस्था भी है।
यकीनन डॉ. यादव मध्य प्रदेश के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री होंगे जोतभी साफ हो गया थाजबशपथ के फौरन बाद मंच पर ही,उनका हाथ पकड़कर देश के ताकतवर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें कुर्सी का रास्ता बताया। डॉ. यादव प्रदेश की जनता को मिल रही पुरानी लाभकारी योजनाओं को बिना बदले नई इबारत लिखकर,अब तक की सबसे बड़ी लकीर खींचने की तैयारी में है।संकेत हैं कि अबअफसरशाही पर लगाम के साथ, बेतुके नए-पुराने फरमानों की घिसी-पिटी पंक्तियां मिटाकर नई और साफ-सुथरी स्क्रिप्ट होगी, जिसकामतलबजनता के लिए, जनता की खातिर, जनता की सरकार होगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं।)