गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थान में भजनलाल शर्मा सरकार बनने के बाद भाजपा अपनी पहली सियासी लड़ाई हार गई है। पंजाब से सटे श्रीगंगानगर जिले की श्रीकरणपुर विधानसभा सीट पर भाजपा के सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी निवर्तमान कांग्रेस विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर के पुत्र रूपिंदर सिंह कुन्नर से 11हजार 283 वोटों से चुनाव हार गए हैं। रूपिंदर सिंह पहली बार विधायक बने हैं। टीटी दस दिन पहले ही भजन लाल शर्मा मंत्रिपरिषद में मंत्री बने थे। प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी पार्टी उम्मीदवार को विधायक बनने से पहले ही मंत्री बना दिया गया हो। टीटी ने अपनी हार के बाद स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और यह भी एक नया इतिहास बना है कि केवल मंत्री पद की शपथ लेकर किसी मंत्री को चुनाव हारने के इस्तीफा देना पड़ा है। हालांकि टीटी ने अभी तक मंत्री पद का कार्य भार नहीं संभाला था और वे छह माह तक इस पद पर रह सकते थे।
भाजपा ने इस प्रतिष्ठा की इस सीट को जीतने के लिए मतदान से पहले मास्टर स्ट्रोक लगाते हुए अपने प्रत्याशी सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी को मंत्री पद से नवाजा था और यह पूरे देश में चर्चा का विषय बना था। हालाकि टीटी पूर्व में श्रीकरणपुर से विधायक रह चुके है और पूर्ववर्ती बीजेपी की वसुंधरा राजे की सरकार में राज्यमंत्री भी रहे थे। टीटी को इस बार विधायक निर्वाचित होने से पहले ही मंत्री बना कर कृषि, सिंचाई और नहरी कमांड एरिया विकास एवं अल्प संख्यक मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन मतदाताओं पर इसका असर नहीं हुआ और उन पर अपने दिवंगत विधायक कुन्नर के प्रति उपजी सहानुभूति की लहर ही अधिक हावी रही।
विधानसभा चुनाव में 115 सीटें जीत कर पुनः सत्ता में लौटी भाजपा को एक महीने बाद ही इस हार से बहुत बड़ा झटका लगा है जोकि आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक बड़ा अलार्म माना जा रहा है।
विधानसभा की इस सीट से भारतीय जनता पार्टी की हार से उत्तरी राजस्थान के नहरी इलाकों में कमजोर सियासी पकड़ एक बार फिर से उजागर हो गई है। पंजाब से सटे श्रीगंगानगर जिले की श्रीकरणपुर विधानसभा सीट पर पांच जनवरी को हुए विधान सभा चुनाव में सोमवार आठ जनवरी को कांग्रेस को मिली इस धमाकेदार जीत ने कांग्रेस में नई जान फूंक दी है।
दरअसल श्रीकरणपुर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहले रूपिंदर सिंह कुन्नर के पिता निवर्तमान विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर को प्रत्याशी बनाया था,लेकिन मतदान तिथि से पूर्व ही दुर्भाग्य से बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। इसके चलते चुनाव आयोग ने वहां पिछले नवंबर में चुनाव टाल दिए थे और उस समय राजस्थान विधानसभा की 200 मेंसे 199 सीटों पर ही चुनाव हो पाया था। इससे पहले यह सीट कांग्रेस के ही कब्जे में थी और गुरमीत सिंह कुन्नर यहां से विधायक थे। गुरमीत सिंह के असामयिक निधन के बाद कांग्रेस ने सहानुभूति का कार्ड खेलते हुए गुरमीत सिंह कुन्नर के बेटे रूपिंदर सिंह कुन्नर को यहां अपना प्रत्याशी बनाया और कांग्रेस का यह सहानुभूति का कार्ड सफल हो गया और वह अपनी सीट को कायम रखने में कामयाब हो गई। इसके साथ ही विधानसभा में कांग्रेस के अब 70 विधायक हो जायेंगे और भरतपुर से जीते एक आरएलडी समर्थक विधायक डा सुभाष गर्ग सहित अब यह आंकड़ा 71 विधायकों का हो गया हैं।
उल्लेखनीय है कि बीजेपी ने हाल ही 30 दिसंबर को भजनलाल शर्मा के मंत्रिमंडल के विस्तार में आनन-फानन में श्रीकरणपुर प्रत्याशी सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी को स्वतन्त्र प्रभार का राज्य मंत्री बनाकर एक बड़ा दांव खेला था लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। टीटी को चुनाव जीतने से पहले ही मंत्री बनाने पर कांग्रेस ने आक्रामक होते हुए कड़ा ऐतराज जताया था तथा इसे चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने वाला कदम बताते हुए चुनाव आयोग को भी अपनी शिकायत दर्ज कराई थी।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने श्रीकरणपुर में कांग्रेस प्रत्याशी रुपिन्दर सिंह कुन्नर को जीत की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह जीत दिवंगत गुरमीत सिंह कुन्नर के जनसेवा कार्यों को समर्पित है।उन्होंने कहा कि श्रीकरणपुर की जनता ने भारतीय जनता पार्टी के अभिमान को हराया है। चुनाव के बीच प्रत्याशी को मंत्री बनाकर आचार संहिता और नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाली भाजपा को जनता ने सबक सिखाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने श्रीकरणपुर की स्वाभिमानी जनता-जनार्दन को कोटिश: प्रणाम किया है और कहा है कि यह जनादेश भाजपाई तानाशाही एवं अलोकतांत्रिक नीति पर करारा तमाचा है। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा है कि श्रीकरणपुर की स्वाभिमानी जनता ने कांग्रेस की रीति-नीति और विचारधारा पर विश्वास जता कर प्रगति, खुशहाली और अपने सुरक्षित भविष्य को चुना है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि टीटी की हार के पीछे पंजाब में भाजपा के विरुद्ध हवा का होना भी एक बडा कारण माना जा सकता है लेकिन यहां खड़े हुए आप के उम्मीदवार को कोई खास समर्थन नहीं मिला तथा वह तीसरे स्थान पर रहा। वैसे राजस्थान में आम जनता के मुख्यमंत्री की छवि बना रहे भजन लाल शर्मा को अपना पद भार संभावने के बाद इतना समय ही नहीं मिल पाया कि पार्टी सुनियोजित ढंग से चुनाव लड सकें। फिर प्रदेश में भाजपा को विधानसभा चुनाव में मिली सफलता से पार्टी ने इस अति आत्म विश्वास में आकर चुनाव लडा तथा यह मान लिया कि प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने के बाद यह सीट तो आसानी से जीत ही जायेंगे। जबकि कांग्रेस भाजपा के मुकाबले इस चुनाव को संगठित ढंग से लड़ी। भाजपा के केंद्रीय मंत्री और प्रदेश नेता चुनाव प्रचार के लिए अवश्य जुटे लेकिन बताते है कि कई बड़े नेताओं की अंदरूनी नाराजगी भी रही जिस वजह से पार्टी पूरी तरह संगठित होकर चुनाव नही लड़ पाई।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अब यह धारणा बन रही है कि भाजपा कोई चुनाव क्षेत्रीय श्रत्रपो के भरोसे नहीं जीत सकती l इसलिए हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक की वर्तमान में भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बड़ा स्टार प्रचारक और उनके चाणक्य केंद्रीय गृह मंत्री से बड़ा कोई रणनीतिकार नही है लेकिन हर छोटे छोटे चुनाव के लिए उन्हें नही बुलाया जा सकता। पीएम मोदी और शाह ने राजस्थान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जिस तरह से जन सभाओं और चुनाव से ठीक पहले रोड शो कर भाजपा के पक्ष में जो वातावरण बनाया था। इसी वजह से तीनों प्रदेशों में भाजपा को विजयश्री मिली,अन्यथा छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा की हार और राजस्थान में बराबर की टक्कर को सुनिश्चित माना जा रहा था। मोदी शाह की जोड़ी में माहौल को बदलने का करिश्मा करने की ताकत है।
भाजपा के लिए श्री करणपुर की हार का आत्म विश्लेषण करना जरूरी हो गया है क्योंकि आगामी मई माह में लोकसभा आम चुनाव होने है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही अपनी तीन दिवसीय जयपुर यात्रा में प्रदेश पार्टी कार्यालय पहुंच कर आगामी लोकसभा चुनाव में राजस्थान की पच्चीस की पच्चीस सीटों को जीतने का मंत्र फूंका था और कहा था कि राजस्थान के लिए हैट्रिक लगाने का सुनहरा मौका है क्योंकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में राजस्थान ऐसा कर चुका है।
देखना है भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए इस बार किस प्रकार की रणनीति बना कर चुनाव लड़ती है?