सैयद मोजिज इमाम
नई दिल्ली : आज जमाअत इस्लामी हिन्द के दिल्ली स्थित मुख्यालय में मासिक प्रेस कांफ्रेंस में ज्ञानवापी मस्जिद पर जमाअत का पक्ष रखते हुए उपाध्यक्ष मलिक मोतासिम ने वाराणसी जिला प्रशासन और वादी (हिंदू पक्ष से) की मिलीभगत की कड़ी निंदा की है, जिसने लोहे की दीवारों को काटकर और फिर ज्ञानवापी मस्जिद की निचली मंजिल पर मूर्तियां रखकर तुरंत पूजा की सुविधा दी।
मलिक मोतासिम ने आरोप लगाया कि,वाराणसी जिला न्यायालय ने इस काम के लिए प्रशासन को 7 दिन का समय दिया था, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वाराणसी जिला प्रशासन वादी को पूजा शुरू करने में मदद करने की जल्दी में था, इससे पहले कि अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद समिति राहत पाने के लिए चौंकाने वाले फैसले पर, जो कानून (इबादतगाह अधिनियम 1991) का उल्लंघन है, उच्च न्यायपालिका में अपील करती।
जमाअत का मानना है कि वाराणसी जिला न्यायालय का फैसला पूरी तरह से गलत तर्क के आधार पर दिया गया था कि 1993 तक ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में पूजा की जाती थी और इसे केवल तत्कालीन राज्य सरकार के आदेश पर रोका गया था। मामले का तथ्य यह है कि तहखाने में कभी कोई पूजा नहीं हुई और इसका कोई सबूत भी नहीं है। इसी तरह, मीडिया के एक वर्ग ने मस्जिद के भीतर पहले से मौजूद मंदिर की मौजूदगी का दावा करने वाली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट को एकतरफा प्रकाशित किया है।
फिलहाल एएसआई की इस रिपोर्ट की स्थिति दावे से ज्यादा कुछ नहीं है। जमाअत -ए-इस्लामी वाराणसी में इन अभूतपूर्व घटनाओं की निंदा की है