के.पी. मलिक
नई दिल्ली : अक्सर कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है और उसमें पश्चिम उत्तर प्रदेश का विशेष योगदान रहता है। सब जानते हैं कि पश्चिम यूपी में जाटों के बिना राजनीति संभव नहीं है। पिछले दस सालों में भाजपा ने महसूस किया है कि यूपी के जाट पूरी तरह से उसके साथ नहीं आ रहे हैं। अभी लगभग आधे जाट रालोद तो आधे भाजपा के साथ हैं। अब सारे जाटों को अपने साथ जोड़ने और सपा व इंडिया गठबंधन का माकूल इलाज करने के लिया भाजपा ने एक बड़ा प्लान तैयार किया है।
दरअसल सबसे पहले तो जयंत चौधरी की पार्टी को इंडिया गठबंधन से अपनी ओर करने के लिए जयंत को भाजपा ने एनडीए में शामिल होने का ऑफर दिया है। विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक तमाम बातचीत हो चुकी है। रालोद को चार लोकसभा की सीटें, अगली केंद्र सरकार बनने पर जयंत को मंत्री पद, साथ ही यूपी में एक मंत्री पद का ऑफर देने की बात सामने आई है। इसके साथ ही संभावना है कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न तथा जाटों को केंद्र में आरक्षण देने की पुरानी लंबित मांग को भी माना जा सकता है।
ज्ञात हो कि जयंत की अखिलेश से इस बात को लेकर नाराजगी है कि अखिलेश ने रालोद को दी सात सीटों में तीन पर सपा और सातवीं सेट फतेहपुर सीकरी पर कांग्रेस प्रत्याशी को देने की शर्त रखी दी। इससे रालोद कार्यकर्ताओं पदाधिकारी और शुभचिंतकों में भारी रोष व्याप्त है साथ ही जयंत भी नाराज हैं। साल 2022 के यूपी चुनाव में भी अखिलेश ने जयंत को तीन दर्जन सीटें देकर रालोद के टिकट पर एक दर्जन सपा के प्रत्याशी लड़ाने के लिए मजबूर किया था। इसमें जाटों को अखिलेश की कुटिलता नज़र आती है और उनको चौधरी अजित सिंह और मुलायम सिंह यादव के आपसी टकराव की पुरानी बातें और घाव फिर ताजा होते दिखे। जाट ये भी नहीं भूले हैं कि जाट आरक्षण का सबसे ज्यादा विरोध यादव परिवार ने ही किया था। इस कारण 2022 में जाट गठबंधन के बावजूद सपा को वोट देने की जगह बहुत बड़ी संख्या में भाजपा की तरफ चले गए थे। गौरतलब है कि रालोद ने सबसे ज्यादा लोकसभा सीट 2009 में भाजपा गठबंधन में ही जीती थीं। उसके बाद तो पिता पुत्र दोनों बार हार गए थे। जयंत जानते हैं कि अभी भी भाजपा के साथ मिलकर लड़ने से सभी सीटों पर जीत पक्की है।
बहरहाल यूपी में सपा ही अब मुख्य विपक्षी दल बचा है। अब भाजपा सपा का भी स्थाई इलाज करना चाहती है। इसके लिए जयंत को समझाया गया है कि कालांतर में उत्तर प्रदेश का बंटवारा तो होना ही है। अतः चौधरी अजित सिंह के हरित प्रदेश के सपने को भी भाजपा ही पूरा कर सकती है। इसमें जयंत को भविष्य में हरित प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की भी संभावना दिखाई गई है। ज़ाहिर है सपा हरित प्रदेश की भी विरोधी रही है और यदि यूपी का बंटवारा हुआ तो इसके बाद सपा का वजूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो समाप्त ही हो जायेगा। जनता में भी हरित प्रदेश का पूरा समर्थन है।
राजनीति संभावनाओं का खेल है। मोदी असंभव और चौकाने वाले बड़े फैसले लेने में सक्षम हैं। अगले कुछ माह में बड़े-बड़े खेल होने तय हैं। जो आज यहां है, कल दूसरे पाले में चला जाए तो कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए।