अजय कुमार
पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह? पूर्व पीएम नरसिम्हा राव और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न की घोषणा में चौधरी चरण सिंह के बारे में यह जरूर कहा जा सकता है कि यह सम्मान उन्हें काफी पहले मिल जाना चाहिए था.चैधरी का सम्मान देर से लिया गया एक फैसला है. चौधरी ‘भारत रत्न’ के लिये पूरी तरह से योग्य थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले नूरपुर में चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1903 को एक ग्रामीण किसान परिवार में हुआ था. एक मध्यम वर्गीय जाट किसान परिवार में जन्मे चैधरी लोकतंत्र के बड़े पैरोकार थे.चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने में इतना समय क्यों लगा यह यक्ष प्रश्न हो सकता है,अब जबकि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने चौधरी को वह सम्मान दिलाया है जिसके वह हकदार थे तो इस पर किसी को एतराज नहीं होगा. 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद से एक अधिवक्ता के रूप में पेशे की शुरुआत की थी. चरण सिंह 1929 में मेरठ आ गये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए.चौधरी चरण की विरासत अब उनके पौत्र जयंत चैधरी संभाल रहे हैं.वह राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष हैं.उन्होंने बाबा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिलने पर सोशल साइट एक्स पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर,’ प्रधानमंत्री का आभार जताते हुए कहा कि आपने ‘दिल जीत लिया’. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिलने के खिलाफ कहीं से कोई आवाज तो नहीं उठ रही है,लेकिन भारत रत्न देने की टाइमिंग पर जरूर सवाल उठाया जा रहा है.ऐन चुनाव से पूर्व जब इस बात की चर्चा चल रही है कि चैधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चैधरी की राष्ट्रीय लोकदल के बीजेपी के साथ गठबंधन की चर्चा तेज है,तब इस तरह का फैसला सवाल तो खड़ा करता ही है.
चौधरी चरण सिंह के सियासत में प्रवेश की बात की जाये तो चरण सिंह सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया. जून 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया. बाद में 1952 में वह डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने. अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था.इसी तरह से चौधरी चरण सिंह सी.बी. गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह एवं कृषि मंत्री (1960) रहे. श्रीमती सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में वे कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे। उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड दिया एवं 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया. कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. हालांकि राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।
कांग्रेस में रहकर भी समाजवाद को आगे बढ़ाने वाले चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की एवं उनकी ख्याति एक ऐसे कड़क नेता के रूप में हो गई थी जो प्रशासन में अक्षमता, भाई भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे. प्रतिभाशाली सांसद एवं व्यवहारवादी श्री चरण सिंह अपने वाक्पटुता एवं दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते हैं. उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है. ग्रामीण दुकानदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋण मुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी.उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था.वह 1959 से राष्ट्रीय मंच पर दिखाई देने लगे जब उन्होंने नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में निर्विवाद नेता और प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की समाजवादी और सामूहिक भूमि नीतियों का सार्वजनिक रूप से विरोध किया। हालांकि गुटों से भरी उत्तर प्रदेश कांग्रेस में उनकी स्थिति कमजोर हो गई थी, लेकिन यही वह समय था जब उत्तर भारत में विभिन्न जातियों के मध्यम किसान समुदायों ने उन्हें अपने प्रवक्ता और बाद में अपने निर्विवाद नेता के रूप में देखना शुरू कर दिया। यह भी ध्यान देने योग्य है कि गुटीय उत्तर प्रदेश कांग्रेस के भीतर, अपनी स्पष्ट नीतियों और मूल्यों को व्यक्त करने की उनकी क्षमता ने उन्हें अपने सहयोगियों से अलग खडा किया। इस अवधि के बाद, चरण सिंह 1 अप्रैल 1967 को कांग्रेस से अलग हो गए, विपक्षी दल में शामिल हो गए, और यूपी के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. यह वह समय था जब 1967 से 1971 तक भारत में गैर-कांग्रेसी सरकार एक मजबूत ताकत थीं. जनता गठबंधन के एक प्रमुख घटक भारतीय लोक दल के नेता के रूप में , 1977 में जयप्रकाश नारायण की पसंद मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा से उन्हें निराशा हुई.
1977 के लोकसभा चुनावों के दौरान जब बिखरा हुआ विपक्ष चुनाव से कुछ महीने पहले जनता पार्टी के बैनर तले एकजुट हुआ, जिसके लिए चौधरी चरण सिंह 1974 से लगभग अकेले ही संघर्ष कर रहे थे. राज नारायण के प्रयासों के कारण ही वह प्रधानमंत्री बने वर्ष 1979 में मंत्री हालांकि राज नारायण जनता पार्टी-सेक्युलर के अध्यक्ष थे और उन्होंने चरण सिंह को उन्हें प्रधान मंत्री के रूप में पदोन्नत करने का आश्वासन दिया था, जिस तरह उन्होंने उन्हें वर्ष 1967 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने में मदद की थी। हालांकि, जब इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो उन्होंने केवल 24 सप्ताह के कार्यकाल के बाद इस्तीफा दे दिया । चरण सिंह ने कहा कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह इंदिरा गांधी के आपातकाल से संबंधित अदालती मामलों को वापस लेने के लिए ब्लैकमेल किए जाने के लिए तैयार नहीं थे। ख्8, छह महीने बाद नये चुनाव हुए। चरण सिंह 1987 में अपनी मृत्यु तक विपक्ष में लोक दल का नेतृत्व करते रहे।
बतौर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. यह अधिनियम जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके. देश में कुछ-ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की हो. एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिलता रहा. श्री चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं विचार-पुस्तक लिखी जिसमें ‘जमींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की संपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ डिवीजन ऑफ होल्डिंग बिलो अनसर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्’ आदि प्रमुख हैं।